जब दुनिया पेंटागन को सैन्य शक्ति का प्रतीक मानती है, उसी समय चीन एक और कदम आगे बढ़ चुका है. बीजिंग से करीब 20 मील दक्षिण-पश्चिम की ओर चीन एक सुपर सीक्रेट मिलिट्री सिटी का निर्माण कर रहा है, जिसे पेंटागन से भी दस गुना बड़ा बताया जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान जैसे फाइनेंशियल टाइम्स और द सन की रिपोर्ट्स और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की जांच से पता चला है कि यह विशाल परिसर सिर्फ एक सैन्य मुख्यालय नहीं, बल्कि परमाणु युद्ध की स्थिति में कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के रूप में तैयार किया जा रहा है.
गोपनीयता का किला: ‘चुपचाप युद्ध की तैयारी’
इस साइट की सुरक्षा और गोपनीयता का स्तर अत्यधिक है. यहां नागरिकों की एंट्री पूर्णतः वर्जित है और ड्रोन या कैमरे जैसी तकनीकों के इस्तेमाल पर सख्त प्रतिबंध है. अंदर बनी वाटरप्रूफ सुरंगें, भारी सुरक्षा वाले बंकर, और व्यू-प्रूफ बाउंड्रीवॉल दर्शाते हैं कि चीन इसे पूरी दुनिया से छुपाकर तैयार कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस सिटी का लक्ष्य सिर्फ सैन्य समन्वय नहीं है, बल्कि यह परमाणु हमले के बाद संचालन योग्य सैन्य केंद्र भी होगा, जो किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में शी जिनपिंग सरकार को सैन्य निर्णय लेने में सक्षम बनाएगा.
परमाणु हमले से बचाव की तैयारी
आज के दौर में केवल हथियारों की ताकत काफी नहीं मानी जाती, बचाव और जवाबी हमला उतना ही जरूरी हो गया है. इसी जरूरत को देखते हुए चीन ने इस मिलिट्री शहर को जमीन के नीचे गहराई तक बंकरों से लैस किया है. ये बंकर न केवल परमाणु विस्फोट झेल सकते हैं, बल्कि युद्धकाल में नेतृत्व और संचालन का गुप्त ठिकाना भी बन सकते हैं. एक अमेरिकी पूर्व खुफिया विशेषज्ञ ने दावा किया है कि यह नया प्रोजेक्ट चीन के मौजूदा वेस्टर्न हिल्स कॉम्प्लेक्स की जगह ले सकता है. जो अभी तक PLA (People's Liberation Army) का मुख्यालय है.
अमेरिका के पेंटागन को लंबे समय से विश्व का सबसे विशाल सैन्य मुख्यालय माना जाता है, लेकिन चीन का यह कदम दिखाता है कि वह केवल आर्थिक नहीं, सैन्य महाशक्ति बनने की होड़ में भी सबसे आगे है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन अगले दस वर्षों में परमाणु हथियारों की संख्या और क्षमताओं में अमेरिका को टक्कर दे सकता है, जो वॉशिंगटन के लिए चिंता का विषय बन चुका है.
चीन की रणनीतिक चुप्पी
इस पूरे प्रोजेक्ट को लेकर चीन सरकार का रवैया बेहद रहस्यमय है. न तो चीनी विदेश मंत्रालय और न ही बीजिंग स्थित दूतावासों ने इस परियोजना की पुष्टि या खंडन किया है. सारी जानकारियां सैटेलाइट इमेजरी, गुप्तचर रिपोर्टों, और विश्लेषणात्मक अनुसंधान के आधार पर सामने आई हैं.
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