नई दिल्लीः भारत, चीन और रूस का त्रिपक्षीय फोरम (आरआईसी) एक बार फिर सुर्खियों में है. हाल ही में मॉस्को ने इस फोरम को पुनः सक्रिय करने की पहल की, और चीन ने तुरंत ही इसका समर्थन किया. हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर कोई निश्चित समयसीमा नहीं दी है, लेकिन संकेत यह मिल रहे हैं कि इस फोरम का भविष्य अब भारत की रणनीति पर निर्भर करेगा. इस समय जब पश्चिमी देशों के साथ तनाव बढ़ता जा रहा है, भारत ने रूस और चीन के साथ अपने रिश्तों को नई दिशा देने की कोशिश की है.
आरआईसी की पुन: सक्रियता का कारण
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने इस महीने की शुरुआत में रूस-भारत-चीन वार्ता को पुनः शुरू करने के बारे में बयान दिया था. विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस पहल को तब ही शुरू किया जाएगा जब तीनों देशों के लिए यह सुविधाजनक होगा. हालांकि इस बात को लेकर कोई समयसीमा नहीं बताई गई, लेकिन यह साफ है कि भारत के पास इस फोरम के भविष्य को आकार देने की बड़ी जिम्मेदारी है.
विश्लेषकों का मानना है कि भारत का झुकाव रूस और चीन की तरफ पश्चिमी देशों के रवैये से बढ़ी निराशा के कारण है. ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर श्रीपर्णा पाठक ने हाल ही में नाटो प्रमुख मार्क रूट के बयान की ओर इशारा किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि रूस से तेल खरीदने पर भारत को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. पाठक के मुताबिक, भारत ने हमेशा यह कहा है कि अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना उसकी प्राथमिकता है और वह ऐसे दबावों के आगे झुकेगा नहीं.
भारत की रणनीति: अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना
भारत का यह कदम साफ तौर पर यह दर्शाता है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के मामले में खुद फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. आरआईसी को पुनर्जीवित करने का एक बड़ा कारण यह है कि भारत अपने राजनीतिक और आर्थिक विकल्पों को बढ़ाना चाहता है, विशेषकर तब जब पश्चिमी देशों के दबाव बढ़ रहे हों. प्रोफेसर पाठक के अनुसार, भारत ने इस पूरे घटनाक्रम से यह साबित किया है कि वह अपने हितों को लेकर समझौता नहीं करेगा.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस समय अमेरिका से बढ़ते टैरिफ और प्रतिबंधों से बचने की योजना बना रहा है, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरे का कारण बन सकते हैं. अगर भारत इन प्रतिबंधों का विरोध करता है, तो उसे अमेरिका के साथ रिश्तों में तनाव का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन भारत अपनी स्वतंत्रता को प्राथमिकता दे रहा है.
चीन का सकारात्मक रुख और आगे की राह
यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के शोधकर्ता गौरव कुमार के अनुसार, भारत अगले साल ब्रिक्स की अध्यक्षता करेगा, और इसे लेकर भारत अपनी कूटनीतिक क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए उत्सुक है. चीन ने हाल ही में कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा मार्ग को फिर से खोलने का फैसला किया, जो एक सकारात्मक संकेत है और यह दर्शाता है कि चीन आरआईसी की पुनः सक्रियता के लिए तैयार है.
गौरव कुमार के मुताबिक, अगर आरआईसी को पुनर्जीवित किया जाता है, तो यह तीनों देशों के बीच संवाद को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय तनाव को कम करने का एक स्थिर मंच प्रदान करेगा. बीजिंग के हालिया कदमों से यह संकेत मिलता है कि अब तीनों देशों के बीच समन्वय और सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं.
आरआईसी का इतिहास और महत्व
आरआईसी (रूस, भारत, चीन) की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी, जब यह पहल रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने की थी. इसका मुख्य उद्देश्य गैर-पश्चिमी शक्तियों के बीच सहयोग बढ़ाना और बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को मजबूत करना था. हालांकि, पिछले एक दशक से आरआईसी का कोई महत्वपूर्ण सम्मेलन नहीं हुआ है, लेकिन हाल के घटनाक्रम इसे फिर से एक प्रभावशाली मंच बना सकते हैं.
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