ईरान-इज़रायल टकराव की आंच अब खुलकर समुद्र तक पहुंच गई है. एक हफ्ते की बढ़ती तनातनी के बाद अब यह साफ हो गया है कि अमेरिका इस संघर्ष से खुद को अलग रखने के मूड में नहीं है. वॉशिंगटन ने अपनी नौसेना की ताकत को दिखाते हुए भूमध्य सागर में अपनी सबसे घातक रणनीतिक चाल चल दी है — एक, दो नहीं, बल्कि तीन स्ट्राइक ग्रुप्स को ईरान के करीब तैनात कर दिया गया है. यानी अब ईरान की हर हरकत पर अमेरिका की नजर ही नहीं, हथियार भी पूरी तरह तैनात हैं.
अमेरिका अब सिर्फ चेतावनी नहीं देगा
इस ताजा सैन्य तैनाती के केंद्र में हैं — USS Gerald R. Ford, USS Carl Vinson और USS Nimitz जैसे शक्तिशाली स्ट्राइक ग्रुप्स. इनमें से पहला पहले से ही क्षेत्र में था, जबकि बाकी दो को रणनीतिक रूप से लाकर खड़ा कर दिया गया है. यह पूरी तैनाती किसी साधारण सैन्य अभ्यास का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह एक निर्णायक संकेत है कि अमेरिका अब सिर्फ चेतावनी नहीं देगा — सीधा जवाब देने की तैयारी में है.
लेकिन यह समझना जरूरी है कि ये स्ट्राइक ग्रुप्स आखिर हैं क्या. एक 'Carrier Strike Group' सिर्फ एक विमानवाहक पोत नहीं होता, बल्कि यह चलता-फिरता समुद्री युद्धक ठिकाना होता है. इसमें विमानवाहक पोत के साथ क्रूजर, डेस्ट्रॉयर, पनडुब्बी, फ्यूल सप्लाई जहाज और दर्जनों फाइटर जेट्स शामिल होते हैं. ये पूरे इलाके को अपने घेरे में लेकर जमीन, समुद्र और हवा — तीनों स्तरों पर हमला करने में सक्षम होते हैं.
तीनों की खासियत
USS Gerald R. Ford अमेरिका का सबसे आधुनिक सुपरकैरियर है. यह पहले से ही सीरिया और लेबनान के पास तैनात है ताकि ईरान की ओर से मिसाइल या ड्रोन हमले होने पर तुरंत जवाबी कार्रवाई की जा सके. इस पर मौजूद F-35C और EA-18G जैसे फाइटर जेट्स ईरानी ठिकानों को पल भर में तबाह कर सकते हैं.
USS Carl Vinson, जो पहले प्रशांत क्षेत्र में था, अब सीधे भूमध्य सागर में खड़ा है — यानी ईरान के करीब. यह न सिर्फ ईरानी तटीय ठिकानों पर नज़र रखेगा बल्कि जरूरत पड़ने पर हमले की पूरी क्षमता रखता है. इसके साथ-साथ इसका एक और मकसद है — गाजा और लेबनान सीमा से चलने वाले ड्रोन हमलों पर कड़ी निगरानी.
USS Nimitz, जिसे अमेरिका का 'ग्यारहवां बेड़ा' कहा जाता है, आमतौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय रहता है. लेकिन अब इसे वहां से हटाकर इस संकट क्षेत्र में लाया गया है. यह हर तरह के हमले से निपटने के लिए तैयार है — चाहे वो होरमुज जलडमरूमध्य बंद करने की कोशिश हो या सीरिया की ओर से खतरा. साथ ही यह इज़राइल और खाड़ी देशों के बेस से सामंजस्य बनाकर तेजी से मूवमेंट कर सकता है.
रूस और सीरिया की सेनाओं के लिए भी कड़ी निगरानी का संकेत
अब अगर इन तीनों बेड़ों की तैनाती को एक बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो यह सिर्फ सैन्य शक्ति प्रदर्शन नहीं है, बल्कि एक सीधा संदेश है. अमेरिका ईरान को यह जताना चाहता है कि अगर उसने इज़राइल या किसी अमेरिकी बेस को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, तो जवाब जमीन से नहीं — समुद्र और आसमान से बमों और मिसाइलों की बारिश के रूप में मिलेगा.
इन स्ट्राइक ग्रुप्स की मौजूदगी सिर्फ ईरान ही नहीं, रूस और सीरिया की सेनाओं के लिए भी कड़ी निगरानी का संकेत है. और इनकी ताकत इतनी है कि किसी भी वक्त यहां से F-35 फाइटर जेट्स और B-52 बॉम्बर्स को रवाना किया जा सकता है — हवा में ही रिफ्यूलिंग करते हुए दुश्मन की सीमा में दाखिल होकर हमला करने के लिए.
इस तैनाती का दूसरा पक्ष भी है — मनोवैज्ञानिक दबाव. क्षेत्रीय सहयोगियों जैसे इज़राइल, क़तर और सऊदी अरब को यह यकीन दिलाना कि अमेरिका अब पूरी तरह उनके साथ है. और ईरान को यह महसूस कराना कि अगर उसने कोई 'गलती' की, तो अंजाम अकेले भुगतने होंगे.
तीन स्ट्राइक ग्रुप्स का एक साथ एक ही क्षेत्र में आकर तैनात होना दुर्लभ है. और यह अमेरिका की अब तक की सबसे बड़ी और स्पष्ट समुद्री युद्ध तैयारी मानी जा रही है. यह सब बताता है कि आने वाले दिन सिर्फ बयानबाजी के नहीं होंगे — बल्कि कार्रवाई के हो सकते हैं.
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