Supreme Court News: भारतीय सेना के अनुशासन और धर्मनिरपेक्ष चरित्र को सर्वोच्च मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने साफ कहा कि सेना में रहते हुए व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं को उस व्यवस्था से ऊपर नहीं रखा जा सकता जो बल की एकता और अनुशासन को बनाए रखती है. इसी टिप्पणी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने उस पूर्व अधिकारी की याचिका खारिज कर दी, जिसे धार्मिक परेड में शामिल न होने के कारण बर्खास्त किया गया था.
सैमुअल कमलेसन को 2017 में थर्ड कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया था. इस रेजिमेंट में मुख्यत: सिख, जाट और राजपूत समुदाय के सैनिक हैं. सैमुअल को स्क्वाड्रन-बी में ट्रूप लीडर बनाया गया, जहाँ अधिकतर सैनिक सिख थे. रेजिमेंट की परंपरा और प्रोटोकॉल के अनुसार प्रत्येक सप्ताह ट्रूप लीडर को धार्मिक परेड का नेतृत्व करना होता है, यह परेड सैनिकों को रेजिमेंट के धर्मस्थल तक लेकर जाती है.
लेकिन सैमुअल ने ईसाई होने का हवाला देते हुए इन परेडों में शामिल होने से मना कर दिया. उनका कहना था कि रेजिमेंट में केवल मंदिर और गुरुद्वारा हैं और वह इनमें प्रवेश नहीं करेंगे.
समझाने की लंबे समय तक कोशिश
सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें कई बार समझाने का प्रयास किया. यहां तक कि अन्य ईसाई अधिकारी और स्थानीय पादरी ने भी समझाया कि सेना में धार्मिक परेड का उद्देश्य धार्मिक आस्था थोपना नहीं, बल्कि यूनिट की एकजुटता बनाए रखना है, और इससे किसी धर्म की मान्यता को ठेस नहीं पहुँचती. इसके बावजूद जब सैमुअल अपने निर्णय पर अडिग रहे तो 3 मार्च 2021 को सेना प्रमुख के आदेश से उन्हें बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने ठुकराई याचिका
सैमुअल ने इस निर्णय के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने भी सेना की कार्रवाई को उचित ठहराया. हाई कोर्ट ने कहा कि वर्दीधारी बल किसी धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि अनुशासन और एकता के आधार पर चलते हैं. इसलिए यह धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा नहीं, बल्कि वैध आदेश का पालन न करने का मामला है.
अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची शामिल थे, ने भी यही कहा कि सैमुअल का रवैया न केवल अनुशासनहीन था बल्कि इससे उनकी यूनिट के सैनिकों की भावनाएँ भी आहत हुईं.
सेना का सार, अनुशासन और धर्मनिरपेक्षता
अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय सेना का चरित्र पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है और उसकी नींव अनुशासन पर टिकती है. ऐसा व्यक्ति सेना में रहने के योग्य नहीं माना जा सकता जो व्यक्तिगत आस्था के कारण अपने कर्तव्य से पीछे हट जाए.
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