ओमान में अमेरिका और ईरान के बीच हुए पहले दौर की बातचीत को ईरानी अधिकारियों ने “सकारात्मक” बताया है, लेकिन कूटनीतिक गलियारों में अब यह सवाल उठने लगे हैं—क्या वाकई बातचीत उतनी सफल रही, जितना दर्शाया जा रहा है? इसकी वजह है—अमेरिका द्वारा अपने दूसरे एयरक्राफ्ट कैरियर USS Carl Vinson को मध्य पूर्व में तैनात करना.
एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट और सैटेलाइट इमेजेस के अनुसार, भारी संख्या में फाइटर जेट्स और हमलावर जहाजों से लैस यह स्ट्राइक ग्रुप अब अरब सागर में एक्टिव हो चुका है. यही नहीं, अमेरिका की ओर से यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि दूसरे दौर की वार्ता कहां होगी, जबकि ईरान का कहना है कि अमेरिकी अधिकारी फिर ओमान लौटेंगे.
दबाव की रणनीति या सैन्य तैयारी?
यूएसएस कार्ल विंसन की मौजूदगी ऐसे वक्त में दर्ज की गई है जब यमन में हूती विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों पर संदिग्ध अमेरिकी हवाई हमले हुए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि यदि ईरान के साथ बातचीत असफल होती है, तो उनके परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाया जाएगा.
ईरान भी पीछे नहीं है. तेहरान ने बार-बार कहा है कि यदि दबाव बढ़ता है तो वह अपने यूरेनियम भंडार को हथियार-स्तर तक समृद्ध कर सकता है. यानी, बातचीत सफल नहीं हुई तो दोनों पक्षों के लिए टकराव तय माना जा रहा है.
ट्रंप का दोहरा रवैया?
गौरतलब है कि मौजूदा बातचीत के केंद्र में 2015 का परमाणु समझौता भी है, जिससे अमेरिका 2018 में ट्रंप प्रशासन के तहत बाहर निकल गया था. हालांकि अब उनके मिडिल ईस्ट दूत स्टीव विटकॉफ ने संकेत दिए हैं कि बातचीत में मिसाइल सिस्टम, परमाणु ट्रिगर डिवाइस और अन्य संवेदनशील विषय शामिल हैं. उन्होंने कहा, “हम कूटनीतिक समाधान की संभावना तलाश रहे हैं.”
USS Carl Vinson: एक चलता-फिरता हवाई अड्डा
यह एयरक्राफ्ट कैरियर अकेले ही किसी भी क्षेत्र में ताकत का संतुलन बदलने की क्षमता रखता है:
65-75 लड़ाकू विमान, जिनमें शामिल हैं:
साथ में तैनात हैं:
ये सभी एक साथ मिलकर एक फुल-स्केल हमला समूह (Strike Group) बनाते हैं, जो ईरान जैसे देश के खिलाफ किसी भी सैन्य कार्रवाई को अंजाम देने में सक्षम हैं.
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