Chaitra Navratri 2025 Day 2: चैत्र नवरात्रि का आज दूसरा दिन है, और इस दिन मां दुर्गा के दूसरे रूप, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी का नाम ही उनकी शक्तियों का प्रतीक है. 'ब्रह्म' का अर्थ तपस्या और 'चारिणी' का अर्थ तपस्या करने वाली है, अर्थात मां ब्रह्मचारिणी तप का पालन करने वाली देवी हैं. यह स्वरूप भक्तों को लंबी उम्र, सौभाग्य, आरोग्य और आत्मविश्वास प्रदान करता है. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से वैराग्य, सदाचार, तप, संयम, त्याग और तपस्या की वृद्धि होती है.
मां का नाम ब्रह्मचारिणी कैसे पड़ा?
शास्त्रों के अनुसार, मां आदिशक्ति ने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था. महर्षि नारद के कहने पर माता पार्वती ने भगवान महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. माता ने एक हजार वर्षों तक केवल फल-फूल खाकर और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर शाक खाकर जीवन यापन किया. इसके बाद उन्होंने तीन हजार वर्षों तक केवल टूटे हुए बेल पत्र और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप सहते हुए तपस्या की. इस कठोर तपस्या के कारण ही माता पार्वती का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा, जो तपश्चारिणी के रूप में प्रसिद्ध हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा और स्तवन किया जाता है.
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही साधारण और भव्य है. वे सफेद वस्त्र पहने होती हैं और उनके दाएं हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल होता है. इनकी पूजा करने से व्यक्ति की स्मरण शक्ति बढ़ती है, आयु लंबी होती है, और सभी कष्टों का नाश होता है. इन्हें ब्राह्मी भी कहा जाता है. उनका यह स्वरूप ज्ञान से परिपूर्ण और अतिसौम्य है. मां ब्रह्मचारिणी के बारे में कहा जाता है कि वे तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं और क्रोध रहित होती हैं.
नवरात्रि के दूसरे दिन पूजा विधि
आज नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा शास्त्रीय विधि से की जाती है. सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान और ध्यान से निवृत होकर पूजा स्थल पर गंगाजल से छिड़काव करें. फिर पूरे परिवार के साथ मां दुर्गा की पूजा करें. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहनें और गुड़हल या कमल के फूल अर्पित करें. पूजा में चीनी का भोग चढ़ाएं, क्योंकि यह भोग मां से लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति कराता है.
मां ब्रह्मचारिणी पूजा मंत्र
दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
(अर्थात् जिनके एक हाथ में अक्षमाला है और दूसरे हाथ में कमण्डल है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा मां दुर्गा मुझ पर कृपा करें.)
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
इसके बाद अक्षत, फल, फूल, वस्त्र, चंदन, पान-सुपारी आदि पूजा की सामग्री अर्पित करें. पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाते रहें. फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा भी करें.
अब माता की आरती की तैयारी करें. इसके लिए घी और कपूर का दीपक जलाकर माता की आरती करें. फिर दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. पाठ करने के बाद माता के जयकारे लगाएं. ऐसा करने से आपको माता का आशीर्वाद मिलेगा और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी.
मां ब्रह्मचारिणी आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
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