हार गए ट्रंप, फिकी पड़ी सीजफायर की लाख कोशिशें, PM मोदी से दुनिया को उम्मीद, मैक्रों को मिलाया फोन; जानें क्यों?

    रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष को दो साल से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन अब तक न बातचीत से समाधान निकला, न सैन्य दबाव से हालात सुधरे. यूरोप और अमेरिका की कोशिशें कई बार रंगहीन साबित हुईं.

    Donald Trump Ceasefire fails all eyes on modi now called macron
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    रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष को दो साल से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन अब तक न बातचीत से समाधान निकला, न सैन्य दबाव से हालात सुधरे. यूरोप और अमेरिका की कोशिशें कई बार रंगहीन साबित हुईं. ऐसे में अब दुनिया की निगाहें उस देश की ओर मुड़ गई हैं, जो परंपरागत कूटनीति और संतुलित दृष्टिकोण का प्रतीक बन चुका है भारत.

    भारत आज एकमात्र ऐसा देश है, जिसके संबंध रूस और यूक्रेन दोनों से सम्मानजनक हैं, और पश्चिमी देशों के साथ भी उसकी रणनीतिक साझेदारी मजबूत है. यही कारण है कि अब यूरोप को लगता है. अगर कोई देश सब पक्षों से संवाद कायम रख सकता है और स्थायी समाधान की दिशा में ले जा सकता है, तो वह भारत ही है.

    मोदी और मैक्रों के बीच रणनीतिक चर्चा

    रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच फ्रांस की ओर से कई प्रयास हुए, लेकिन जब वे नाकाम रहे, तो राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क किया. दोनों नेताओं के बीच हाल ही में टेलीफोन पर लंबी बातचीत हुई. हालांकि चर्चा का केंद्र युद्ध रहा, लेकिन इसमें सुरक्षा, इंडो-पैसिफिक रणनीति, तकनीक और वैश्विक साझेदारी जैसे अहम मुद्दे भी शामिल रहे. मोदी ने इस बातचीत में मैक्रों को भारत में होने वाले AI Impact Summit के लिए आमंत्रित किया जो इस बात का संकेत था कि भारत अब सिर्फ संकट मोचक नहीं, बल्कि भविष्य की वैश्विक व्यवस्था का नेतृत्वकर्ता बनना चाहता है.

    भारत-यूरोप के संबंधों में नया दौर

    कुछ दिन पहले यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा और यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयन ने भी पीएम मोदी से संयुक्त कॉल की. इस चर्चा में रूस-यूक्रेन संकट के अलावा भारत-यूरोप फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल थे. भारत ने यह स्पष्ट किया कि शांति की पैरवी उसकी नीति है, लेकिन उसके साथ-साथ वह आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक साझेदारियों को भी प्राथमिकता देता है. यही संतुलन भारत को वैश्विक नेताओं से अलग खड़ा करता है.

    जर्मनी ने भी दिखाई भारत में दिलचस्पी

    हाल ही में जर्मनी के विदेश मंत्री जोहान वेडेपुल भारत दौरे पर आए. उन्होंने पीएम मोदी से मुलाकात के बाद स्पष्ट रूप से कहा कि भारत-जर्मनी की रणनीतिक साझेदारी को 25 वर्ष हो चुके हैं और अब इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाने का वक्त है. जर्मनी अब भारत को टेक्नोलॉजी, व्यापार, स्थिरता और रक्षा जैसे क्षेत्रों में एक भरोसेमंद भागीदार मान रहा है. इसके संकेत भी मिल रहे हैं कि जर्मन चांसलर आने वाले समय में भारत की यात्रा पर आ सकती हैं.

    रूस और यूक्रेन दोनों से बना रखा है संवाद

    भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी संतुलित कूटनीति है. जहां पश्चिमी देश किसी एक पक्ष के साथ खड़े नजर आते हैं, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन दोनों से संवाद बनाए रखा है.SCO सम्मेलन के दौरान उन्होंने पुतिन से सीधी बातचीत में युद्ध रोकने की बात कही, तो वहीं यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से भी फोन पर चर्चा कर भरोसा दिया कि भारत हर संभव कोशिश के साथ शांति की राह पर साथ रहेगा.

    अमेरिका से दूरी, भारत की संतुलन नीति को तरजीह

    जहां एक ओर यूरोपीय नेता भारत के साथ नजदीकी बढ़ा रहे हैं, वहीं अमेरिका की कूटनीतिक भाषा अब यूरोप को रास नहीं आ रही. ट्रंप द्वारा भारत को धमकी देना और चीन के पक्ष में झुकाव की बातें यूरोपीय नेताओं को असहज कर रही हैं. इसके उलट, यूरोप अब भारत की उस नीति को महत्व दे रहा है जो ना पक्षपात करती है, ना दबाव में आती है, बल्कि हर मंच पर संवाद के ज़रिए रास्ता तलाशती है.

    भारत की भूमिका सिर्फ मध्यस्थ की नहीं, भागीदार की भी है

    भारत न केवल शांति की बात करता है, बल्कि भविष्य की तकनीक, वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता जैसे विषयों पर भी पहल कर रहा है. चाहे G20 हो, SCO, BRICS या QUAD  भारत हर महत्वपूर्ण वैश्विक मंच का हिस्सा है और अपनी उपस्थिति के ज़रिए यह संदेश दे रहा है कि वह अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि एक वैश्विक निर्णायक शक्ति बन चुका है.

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