वाशिंगटन/तेहरान: इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, अमेरिका ने अपनी नौसैनिक और सैन्य तैनाती को खाड़ी क्षेत्र की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया है. अमेरिकी अधिकारियों ने शुक्रवार को पुष्टि की कि संभावित जवाबी हमलों और क्षेत्रीय अस्थिरता की आशंका के मद्देनजर, अमेरिकी सेना की तैयारियां तेज कर दी गई हैं.
अधिकारियों के मुताबिक, अमेरिकी नौसेना के डेस्ट्रॉयर ‘यूएसएस थॉमस हडनर’ को पूर्वी भूमध्य सागर की ओर बढ़ने का आदेश दिया गया है. इसके अलावा, अन्य युद्धपोतों को भी पश्चिम एशिया में तैनाती के लिए तैयार रहने को कहा गया है ताकि यदि हालात बिगड़ते हैं तो अमेरिकी नेतृत्व तत्काल सैन्य विकल्पों का इस्तेमाल कर सके.
ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के साथ की बैठक
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पश्चिम एशिया में उत्पन्न होते हालात की समीक्षा के लिए अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है. सूत्रों के अनुसार, ट्रंप प्रशासन पश्चिम एशिया में बढ़ती सैन्य गतिविधियों और संभावित संघर्ष के व्यापक प्रभावों का मूल्यांकन कर रहा है.
इजरायल को मिली अमेरिकी खुफिया जानकारी
अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार, हालिया इजरायली हमलों में अमेरिका की खुफिया जानकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अमेरिकी एजेंसियों द्वारा दी गई 'एक्सक्विजिट' यानी अत्यंत सटीक खुफिया सूचनाओं के आधार पर इजरायल ने ईरान के रणनीतिक ठिकानों पर हमले को अंजाम दिया. हालांकि अमेरिका ने इस सैन्य कार्रवाई में प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा नहीं लिया, लेकिन उसकी खुफिया मदद को इजरायल के लिए "मौजूदा स्थिति में निर्णायक" माना जा रहा है.
इजरायल की रक्षा में हम साथ- अमेरिका
अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो ने एक प्रेस वार्ता में स्पष्ट किया कि अमेरिका इजरायल की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा, "अगर ईरान या उसके समर्थक समूहों की ओर से इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइल हमला किया जाता है, तो अमेरिका इजरायल की सुरक्षा के लिए खड़ा रहेगा." अमेरिकी अधिकारियों का यह भी कहना है कि अगले कुछ दिनों में स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो सकती है, क्योंकि क्षेत्र में सैन्य गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं.
खाड़ी क्षेत्र में बढ़ती सैन्य हलचल
अमेरिका द्वारा खाड़ी क्षेत्र में युद्धपोतों और सैन्य संसाधनों की तैनाती इस ओर इशारा करती है कि वाशिंगटन स्थिति को काफी गंभीरता से ले रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपने मित्र देशों को सुरक्षा का आश्वासन देता है, साथ ही क्षेत्रीय युद्ध की स्थिति में अपनी सैन्य उपस्थिति से संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है.
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