चीन के बाद 'दोस्त' इजरायल को भी धोखा देंगे ट्रंप! नेतन्याहू का पत्ता साफ करने में लगे; जानिए कैसे मिले संकेत

    अमेरिका का रुख अब बदलता दिख रहा है और कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव इतना गहरा है कि इसे नेतन्याहू को सत्ता से हटाने की कोशिश तक कहा जा सकता है.

    China Trump betray Israel Netanyahu
    ट्रंप-नेतन्याहू | Photo: ANI

    इज़राइल और गाज़ा के बीच लंबे समय से चल रही जंग में अब एक नया मोड़ आ गया है. अब तक इस लड़ाई में अमेरिका पूरी तरह से इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ खड़ा नजर आता था, लेकिन हाल ही की घटनाएं कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं. अमेरिका का रुख अब बदलता दिख रहा है और कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव इतना गहरा है कि इसे नेतन्याहू को सत्ता से हटाने की कोशिश तक कहा जा सकता है.

    अमेरिका ने बदला रुख

    अब अमेरिका सिर्फ नेतन्याहू से दूरी नहीं बना रहा, बल्कि वह सीधे तौर पर हमास से बातचीत भी कर रहा है, जो पहले उसकी नीति के बिल्कुल खिलाफ था.

    ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई को लेकर अमेरिकी अधिकारियों ने साफ कहा कि वे उन्हें लीबिया के पूर्व तानाशाह गद्दाफी जैसा अंजाम नहीं देना चाहते. जबकि इज़राइल ईरान पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा था. यह अमेरिका के रुख में बदलाव का संकेत है — अब वह इज़राइल की हर बात का समर्थन नहीं कर रहा.

    तुर्की और एर्दोगन को लेकर भी बदला रवैया

    तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन को इज़राइल अक्सर विरोधी मानता है, लेकिन अमेरिका ने साफ कर दिया है कि वह तुर्की से टकराव नहीं चाहता. इससे भी इज़राइल को यह संकेत मिला कि अमेरिका अब सिर्फ उसी की लाइन पर नहीं चलने वाला.

    हमास से गुप्त बैठकें

    न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च में अमेरिकी अधिकारियों ने कतर में तीन बार हमास के नेताओं से गुप्त रूप से मुलाकात की. इन बैठकों का मकसद अमेरिकी बंधक एडन अलेक्जेंडर की रिहाई था. यह पहली बार है जब अमेरिका ने हमास से सीधी बातचीत की. इससे साफ है कि अमेरिका अब नेतन्याहू की "आतंकियों से कोई बातचीत नहीं" वाली नीति से हट रहा है.

    अमेरिका ने यहूदी-विरोधी छवि वाले राजदूत को नियुक्त किया

    अमेरिका ने कुवैत में ऐसे राजदूत की नियुक्ति की है, जिन पर पहले यहूदी-विरोधी बयान देने के आरोप लग चुके हैं. यह कदम भी इज़राइल को चौंकाने वाला लगा और उसने इसे एक तरह से अपनी उपेक्षा के रूप में देखा.

    नेतन्याहू को बिना बताए हमास से डील

    अमेरिका के विशेष दूत एडम बोहलर ने 250 कैदियों के बदले बंधक की रिहाई की डील की कोशिश की, लेकिन इस बारे में इज़राइल को नहीं बताया गया. इससे नेतन्याहू का प्रशासन नाराज हो गया. इज़राइली मंत्री रॉन डर्मर ने अमेरिका को चेतावनी दी कि ऐसी एकतरफा कार्रवाई से हालात और बिगड़ सकते हैं.

    हमास की शर्तों पर भी चर्चा को तैयार अमेरिका

    बातचीत के दौरान हमास ने 5 से 10 साल के संघर्षविराम की बात कही, बशर्ते हथियारों पर बाद में चर्चा हो. उन्होंने अमेरिका से यह भी मांग की कि 'हॉली लैंड फाउंडेशन' से जुड़े बंद नेताओं को रिहा किया जाए. अमेरिका ने इन शर्तों पर भी विचार करने की इच्छा जताई.

    नेतन्याहू को अंधेरे में रखा गया

    इन बैठकों के दौरान अमेरिका ने जानबूझकर इज़राइल को सारी जानकारी नहीं दी. जानकार मानते हैं कि यह रणनीति नेतन्याहू को कमजोर करने के लिए अपनाई गई.

    फिर भड़का इज़राइल, शुरू किया हमला

    जब तक हमास ने अमेरिकी प्रस्ताव स्वीकार किया, तब तक अमेरिकी प्रतिनिधि वहां से जा चुके थे. इसके बाद इज़राइल ने गाज़ा में दोबारा हमला शुरू कर दिया. यह सब अमेरिका-इज़राइल के बीच बढ़ते अविश्वास को दिखाता है.

    क्या नेतन्याहू की कुर्सी खतरे में है?

    अब तक की घटनाएं यह इशारा कर रही हैं कि अमेरिका नेतन्याहू को अब ज्यादा दिन सत्ता में नहीं देखना चाहता. ईरान नीति, हमास से बातचीत और नेतन्याहू की सख्ती — इन सब वजहों से अमेरिका अब अपने फैसले खुद लेने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि नेतन्याहू इस बदलते माहौल से कैसे निपटते हैं, और क्या वे सत्ता में बने रह पाएंगे.

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