'तेल बलूचिस्तान में है, पाकिस्तान में नहीं, मुनीर ने ट्रंप को...' US-PAK डील पर मीर बलोच की चेतावनी

    हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक कथित तेल समझौते को लेकर भू-राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है.

    Balochistan warning to Trump on US-Pakistan Oil deal
    Image Source: ANI/ File

    हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक कथित तेल समझौते को लेकर भू-राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है. इस समझौते की घोषणा के बाद जहां पाकिस्तान ने इसे एक बड़ी उपलब्धि बताया, वहीं बलूच राष्ट्रवादी नेताओं ने इस डील पर गहरा विरोध जताया है. बलूचिस्तान से आने वाले प्रमुख नेता मीर यार बलोच ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक खुला पत्र लिखकर इस डील की वैधता पर सवाल उठाए हैं और इसे बलूच जनता के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है.

    तेल बलूचिस्तान की ज़मीन में है, पाकिस्तान की नहीं

    मीर यार बलोच ने अपने पत्र में स्पष्ट शब्दों में लिखा कि बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा विशेष रूप से तेल और खनिज किसी विदेशी या पाकिस्तान सरकार की संपत्ति नहीं है. उन्होंने ट्रंप को संबोधित करते हुए कहा, "आपको इस क्षेत्र की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति को लेकर जानबूझकर गुमराह किया गया है. जनरल आसिम मुनीर ने आपको यह भरोसा दिलाया कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा है, जबकि सच्चाई यह है कि बलूचिस्तान एक ऐतिहासिक रूप से स्वतंत्र राष्ट्र रहा है जिसे जबरन पाकिस्तान में शामिल किया गया."

    बलोच नेता ने यह भी जोड़ा कि बलूचिस्तान की जनता ने कभी पाकिस्तान में विलय को स्वीकार नहीं किया और आज भी अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है. उनके अनुसार, बलूच भूमि पर विदेशी कंपनियों या शक्तियों द्वारा कोई भी व्यापारिक समझौता एकतरफा और अवैध माना जाएगा.

    अमेरिका-पाकिस्तान तेल समझौता

    अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुई इस तेल डील को कई विशेषज्ञ भारत के खिलाफ एक कूटनीतिक चाल के तौर पर देख रहे हैं. ट्रंप ने यह तक कह दिया कि भविष्य में भारत को भी पाकिस्तान से तेल खरीदना पड़ सकता है. इस बयान के बाद क्षेत्र में राजनीतिक तनाव और बढ़ गया है, क्योंकि भारत के लिए ऊर्जा नीति किसी एक देश पर निर्भरता के खिलाफ रही है.

    बलूच नेताओं का मानना है कि यह डील न केवल बलूचिस्तान की संप्रभुता के खिलाफ है, बल्कि स्थानीय लोगों के अधिकारों की पूरी तरह से अनदेखी भी है. मीर यार बलोच ने साफ किया कि बलूचिस्तान न तो पाकिस्तान की जागीर है और न ही किसी अंतरराष्ट्रीय सौदेबाजी की वस्तु.

    CPEC और बलूचों की नाराज़गी

    बलूचिस्तान में संसाधनों का दोहन कोई नई बात नहीं है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) लंबे समय से इस क्षेत्र की राजनीति में अस्थिरता का बड़ा कारण रहा है. स्थानीय बलूच समुदायों का आरोप है कि इस परियोजना के तहत उनके संसाधनों को चीन और पाकिस्तान के आर्थिक हितों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि बलूच जनता को न तो लाभ मिल रहा है और न ही निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी.

    CPEC परियोजनाओं की वजह से बलूचिस्तान में विरोध-प्रदर्शन, असंतोष और सशस्त्र विद्रोह बढ़े हैं. मीर यार बलोच के अनुसार, "हमारा संघर्ष सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि अस्तित्व का है. हमारे संसाधनों पर पहला हक बलूच जनता का है. यह तय करने का अधिकार इस्लामाबाद या लाहौर के दफ्तरों को नहीं है."

    बलूच राष्ट्रवाद की ऐतिहासिक जड़ें

    बलूच राष्ट्रवाद की जड़ें 1947 से पहले की घटनाओं में देखी जा सकती हैं, जब बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत था. पाकिस्तान द्वारा इसे जबरन विलय किए जाने के बाद से ही इस क्षेत्र में अलगाववाद की भावनाएं पनपती रही हैं. दशकों से बलूच नेताओं ने यह दावा किया है कि पाकिस्तान ने उनकी भूमि और संस्कृति को दबाने का प्रयास किया है और संसाधनों को अपने हित में इस्तेमाल किया है.

    आज बलूच युवा शिक्षित हैं, संगठित हैं और वैश्विक मंचों पर अपनी बात रखने में सक्षम हो चुके हैं. मीर यार बलोच का यह पत्र भी इसी क्रम में एक मजबूत प्रयास है – वह दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि बलूचिस्तान केवल एक संसाधन-समृद्ध क्षेत्र नहीं, बल्कि एक जीवित, संघर्षरत और आत्मसम्मान रखने वाला समाज है.

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