Four Brotherhood In Bangladesh: बांग्लादेश की राजनीति में आए नाटकीय मोड़ ने न केवल पड़ोसी देश के भीतर उथल-पुथल मचाई है, बल्कि भारत के लिए एक नई रणनीतिक चुनौती भी पैदा कर दी है. बीते वर्ष विरोध प्रदर्शनों के बीच शेख हसीना सरकार का पतन और फिर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश में सत्ता समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं.
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि नई यूनुस सरकार ने भारत के मुकाबले चीन और पाकिस्तान के साथ नजदीकियां बढ़ाई हैं, और कट्टरपंथी गुटों को खुली छूट देकर भारत की पूर्वोत्तर सीमाओं को अस्थिर करने वाले तत्वों को बल मिल रहा है.
भारत के लिए नई चुनौती
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को बांग्लादेश में उभरते एक खतरनाक गठबंधन से सतर्क रहने की जरूरत है, जिसे ‘फोर ब्रदरहुड’ कहा जा रहा है. यह गठबंधन म्यांमार के तर्ज पर चार रोहिंग्या आतंकी संगठनों का मिला-जुला समूह है:
ARSA (अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी), जिसका गठन 2013 में ‘हराका अल-यकीन’ नाम से अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी ने किया था. ये संगठन पर 2017 के खां माउंग सेक नरसंहार में 99 हिंदू महिलाओं और बच्चों की हत्या का आरोप है.
RSO (रोहिंग्या साल्वेशन ऑर्गनाइजेशन) ने पहले ARSA का विरोध किया. हाल ही में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की मध्यस्थता से ARSA के समझौता हुआ है.
RIM (रोहिंग्या इस्लामी महाज), इस संगठन के नेता मौलवी सलीमुल्लाह हैं. ये बांग्लादेश में कई कट्टरपंथी मदरसे चलाता है
नबी हुसैन के नेतृत्व में ARA (अराकान रोहिंग्या आर्मी) चलाया जा रहा है.
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से जुड़ी आशंकाएं
बांग्लादेशी सुरक्षा बलों ने इसके खिलाफ 10 लाख टका का इनाम रखा है. इन सभी संगठनों को लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से प्रशिक्षण मिला है, और यह गठबंधन पाकिस्तानी संरक्षण में तैयार किया गया है।
कट्टरपंथियों को मिली छूट
नई सरकार ने कट्टरपंथी ताकतों को न केवल खुली छूट दी है, बल्कि इनके बीच एकजुटता को भी बढ़ावा दिया है. पाकिस्तान और तुर्की जैसे देश इस स्थिति का लाभ उठाकर बांग्लादेश में रोहिंग्या मुद्दे को हथियार बना रहे हैं. इस गठबंधन के जरिए भारत की पूर्वोत्तर सीमा को अस्थिर करने की योजना दिखाई दे रही है.
भारत की जमीन पर नजर
ढाका विश्वविद्यालय में हाल ही में प्रदर्शित एक विवादास्पद नक्शे में भारत के बिहार, झारखंड, ओडिशा और समूचे पूर्वोत्तर राज्य, साथ ही म्यांमार के रखाइन प्रांत को 'ग्रेटर बांग्लादेश' का हिस्सा दिखाया गया है. यह सिर्फ एक अकादमिक अभ्यास नहीं, बल्कि एक राजनीतिक इशारा माना जा रहा है.
भारत के लिए क्या मायने रखते हैं ये घटनाक्रम?
सीमा पर सुरक्षा के लिहाज़ से सतर्कता ज़रूरी हो गया है. पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी गुटों से बढ़ा हुआ संपर्क खतरा बन सकता है. चीन-पाक गठजोड़ और कट्टरपंथी संगठनों की बढ़ती ताकत से भारत के लिए भू-राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है. साथ ही आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों को रोहिंग्या कैंपों में संभावित कट्टरपंथी नेटवर्क पर नजर रखनी होगी.
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