काबुल/इस्लामाबाद: अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद एक बार फिर हिंसक रूप ले चुका है. हेलमंद प्रांत के बहरामचा क्षेत्र में तालिबान लड़ाकों और पाकिस्तानी सेना के बीच हुई भीषण गोलीबारी ने डूरंड रेखा को एक बार फिर विवाद और हिंसा की आग में झोंक दिया है.
यह झड़प ऐसे वक्त में हुई है जब दोनों देशों के बीच रिश्ते पहले से ही तनावपूर्ण हैं, चाहे वह टीटीपी के हमले हों या फिर अवैध सीमा पार आंदोलन. अब सवाल उठता है — क्या यह सिर्फ एक स्थानीय संघर्ष है, या इसके पीछे छिपे हैं बड़े रणनीतिक संकेत?
क्या हुआ मैदान में?
- स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, झड़प का केंद्र रहा डूरंड लाइन के पास बहरामचा क्षेत्र, जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की सीमा से लगता है.
- झगड़े की शुरुआत पाकिस्तान द्वारा सीमा पर नई चौकियों की स्थापना से हुई, जिसका तालिबान ने खुला विरोध किया.
- करीब दो घंटे तक दोनों पक्षों में छोटे हथियारों से भारी फायरिंग होती रही.
- गोलीबारी के बाद पाकिस्तानी सेना ने निर्माण कार्य रोक दिया, जबकि तालिबान ने चेतावनी दी कि डूरंड रेखा पर किसी भी नई चौकी को वह बर्दाश्त नहीं करेगा.
डूरंड लाइन: एक सीमा, दो विरोधाभासी मान्यताएं
- डूरंड रेखा, जो ब्रिटिश राज में खींची गई थी, पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान के साथ आधिकारिक सीमा है.
- लेकिन तालिबान हो या पूर्ववर्ती अफगान सरकार, अफगान पक्ष इस रेखा को कभी स्वीकार नहीं करता.
- पाकिस्तान ने 2021 के बाद जब तालिबान सत्ता में आया, सीमा पर बाड़बंदी और चौकियों के निर्माण की रफ्तार तेज कर दी.
- इसी को लेकर अब तक दर्जनों बार झड़पें हो चुकी हैं, लेकिन हालिया गोलीबारी ने इसे फिर से संभावित टकराव की दिशा में मोड़ दिया है.
तालिबान और पाकिस्तान: कभी दोस्त, अब दुश्मन
जब अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर नियंत्रण किया, तो पाकिस्तान ने इस 'पराजय रहित विजय' का खुलकर स्वागत किया.
लेकिन दो वर्षों में ही रिश्तों में संदेह, असहयोग और आरोपों की दरारें गहराती गई हैं.
प्रमुख मुद्दे जो दरार का कारण बने हैं:
- पाकिस्तान में टीटीपी के बढ़ते हमले, जिनमें कई बार तालिबान पर शरण देने का आरोप लगा.
- पाकिस्तान द्वारा अफगान शरणार्थियों को जबरन वापस भेजना.
- अफगान क्षेत्र में पाकिस्तानी ड्रोन स्ट्राइक्स और सैन्य घुसपैठ.
- तालिबान अब खुद को एक संप्रभु राष्ट्र का शासक मानता है, और पाकिस्तान की रणनीतिक दखलअंदाजी उसे खटकने लगी है.
बलूचिस्तान का संवेदनशील संदर्भ
- यह झड़प केवल पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा विवाद का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसका गहरा संबंध बलूचिस्तान की सुरक्षा और विद्रोह से भी है.
- बलूचिस्तान में विद्रोही गतिविधियों से निपटने के लिए पाकिस्तान सीमा पार से सुरक्षा घेरा मजबूत करना चाहता है.
- वहीं तालिबान चाहता है कि डूरंड रेखा को पारंपरिक पश्तून इलाकों का विभाजन मानते हुए किसी तरह की बाड़बंदी न की जाए.
- यह संघर्ष दो देशों के बीच केवल भूगोलिक अधिकार का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और रणनीतिक वर्चस्व का भी प्रतीक बन गया है.
क्या आगे जंग की जमीन तैयार हो रही है?
फिलहाल दोनों पक्ष इस झड़प पर चुप्पी साधे हुए हैं, लेकिन जमीन पर गतिविधियों से संकेत साफ हैं:
- पाकिस्तान ने सीमा पर अतिरिक्त सैनिक भेजे हैं.
- तालिबान ने चेतावनी दी है कि वह सीमा पर किसी भी प्रकार की नई गतिविधि को सहन नहीं करेगा.
इस स्थिति में यह आशंका भी बनी रहती है कि यदि तनाव यूं ही बढ़ता रहा, तो यह स्थानीय झड़प पूर्ण सैन्य संघर्ष का रूप ले सकती है — जिसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा.
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