अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक टकराव एक बार फिर तेज हो गया है. इस बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर व्यापार समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाकर नया विवाद खड़ा कर दिया है. ट्रंप का कहना है कि वह अब "मिस्टर नाइस गाय" नहीं बने रहेंगे, क्योंकि चीन ने सभी सीमाएं लांघ दी हैं.
ट्रंप ने टुथ सोशल पर निकाली भड़ास
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'टुथ सोशल' पर एक आक्रामक पोस्ट करते हुए लिखा, चीन पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था. मेरे लगाए ऊंचे टैरिफ के कारण उनकी फैक्ट्रियां बंद हो गईं और वहां नागरिक अशांति फैलने लगी. फिर भी मैंने मानवीय दृष्टिकोण से एक व्यापारिक समझौता किया, जिससे हालात कुछ हद तक सुधरे. लेकिन अब चीन ने उस समझौते का उल्लंघन कर दिया है, जिससे मैं काफी नाराज़ हूं.
अमेरिकी अधिकारी भी नाराज़
ट्रंप की टिप्पणियों के बाद, अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीयर ने भी चीन पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि चीन व्यापार समझौते की शर्तों को नजरअंदाज कर रहा है और अमेरिका की तरफ से निभाई गई प्रतिबद्धताओं का कोई सम्मान नहीं किया गया है.
कैसे शुरू हुआ था यह विवाद?
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध अपने चरम पर था. ट्रंप प्रशासन ने चीन से आयात होने वाले सामान पर 145% तक का टैरिफ लगाया था, जिसे ‘लिबरेशन डे ट्रेड पैकेज’ कहा गया. इसका मकसद अमेरिका की व्यापारिक घाटा कम करना और चीनी कंपनियों की अनुचित नीतियों पर लगाम कसना था. इस टैरिफ वॉर के चलते चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ, और क्रय प्रबंधक सूचकांक 16 महीने के निचले स्तर तक गिर गया. हालात सुधारने के लिए मई में जिनेवा में एक व्यापार समझौता हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने टैरिफ कटौती पर सहमति जताई थी.
नया तनाव क्यों पैदा हुआ?
हालांकि उस समझौते से उम्मीदें बंधीं थीं, लेकिन अब अमेरिका का आरोप है कि चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर लगी रोक को हटाने जैसे प्रमुख वादे पूरे नहीं किए. इसके जवाब में अमेरिका ने चीन पर फिर से कड़े कदम उठाए हैं:
असर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर
इस बढ़ते तनाव का असर अब दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर साफ नजर आ रहा है. अमेरिका में 2025 की शुरुआत में आर्थिक मंदी दर्ज की गई है. बेरोज़गारी बढ़ी है, महंगाई दर तेज़ी से चढ़ी है और बाजार अस्थिर हैं. वहीं चीन भी आर्थिक दबाव में है. भारी सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद GDP की वृद्धि दर लक्ष्य से पीछे रहने की आशंका है. चीन ने अमेरिका की नीतियों में सहयोग करने वाले देशों को चेतावनी दी है कि उनके खिलाफ भी कड़े कदम उठाए जा सकते हैं.
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