इंडियन नेवी में शामिल होगा ASW शैलो वॉटर क्राफ्ट 'अर्णाला', एंटी सबमरीन वॉरफेयर के लिए क्यों है खास?

    भारत की समुद्री रक्षा प्रणाली को और अधिक सशक्त बनाते हुए भारतीय नौसेना 18 जून को अपने पहले एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW-SWC) ‘INS अर्णाला’ को सक्रिय सेवा में शामिल करेगी.

    ASW shallow water craft Arnala will be included in Indian Navy
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- ANI

    नई दिल्ली: भारत की समुद्री रक्षा प्रणाली को और अधिक सशक्त बनाते हुए भारतीय नौसेना 18 जून को अपने पहले एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW-SWC) ‘INS अर्णाला’ को सक्रिय सेवा में शामिल करेगी. यह समारोह विशाखापत्तनम के नेवल डॉकयार्ड में आयोजित होगा और इसकी अध्यक्षता थल, जल व वायु तीनों सेनाओं के प्रमुख, सीडीएस जनरल अनिल चौहान करेंगे.

    ASW-SWC परियोजना की पहली कड़ी

    INS अर्णाला, भारतीय नौसेना के लिए स्वदेशी रूप से विकसित की जा रही 16 एंटी-सबमरीन वॉरशिप्स में से पहला पोत है. इसका निर्माण कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) द्वारा, L&T शिपबिल्डिंग के सहयोग से, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत किया गया है.

    इस पोत की 8 मई को नौसेना को औपचारिक रूप से सुपुर्दगी हो चुकी है और अब इसका औपचारिक कमीशनिंग समारोह होगा.

    स्वदेशी निर्माण और उद्योग का संबल

    INS अर्णाला की सबसे उल्लेखनीय विशेषता है इसका 80% से अधिक स्वदेशी निर्माण. इस परियोजना में 55 से अधिक MSMEs की भागीदारी ने न केवल भारत की ‘आत्मनिर्भर रक्षा’ रणनीति को बल दिया है, बल्कि घरेलू नौसेना निर्माण क्षमताओं को भी गति दी है.

    तकनीकी क्षमताएं और सामरिक महत्व

    INS अर्णाला को खासतौर पर उथले जल क्षेत्रों में पनडुब्बी रोधी अभियान (Shallow Water ASW Operations) के लिए डिजाइन किया गया है. यह पोत:

    • 77 मीटर लंबा और लगभग 1490 टन वजनी है.
    • डीजल इंजन-वाटरजेट संयोजन से चलने वाला भारतीय नौसेना का अब तक का सबसे बड़ा वॉटरजेट वॉरशिप है.
    • इसमें अत्याधुनिक सेंसर, सोनार, कमांड सिस्टम और एंटी-सबमरीन हथियार स्थापित हैं.
    • यह पोत सबमरीन ट्रैकिंग, खोज एवं बचाव, और निम्न-तीव्रता समुद्री मिशनों के लिए उपयुक्त है.

    इतिहास से प्रेरणा: अर्णाला नाम और प्रतीक

    इस युद्धपोत का नाम महाराष्ट्र के ऐतिहासिक अर्णाला किले से प्रेरित है, जो 1737 में मराठा सेनापति चिमाजी आप्पा द्वारा वैतरणा नदी के मुहाने पर बनवाया गया था. यह किला उत्तरी कोंकण की रक्षा की अग्रिम चौकी के रूप में जाना जाता था.

    INS अर्णाला की संरचना उसी किले की सुदृढ़ता और रणनीतिक सोच को समर्पित है. इसके प्रतीक चिन्ह (क्रेस्ट) में एक नीले पृष्ठभूमि पर स्टाइलिश ऑगर शेल प्रदर्शित है, जिसमें देवनागरी लिपि में जहाज का नाम लिखा गया है — यह भारत की समृद्ध समुद्री सांस्कृतिक विरासत और आत्मविश्वास का प्रतीक है.

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