नक्सलवाद पर करारा प्रहार, नारायणपुर में हथियार के साथ 28 माओवादियों ने किया आत्मसमर्पण

    Naxalites Surrender In Narayanpur: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले से एक बड़ी खुशखबरी आई है. मंगलवार को 28 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया. इनमें 19 महिला और 9 पुरुष माओवादी शामिल हैं.

    Chhattisgarh Strong attack on Naxalism 28 Maoists surrender with weapons in Narayanpur
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    Naxalites Surrender In Narayanpur: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले से एक बड़ी खुशखबरी आई है. मंगलवार को 28 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया. इनमें 19 महिला और 9 पुरुष माओवादी शामिल हैं. खास बात यह है कि तीन नक्सलियों ने अपने पास मौजूद हथियार एसएलआर, इंसास और .303 राइफल भी सुरक्षाबलों को सौंप दिए.

    पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इनमें से कई नक्सलियों के सिर पर लाखों रुपये का इनाम था. डिविजनल कमेटी के सदस्य पंडी ध्रुव उर्फ दिनेश, पूर्व बस्तर डिवीजन की कंपनी नंबर छह की सदस्य दुले मंडावी, छत्तीस पोयाम और पदनी ओयाम के सिर पर आठ-आठ लाख रुपये का इनाम था. वहीं, अन्य कई एरिया कमेटी सदस्यों पर पांच-पांच लाख, कुछ पर तीन-तीन लाख और कुछ पर एक-एक लाख रुपये का इनाम घोषित था.

    हथियार सौंपने पर भी इनाम

    आत्मसमर्पण करने वाले तीन नक्सलियों ने जो हथियार जमा किए, उनके लिए कुल पांच लाख रुपये का इनाम रखा गया है. यह पहल राज्य शासन की ‘पूना मारगेम’ योजना के तहत की जा रही है, जिसका उद्देश्य स्थायी शांति और सकारात्मक बदलाव लाना है.

    पुलिस और प्रशासन की संतुष्टि

    नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक रॉबिन्सन गुड़िया ने कहा कि इस साल जिले में अब तक कुल 287 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. बस्तर पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि यह घटनाक्रम हिंसक माओवादी विचारधारा के अंत की दिशा में एक मजबूत संकेत है. उन्होंने कहा, “लोग ‘पूना मारगेम: पुनर्वास से पुनर्जीवन’ योजना पर भरोसा जताते हुए शांति और स्थायी विकास का रास्ता चुन रहे हैं.”

    बस्तर में शांति की दिशा में बढ़ता कदम

    सुंदरराज ने यह भी बताया कि पिछले 50 दिनों में बस्तर क्षेत्र में 512 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा छोड़कर सामाजिक मुख्यधारा से जुड़ने का निर्णय लिया है. उनका कहना है कि शेष माओवादी कैडर के पास अब हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. छत्तीसगढ़ प्रशासन, सुरक्षा बल और राज्य सरकार की ये संयुक्त कोशिशें यह साबित कर रही हैं कि हिंसा की बजाय शांति और विकास ही अंतिम विकल्प हैं.

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