पाकिस्तान की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है—इस बार कारण कोई विपक्ष नहीं, बल्कि खुद सरकार के भीतर उठी आवाजें हैं. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन और गठबंधन सहयोगी पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) ने अलग-अलग प्रांतों की मांग कर सरकार को असहज स्थिति में डाल दिया है.
बजट सेशन के दौरान पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में इन मांगों ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है, जहां सरकार के धार्मिक मामलों के मंत्री सरदार मुहम्मद यूसुफ ने खैबर पख्तूनख्वा से अलग ‘हजारा प्रांत’ की बात की, वहीं पीपीपी के सांसद सैयद मुर्तजा महमूद ने दक्षिण पंजाब को अलग प्रांत बनाने की वकालत कर डाली.
खुद की ही सरकार के खिलाफ मंत्री बोले—'हजारा को अलग करो'
सरदार यूसुफ ने कहा कि खैबर पख्तूनख्वा की सरकार हजारा क्षेत्र के साथ भेदभाव करती रही है. यहां तक कि लोग शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. उनका तर्क है कि छोटे प्रांत बनाने से प्रशासनिक सुगमता बढ़ेगी और स्थानीय विकास के लिए योजनाएं सीधे प्रभावित इलाकों तक पहुंच सकेंगी.
पीपीपी सांसद की दो टूक—‘पंजाब को विभाजित करना जरूरी’
वहीं पीपीपी के नेता सैयद मुर्तजा महमूद ने पंजाब की विशालता को लोकतांत्रिक संतुलन के लिए खतरा बताया. उन्होंने कहा, “पंजाब पाकिस्तान के 60% से ज्यादा क्षेत्रफल पर फैला है. अगर इसे नहीं विभाजित किया गया, तो अन्य क्षेत्रों में असंतोष और अस्थिरता और बढ़ेगी.” उन्होंने दक्षिण पंजाब को अलग राज्य बनाने की पुरानी मांग को फिर ज़ोर से उठाया.
पाकिस्तान में वर्तमान में कितने प्रांत हैं?
पाकिस्तान में इस समय पांच प्रमुख प्रशासनिक क्षेत्र हैं. पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान इसके अलावा, पीओके और इस्लामाबाद को केंद्र-शासित क्षेत्र का दर्जा प्राप्त है. पंजाब देश का सबसे बड़ा और आबादी वाला प्रांत है, जबकि सिंध को आर्थिक रूप से सबसे मजबूत माना जाता है. बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा लंबे समय से राजनीतिक अशांति और अलगाववादी आंदोलनों का केंद्र रहे हैं.
इन मांगों के पीछे क्या राजनीति है?
प्रशासनिक सुविधा: छोटे प्रांत बनाने से विकास योजनाओं को लागू करने में तेजी आ सकती है. ऐसा तर्क हजारा प्रांत की मांग के पक्षधर दे रहे हैं. क्षेत्रीय भेदभाव का आरोप: स्थानीय नेताओं का आरोप है कि मौजूदा प्रांतीय सरकारें इन क्षेत्रों की जरूरतों की अनदेखी कर रही हैं. राजनीतिक फायदा: पीपीपी और पीएमएल-एन दोनों उन क्षेत्रों में राजनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहती हैं, जहां वे पारंपरिक रूप से कमजोर रही हैं—पीपीपी पंजाब में और पीएमएल-एन खैबर पख्तूनख्वा में.
सरकार के लिए खतरे की घंटी
हालांकि हजारा और दक्षिण पंजाब को अलग प्रांत बनाने की मांग नई नहीं है, लेकिन अब जब सत्ता में शामिल पार्टियों के नेता ही खुलकर इस पर बोल रहे हैं, तो यह शहबाज शरीफ सरकार के लिए गंभीर संकट बन सकता है. यह न सिर्फ पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है, बल्कि सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर एक संभावित विच्छेदन की भूमिका भी तैयार कर सकता है.
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