इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भू-राजनीतिक हलचलें तेज होती जा रही हैं. हाल के वर्षों में जहां एक ओर अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, वहीं अब रूस भी इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति को व्यवस्थित रूप से मजबूत करता दिख रहा है. विशेष रूप से रूस की यह गतिविधियां चीन की भौगोलिक परिधि के आसपास केंद्रित हैं, जो भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं.
रूस की ताज़ा रणनीतिक पहल में इंडोनेशिया के पापुआ प्रांत में एक एयरबेस स्थापित करने की योजना चर्चा में है. इस एयरबेस के ज़रिए रूस अपनी लंबी दूरी की बमवर्षक विमानों को प्रशांत क्षेत्र के करीब तैनात करने की मंशा रखता है. यह कदम रूस को इंडो-पैसिफिक के सैन्य संतुलन में एक अहम खिलाड़ी बना सकता है. हालांकि, इस योजना से ऑस्ट्रेलिया में चिंता की लहर दौड़ गई है. ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन ने इंडोनेशिया से इस मुद्दे पर औपचारिक स्पष्टीकरण भी मांगा है.
रूस इंडो-पैसिफिक में अपनी पकड़ मजबूत करने को लेकर गंभीर
विशेषज्ञों का मानना है कि इंडोनेशिया में एयरबेस स्थापित करना रूस के लिए आसान नहीं होगा. एक ओर क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन और अमेरिका की उपस्थिति बाधा बन सकती है, वहीं दूसरी ओर इंडोनेशिया की लंबे समय से चली आ रही गुटनिरपेक्ष नीति रूस की योजनाओं को चुनौती दे सकती है. फिर भी, यह स्पष्ट है कि रूस इंडो-पैसिफिक में अपनी पकड़ मजबूत करने को लेकर गंभीर है.
भारत की भूमिका भी इस घटनाक्रम में अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी है. भारत पहले ही रूस को हिंद महासागर क्षेत्र और आसियान देशों में रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाने की सलाह दे चुका है. यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से जूझते रूस ने एशिया की ओर रुख किया है, जहां वह न केवल आर्थिक बल्कि सामरिक साझेदारियां भी मजबूत कर रहा है. इस दिशा में रूस की नजर खास तौर पर दक्षिण एशिया और आसियान जैसे क्षेत्रों पर है. इंडोनेशिया, जो कि आसियान का सबसे बड़ा और प्रभावशाली देश है, इस रूसी रणनीति का अहम केंद्र बनता जा रहा है.
रूस की सक्रियता सिर्फ इंडोनेशिया तक सीमित नहीं है. हाल ही में रूस ने तीन युद्धपोत बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर भेजे हैं. यह घटना बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार उज जमां की मास्को यात्रा के कुछ ही दिनों बाद सामने आई है. इसे रूस-बांग्लादेश रक्षा सहयोग के नए चरण के रूप में देखा जा रहा है, और संभवत: चीन पर बांग्लादेश की रक्षा निर्भरता को संतुलित करने की कोशिश भी कही जा सकती है.
म्यांमार में भी रूस की भूमिका
इसी तरह म्यांमार में भी रूस की भूमिका तेजी से बढ़ रही है. रूस ने न केवल म्यांमार को अपनी सैन्य उपग्रह सेवाएं साझा करने की पेशकश की है, बल्कि ज्वाइंट सैटेलाइट इमेजरी एनालिसिस सेंटर भी स्थापित किया है. यह सुविधा म्यांमार की जुंटा सरकार को विद्रोही गतिविधियों से निपटने में सहायता प्रदान करेगी. हाल ही में म्यांमार के सैन्य प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग ने रूस का दौरा भी किया, जिससे दोनों देशों के रिश्तों की गंभीरता और गहराई का संकेत मिलता है.
रूस की इन गतिविधियों से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सैन्य और सामरिक समीकरणों में नया बदलाव देखने को मिल सकता है. ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जहां इसे एक चुनौती के रूप में देख रहे हैं, वहीं भारत इसे अवसर के तौर पर देख रहा है. भारत का मानना है कि रूस की सक्रियता से इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन अधिक समावेशी हो सकता है और चीन की एकतरफा प्रभावशाली स्थिति को संतुलित किया जा सकता है.
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