पाकिस्तान की राजनीति और सेना के बीच शक्ति संतुलन पर बड़ा असर डालने वाले फैसले में गुरुवार को जनरल आसिम मुनीर को एक साथ चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) नियुक्त किया गया. यह पहली बार है जब देश में किसी सैन्य अधिकारी को दोनों पदों का जिम्मा एक साथ सौंपा गया है. दोनों पदों का कार्यकाल पांच साल तय किया गया है और इसकी आधिकारिक मंजूरी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने दी.
शहबाज की सिफारिश पर बनी नियुक्ति
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने राष्ट्रपति कार्यालय को नियुक्ति से जुड़ी समरी भेजी थी. उसी के बाद राष्ट्रपति ने आदेश पर हस्ताक्षर किए. मुनीर इससे पहले इसी साल फील्ड मार्शल के पद पर भी पदोन्नत किए जा चुके हैं, जो पाकिस्तान में बेहद दुर्लभ सैन्य सम्मान माना जाता है.
इसके साथ ही एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू के कार्यकाल को दो साल के लिए बढ़ाने का निर्णय भी मंजूर किया गया है. यह एक्सटेंशन मार्च 2026 के बाद लागू होगा, जब उनका मौजूदा पांच वर्षीय कार्यकाल समाप्त होगा.
संविधान संशोधन के बाद मुनीर बने शक्तिशाली
पाकिस्तान की संसद ने 12 नवंबर को देश की सेना की संरचना और अधिकारों को पुनर्परिभाषित करते हुए 27वां संविधान संशोधन पारित किया था. इस संशोधन के तहत चेयरमैन जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (CJCSC) का पद समाप्त किया गया और उसकी जगह चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) की नई पोजिशन बनाई गई.
CDF के पास तीनों सेनाओं के बीच समन्वय का अधिकार होगा और सबसे अहम बात—इस पद के साथ पाकिस्तान की परमाणु कमान का नियंत्रण भी जुड़ा हुआ है. इसका मतलब है कि नियुक्ति के बाद से मुनीर देश के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बन गए हैं.
2022 में सेना प्रमुख बने थे मुनीर
आसिम मुनीर को नवंबर 2022 में सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था. उनका मूल कार्यकाल तीन साल का था, जो नवंबर 2025 में पूरा होना था. लेकिन पिछले साल संसद से पारित कानून ने सेना प्रमुख का कार्यकाल बढ़ाकर पांच साल कर दिया. इस वजह से उनका पद कानूनी रूप से सुरक्षित था, हालांकि नया CDF पद पाने के लिए उन्हें 29 नवंबर तक नोटिफिकेशन की जरूरत थी.
पिछले हफ्तों में नोटिफिकेशन में देरी को लेकर कई तरह की अटकलें सामने आई थीं. राजनीतिक विरोधियों ने इसे प्रधानमंत्री और सेना के बीच तनाव का संकेत बताया था.
शहबाज शरीफ ने दूरी क्यों बनाई?
भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) के सदस्य तिलक देवाशेर ने दावा किया कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने जानबूझकर खुद को प्रक्रिया से दूर रखा ताकि अंतिम जिम्मेदारी सेना के भीतर ही रहे.
देवाशेर ने यह भी आशंका जताई कि अतिरिक्त शक्तियां मिलने के बाद मुनीर भारत के खिलाफ किसी तरह का दवाब बनाने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है.
उनका कहना था कि इस बात को लेकर पाकिस्तान के भीतर भी भ्रम है कि वास्तविक सैन्य कमान किसके पास है, और यदि मुनीर किसी आक्रामक कदम का फैसला लेते हैं तो स्थिति और अस्थिर हो सकती है.
शहबाज ने सेना पर नियंत्रण खो दिया है- विपक्ष
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि नियुक्ति में देरी ही इस बात का प्रमाण है कि शहबाज शरीफ अब सेना पर प्रभाव नहीं रखते.
पीपुल्स पार्टी के नेता रजा रब्बानी ने भी सवाल उठाया था कि क्या संविधान के ऊपर कोई अनौपचारिक ‘वीटो पॉवर’ काम कर रही है? कई सेवानिवृत्त जनरलों ने प्रक्रिया में देरी को संस्था की प्रतिष्ठा के खिलाफ बताया.
अब सेना के हाथों में परमाणु हथियारों का नियंत्रण
27वें संविधान संशोधन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड (NSC) का गठन. यह नया निकाय पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और मिसाइल सिस्टम की कमान संभालेगा. इससे पहले यह जिम्मेदारी नेशनल कमांड अथॉरिटी (NCA) के पास थी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते थे.
अब NSC का प्रमुख प्रधानमंत्री की मंजूरी से नियुक्त किया जाएगा, लेकिन सिफारिश करने का अधिकार केवल CDF नी सेना प्रमुख को होगा. यह पद अनिवार्य रूप से आर्मी के उच्च अधिकारी को ही मिलेगा, जिससे व्यावहारिक रूप से पाकिस्तान की परमाणु नीति पर सेना का नियंत्रण और मजबूत हो गया है.
संविधान संशोधन पर संयुक्त राष्ट्र की चिंता
पाकिस्तान में हुए इन बदलावों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता की नजर से देखा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार एजेंसी के प्रमुख वोल्कर टुर्क ने चेतावनी दी है कि यह संशोधन न्यायपालिका और नागरिक संस्थाओं की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है.
टुर्क ने कहा कि यह बदलाव पाकिस्तान के न्यायिक ढांचे और ‘रूल ऑफ लॉ’ की नींव को कमजोर कर सकते हैं. हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने 30 नवंबर को जारी बयान में इन आशंकाओं को सिरे से खारिज करते हुए आरोप लगाया कि संयुक्त राष्ट्र को देश के संवैधानिक ढांचे की पर्याप्त जानकारी नहीं है.
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