पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक संयम के बजाय निर्णायक सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुना. "ऑपरेशन सिंदूर" के तहत पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में मौजूद आतंकी ठिकानों को भारतीय वायुसेना ने सटीकता से निशाना बनाया. इस ऑपरेशन में कम से कम 100 आतंकवादियों के मारे जाने और 9 प्रमुख आतंकी अड्डों के ध्वस्त होने की पुष्टि हुई है. भारत की इस कार्रवाई ने न केवल आतंकियों की रीढ़ तोड़ी, बल्कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर असहज स्थिति में ला खड़ा किया.
पाकिस्तान ने जवाब में सीमावर्ती इलाकों में हजारों ड्रोन और मिसाइलों से हमला करने की नाकाम कोशिश की, जिन्हें भारत के एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम ने प्रभावी ढंग से निष्क्रिय कर दिया. लेकिन इस सैन्य टकराव के बीच कुछ देशों की भूमिका ने वैश्विक राजनीति के रंग भी दिखा दिए. तुर्की, अजरबैजान और चीन जैसे देश खुलकर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े नजर आए.
सहयोगियों की आड़ में साजिश
जहां तुर्की ने पाकिस्तान को अपने जंगी जहाज़ और सैन्य कार्गो विमानों के ज़रिये समर्थन दिया, वहीं चीन ने कूटनीतिक भाषा में पाकिस्तान की "संप्रभुता और अखंडता" की वकालत कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए. भारत पर दागे गए कई ड्रोन तुर्की में बने बताए जा रहे हैं, और चीन से आए कार्गो विमानों ने गोला-बारूद की आपूर्ति की बात सोशल मीडिया पर सामने आई, जिसने पूरे घटनाक्रम को और अधिक संवेदनशील बना दिया.
चीन ने पेश की सफाई
जब इन आरोपों को लेकर चीन की किरकिरी शुरू हुई, तो बीजिंग ने अपने सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के ज़रिये सोशल मीडिया पर सफाई पेश की. पीएलए एयरफोर्स ने बयान जारी कर सभी दावों को “झूठ और अफवाह” बताया और चेतावनी दी कि सैन्य विषयों पर झूठ फैलाना एक कानूनी अपराध है. हालांकि, यह चीन की घबराहट को भी उजागर करता है, क्योंकि भारत ने जिस तरह से उनके बनाए डिफेंस सिस्टम को भेदा है, उससे उनकी सैन्य तकनीक पर सवाल खड़े हो गए हैं.
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक जवाबी हमला नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश था कि भारत अब आतंकवाद को सीमाओं तक सीमित नहीं देखेगा, बल्कि उसकी जड़ों तक पहुंचेगा. इस कार्रवाई ने ये भी साफ कर दिया है कि अगर कोई देश आतंक का साथ देगा, तो भारत उसके साथ राजनयिक और सैन्य स्तर पर सख्ती से निपटेगा.
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