'बलूचिस्तान बिकाऊ नहीं है, हम इसके लिए...' अमेरिका-पाकिस्तान तेल डील पर बलूचों की ट्रंप को चेतावनी

    अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक बहुप्रतीक्षित ऊर्जा समझौता, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में विशाल तेल भंडार के दोहन और विकास को लेकर रणनीतिक सहयोग को बढ़ाना था, अब विवादों में घिर गया है.

    Balochs warn Trump on US-Pakistan oil deal
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ FreePik

    इस्लामाबाद/वॉशिंगटन/क्वेटा: अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक बहुप्रतीक्षित ऊर्जा समझौता, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में विशाल तेल भंडार के दोहन और विकास को लेकर रणनीतिक सहयोग को बढ़ाना था, अब विवादों में घिर गया है. इस समझौते की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रूथ’ पर की थी.

    लेकिन जिस दिन इस समझौते की औपचारिक पुष्टि हुई, उसी दिन एक कड़े और तीखे विरोध की आवाज उठी और वो भी सीधे बलूचिस्तान से, उस भूभाग से, जिसे पाकिस्तान ऐतिहासिक रूप से अपना हिस्सा बताता रहा है, जबकि बलूच कार्यकर्ता उसे ‘अवैध कब्जा’ करार देते हैं.

    ट्रंप की घोषणा और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

    डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ एक नया ‘एनर्जी डेवलपमेंट पार्टनरशिप’ शुरू कर रहा है, जिसका प्रमुख उद्देश्य देश के तेल संसाधनों को खोजने और उनका व्यावसायिक दोहन करने में सहायता करना है. ट्रंप ने इसे अमेरिका और पाकिस्तान के बीच 'साझेदारी का नया अध्याय' बताया.

    इसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तुरंत इस घोषणा का स्वागत किया और इसे ऐतिहासिक बताया. उन्होंने आशा जताई कि यह समझौता अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को नई ऊँचाई तक ले जाएगा.

    बलूचिस्तान से आई सख्त आपत्ति

    लेकिन जिस जमीन पर इन तेल भंडारों की खोज होनी है, उसे लेकर सवाल उठने लगे हैं. बलूच मानवाधिकार कार्यकर्ता मीर यार बलूच ने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप को एक खुले पत्र के माध्यम से कड़ी चेतावनी दी है. उन्होंने ट्रंप को साफ शब्दों में बताया कि अमेरिकी नेतृत्व को पाकिस्तान की सैन्य सरकार ने संसाधनों की वास्तविक स्थिति और स्वामित्व को लेकर गुमराह किया है.

    मीर यार बलूच ने कहा, "ट्रंप की ओर से तेल और खनिज भंडार की पहचान भले सही हो, लेकिन यह स्पष्ट किया जाना जरूरी है कि ये भंडार पंजाब या तथाकथित ‘मुख्य पाकिस्तान’ में नहीं हैं, बल्कि ये बलूचिस्तान गणराज्य में स्थित हैं, एक ऐतिहासिक रूप से स्वतंत्र राष्ट्र जिसे पाकिस्तान ने जबरन कब्जा कर रखा है."

    बलूचिस्तान बिकाऊ नहीं है- मीर यार बलूच

    बलूच नेता ने चेताया कि यदि अमेरिका पाकिस्तान के साथ मिलकर बलूचिस्तान में तेल और खनिज संसाधनों का दोहन करता है, तो वह एक रणनीतिक भूल करेगा. उन्होंने कहा, "बलूचिस्तान बिकाऊ नहीं है. न पाकिस्तान, न चीन और न ही कोई अन्य विदेशी ताकत हमारे संसाधनों को छू सकती है, जब तक बलूच जनता की स्पष्ट और सामूहिक सहमति न ली जाए. यह हमारे संप्रभु अधिकार का मामला है."

    वैश्विक सुरक्षा को खतरा?

    मीर यार बलूच ने अपने पत्र में यह भी आरोप लगाया कि यदि पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी ISI को बलूचिस्तान के ट्रिलियन डॉलर के खनिज संसाधनों पर नियंत्रण मिलता है, तो इससे आतंकवादी संगठनों को फंडिंग का एक नया स्रोत मिल जाएगा. उन्होंने कहा, "इन संसाधनों का लाभ बलूचिस्तान की जनता को नहीं मिलेगा. इसके उलट, ये संसाधन जिहादी आतंकवादियों को आर्थिक मदद देंगे, जो भारत और इज़राइल के खिलाफ सक्रिय हैं. इससे न केवल दक्षिण एशिया, बल्कि वैश्विक स्थिरता भी खतरे में पड़ जाएगी."

    क्या अमेरिका को कदम पीछे खींचने होंगे?

    बलूच नेता की चेतावनी का असर अब वॉशिंगटन की नीतिगत गलियों में महसूस किया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, शांति एवं सुरक्षा थिंक टैंक, और अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्य इस मुद्दे को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं.

    बलूच नेता का यह पत्र ऐसे समय में आया है जब अमेरिका अपनी एशिया नीति को फिर से संतुलित करने की कोशिश कर रहा है, और भारत जैसे लोकतांत्रिक साझेदारों को प्राथमिकता देने की ओर बढ़ रहा है. पाकिस्तान, जो पहले अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी था, अब चीन के प्रभाव में जा चुका है. ऐसे में बलूच नेताओं की यह आपत्ति अमेरिका के लिए गंभीर सवाल खड़े करती है.

    पाकिस्तान की स्थिति संदिग्ध

    पाकिस्तान लगातार बलूचिस्तान को अपना ‘संप्रभु’ भूभाग बताता आया है, लेकिन बलूच संगठनों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों का कहना है कि 1948 में इस्लामाबाद ने बलूचिस्तान पर सैन्य बल के माध्यम से कब्जा कर लिया था. तब से लेकर अब तक वहां आज़ादी के लिए संघर्ष चल रहा है, जिसे पाकिस्तान आतंकी गतिविधि करार देता है.

    बलूच नेताओं का कहना है कि पाकिस्तान केवल बलूचिस्तान की संपत्ति चाहता है, लेकिन उसके लोगों के अधिकार, स्वशासन और सुरक्षा के लिए वह कुछ नहीं करता.

    अब आगे क्या?

    अमेरिका के लिए यह एक कठिन संतुलन act बनता जा रहा है. एक ओर वह पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश में ऊर्जा जैसे व्यावसायिक अवसरों को देख रहा है, वहीं दूसरी ओर उसके लोकतांत्रिक मूल्य, मानवाधिकार की प्रतिबद्धता, और दक्षिण एशिया में स्थायित्व की जिम्मेदारी उसे रोक रही है.

    डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार-प्रधान विदेश नीति में ऐसे विरोधाभास पहले भी देखे गए हैं, लेकिन अब यह मामला केवल आर्थिक नहीं बल्कि नैतिक और रणनीतिक दोनों मोर्चों पर चुनौतीपूर्ण बन गया है.

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