भारत और आर्मेनिया के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी, विशेष रूप से जंगेजुर कॉरिडोर (Zangezur Corridor) के संदर्भ में, क्षेत्रीय भू-राजनीति में महत्वपूर्ण बदलावों का संकेत देती है. यह कॉरिडोर, जो अज़रबैजान के नखचिवान क्षेत्र को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए प्रस्तावित है, न केवल आर्मेनिया की संप्रभुता के लिए खतरा उत्पन्न करता है, बल्कि भारत की मध्य एशिया और यूरोप तक पहुंच को भी प्रभावित कर सकता है.
जंगेजुर कॉरिडोर: भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
जंगेजुर कॉरिडोर का उद्देश्य अज़रबैजान के नखचिवान क्षेत्र को मुख्य भूमि से जोड़ना है, जो अर्मेनिया के स्यूनिक प्रांत से होकर गुजरता है. यदि यह कॉरिडोर बनता है, तो यह अज़रबैजान और तुर्की के बीच सीधा जमीनी संपर्क स्थापित करेगा, जिससे तुर्की की प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि होगी. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने इस परियोजना को "तुर्की दुनिया के लिए एक रणनीतिक मुद्दा" बताया है, जो उनके पैन-तुर्किस्ट दृष्टिकोण को दर्शाता है .
हालांकि, आर्मेनिया इस कॉरिडोर को अपनी संप्रभुता के लिए खतरा मानता है और इसके खिलाफ है. ईरान भी इस परियोजना के खिलाफ है, क्योंकि यह उसके आर्मेनिया के साथ जमीनी संपर्क को बाधित कर सकता है .
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
भारत ने आर्मेनिया के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत किया है, विशेष रूप से रक्षा और कनेक्टिविटी के क्षेत्रों में. भारत ने आर्मेनिया को SWATHI वेपन लोकेटिंग रडार, पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट सिस्टम और ATGM जैसे आधुनिक हथियार निर्यात किए हैं, जो अज़रबैजान, तुर्की और पाकिस्तान की संयुक्त धुरी को संतुलित करने की कोशिश का हिस्सा हैं . इसके अलावा, भारत ने ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के विकास में सहयोग बढ़ाया है, जो मध्य एशिया और यूरोप तक सीधी पहुंच प्रदान करता है .
संभावित रणनीतिक परिदृश्य
यदि भारत आर्मेनिया का समर्थन जारी रखता है और जंगेजुर कॉरिडोर के खिलाफ सक्रिय रूप से काम करता है, तो यह अज़रबैजान, तुर्की और पाकिस्तान की संयुक्त धुरी के खिलाफ एक प्रभावी काउंटर रणनीति हो सकती है. इसके लिए भारत को आर्मेनिया को डिप्लोमेटिक, आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान करनी होगी, साथ ही ईरान और रूस के साथ सहयोग को भी बढ़ाना होगा.
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