चीन, तुर्की और पाकिस्तान... भारत के खिलाफ क्या प्लानिंग कर रही ये तिकड़ी? दोतरफा चोट पहुंचाने की साजिश

    पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने सिर्फ सुरक्षा चिंताओं को ही नहीं, बल्कि भारत के चारों ओर गहराते एक नए रणनीतिक गठबंधन की ओर भी इशारा किया है.

    China Türkiye Pakistan planning against India
    शहबाज-जिनपिं--एर्दोगन | Photo: ANI

    पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने सिर्फ सुरक्षा चिंताओं को ही नहीं, बल्कि भारत के चारों ओर गहराते एक नए रणनीतिक गठबंधन की ओर भी इशारा किया है. इस त्रिकोण में शामिल हैं—चीन, तुर्की और पाकिस्तान—तीनों देश जो अब भारत के खिलाफ न केवल सैन्य मोर्चे पर, बल्कि आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर भी गहराई से सक्रिय हो चुके हैं.

    ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदले समीकरण

    भारत के जवाबी अभियान 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद इस गठजोड़ की गतिविधियां तेज़ हो गई हैं. पाकिस्तान को चीन से मिल रही सैन्य व कूटनीतिक सहायता, और तुर्की की हथियार आपूर्ति भारत के लिए गंभीर संकेत हैं. इस नई धुरी का मकसद सिर्फ भारत की बढ़ती क्षेत्रीय ताकत को रोकना नहीं है, बल्कि उसकी जियो-पॉलिटिकल रणनीति को अस्थिर करना है.

    पाकिस्तान मोर्चे पर, चीन की बैकिंग से लैस

    चीन ने पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर की CPEC परियोजना के जरिए न केवल आर्थिक पकड़ मजबूत की है, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी उसकी सैन्य क्षमताओं को उन्नत किया है. JF-17 ब्लॉक III, VT-4 टैंक, HQ-9B मिसाइल और वॉर थिएटर कमांड की ट्रेनिंग इसके स्पष्ट उदाहरण हैं.

    सैन्य समर्थन और वैश्विक मंचों पर प्रोपेगेंडा

    तुर्की ने पाकिस्तान को T129 ATAK हेलिकॉप्टर, UAVs और स्मार्ट बम जैसे आधुनिक हथियार मुहैया कराए हैं. हाल ही में दोनों देशों के बीच हुए सैन्य अभ्यास और संयुक्त अभियान दर्शाते हैं कि तुर्की पाकिस्तान की सैन्य रीढ़ को मज़बूत करने में निर्णायक भूमिका निभा रहा है.

    इसके साथ ही, OIC और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय रंग देने की कोशिशों में तुर्की और पाकिस्तान को चीन का खुला समर्थन मिलता है. सोशल मीडिया पर चलने वाले प्रोपेगेंडा अभियानों में भी ये तीनों देश मिलकर भारत की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

    भारत के सामने अब क्या विकल्प हैं?

    तुर्की को रणनीतिक रूप से संतुलित करना होगा

    भारत को यूरोप के साथ नई साझेदारियों को विस्तार देना चाहिए—विशेषकर ग्रीस, साइप्रस और फ्रांस जैसे देशों के साथ, जो तुर्की की विस्तारवादी नीतियों से असहज हैं. इसके अलावा, सीरिया में कुर्द बलों के साथ संपर्क एक रणनीतिक संदेश देगा. अगर तुर्की भारत के खिलाफ काम कर सकता है, तो भारत को भी उस पर कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाना चाहिए.

    SCO और BRICS में तुर्की का प्रवेश रोकना चाहिए

    भारत के पास SCO और BRICS में तुर्की के प्रवेश को वेटो करने की शक्ति है. ऐसे संगठनों में तुर्की को शामिल होने से रोकना भारत के हित में होगा. भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने की जरूरत है—एडवांस फाइटर जेट्स, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, सैटेलाइट इंटेलिजेंस और साइबर डिफेंस जैसे क्षेत्रों में तेजी से निवेश करना समय की मांग है.

    ACT EAST नीति को मजबूती देना

    आसियान देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक साझेदारियां बढ़ाकर भारत चीन की पकड़ को चुनौती दे सकता है. वियतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देश जो खुद चीन की आक्रामकता से परेशान हैं, भारत के लिए स्वाभाविक रणनीतिक भागीदार बन सकते हैं.

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