वाशिंगटनः एक ऐसा वीडियो सामने आया है जिसने एक बार फिर अमेरिका की सीक्रेट मिलिट्री प्रैक्टिस पर बहस छेड़ दी है. वीडियो में एक ही फॉर्मेशन में अमेरिका का घातक F-22 रैप्टर, और सोवियत युग के मिग-21 और मिग-29 उड़ते नजर आ रहे हैं. अब सवाल उठ रहे हैं — ये तीनों अलग-अलग दौर और ध्रुवों के विमान आखिर एक साथ क्या कर रहे थे? इस रहस्यमयी उड़ान के पीछे छुपा है अमेरिका की वायुसेना का एक पुराना और गुप्त ट्रेनिंग मिशन — “रेड ईगल्स”.
अमेरिका के सीक्रेट ‘रेड ईगल्स’ प्रोजेक्ट की वापसी?
वीडियो को शेयर किया है अमेरिकी अरबपति और पायलट जैरेड आइजैकमैन ने. उन्होंने बताया कि ये उड़ान 4477वें टेस्ट एंड इवैल्यूएशन स्क्वाड्रन यानी रेड ईगल्स के पहले कमांडर कर्नल गेल 'ईविल' पेक को श्रद्धांजलि देने के लिए की गई थी. आइजैकमैन खुद MiG-29UB उड़ा रहे थे, और फॉर्मेशन में MiG-21 सबसे आगे, उसके पीछे F-22 रैप्टर्स और MiG-29 नज़र आ रहे थे. उन्होंने इसे “एक दुर्लभ दृश्य जिसे शायद दोबारा कभी न देखा जाए” बताया.
क्या है रेड ईगल्स और ‘कंस्टेंट पेग’ मिशन?
रेड ईगल्स वो सीक्रेट यूनिट थी जो शीत युद्ध के दौर में अमेरिकी फोर्सेज को सोवियत विमानों से लड़ने की ट्रेनिंग देती थी — और वो भी असल मिग लड़ाकू विमानों के साथ.
इसका हिस्सा थे MiG-17 “Fresco”, MiG-21 “Fishbed” और बाद में शामिल हुआ MiG-23 “Flogger”. अमेरिका ने इन्हें इराक, मिस्र और मोल्दोवा जैसे देशों से गुप्त रूप से खरीदा था. प्रोजेक्ट कंस्टेंट पेग इसी कार्यक्रम का हिस्सा था, जो 1977 से 1988 तक चला. इस ट्रेनिंग का मकसद था अमेरिकी पायलट्स को दुश्मन के फाइटर जेट्स से पहले से परिचित कराना, ताकि युद्ध के मैदान में कोई भी सरप्राइज़ न रह जाए.
कैसे हाथ लगे अमेरिका को रूसी विमान?
1966 में इराकी पायलट मुनीर रेडफा एक MiG-21 को इज़राइल लेकर गया. वहां से अमेरिका भेजा गया और Project Have Doughnut के तहत उसकी स्टडी की गई. मिग-23 अमेरिका को मिस्र से मिला, जिसने 1970 के दशक में रूस से नाता तोड़ा. ये Project Have Pad का हिस्सा बना. और MiG-29, सोवियत यूनियन के सबसे एडवांस विमानों में से एक, मोल्दोवा से खरीदा गया — क्योंकि अमेरिका को डर था कि ईरान इसे हथिया सकता है.
क्या अमेरिका फिर से सक्रिय कर रहा है पुराने प्रोजेक्ट?
हालिया वीडियो और इस उड़ान की टाइमिंग यह इशारा करती है कि अमेरिका फिर से रेड ईगल्स जैसे प्रोजेक्ट्स को सक्रिय कर सकता है, खासतौर पर मौजूदा वैश्विक तनाव के मद्देनजर — जहां रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और ईरान के परमाणु कार्यक्रम जैसे मुद्दे हावी हैं. ऐसी ट्रेनिंग अमेरिकी पायलट्स को भविष्य के संभावित संघर्षों के लिए मानसिक और तकनीकी रूप से तैयार करने का तरीका हो सकती है.
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