अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में हाल के घटनाक्रम ने अमेरिका और तुर्की के रिश्तों को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है. चीन में आयोजित विक्ट्री डे परेड में शी जिनपिंग, किम जोंग उन और व्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी के बीच अमेरिका के सियासी गलियारों में बेचैनी बढ़ी. अब इसका परोक्ष असर तुर्की पर पड़ने जा रहा है, जो बीते समय में अमेरिका की सैन्य नीतियों से इतर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को लेकर चर्चाओं में रहा है.
वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी संसद कांग्रेस के सामने पेश हुए 2026 नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट (NDAA) पर बहस के दौरान कुछ सांसदों ने तुर्की को हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने संबंधी संशोधन पेश किए हैं. खासतौर पर अमेरिकी F-35 फाइटर जेट्स की बिक्री पर रोक लगाने की सिफारिश की गई है.
क्यों खफा है अमेरिका? आरोपों की लंबी लिस्ट
अमेरिकी सांसद तुर्की के खिलाफ एक नहीं, कई आरोपों को आधार बना रहे हैं. इनमें प्रमुख हैं:
उत्तरी साइप्रस में कब्ज़े को बनाए रखना
2019 में तुर्की द्वारा रूस से S-400 खरीदने के बाद अमेरिका ने उसे F-35 प्रोग्राम से बाहर कर दिया था और 2020 में कुछ प्रतिबंध भी लगाए थे. अब अमेरिकी सांसदों का मानना है कि जब तक तुर्की इन नीतियों में बदलाव नहीं करता, उसे अमेरिका से कोई बड़ा रक्षा सौदा नहीं मिलना चाहिए.
क्या हैं अमेरिका की शर्तें?
रिपब्लिकन सांसद गस बिलिराकिस और डेमोक्रेट ब्रैड श्नाइडर द्वारा प्रस्तावित संशोधन में स्पष्ट कहा गया है कि तुर्की हमास या उसके सहयोगियों को किसी भी प्रकार की मदद नहीं दे रहा हो. इज़राइल को किसी भी प्रकार की सैन्य धमकी न दी गई हो. तुर्की की चीन, रूस, ईरान या उत्तर कोरिया के साथ सैन्य तकनीकी साझेदारी न हो रही हो. साथ ही, प्रस्ताव में यह भी मांग की गई है कि विदेश, रक्षा और वित्त मंत्रालय संयुक्त रूप से एक रिपोर्ट बनाकर कांग्रेस को सौंपें जिसमें तुर्की-हमास संबंधों की गहराई से जांच की गई हो.
इज़राइल को क्यों मिल रही राहत?
मध्य पूर्व में इज़राइल की स्थिति हमेशा से संवेदनशील रही है, और वह किसी भी संभावित खतरे के प्रति सतर्क रहता है. अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी अमेरिकी अधिकारियों से आग्रह किया है कि F-35 जैसे अत्याधुनिक हथियारों की बिक्री तुर्की को न की जाए.
इज़राइल का तर्क है कि यदि पड़ोसी या विरोधी देशों को अमेरिकी उच्च तकनीकी हथियार मिलते हैं, तो उसका सैन्य वर्चस्व कमजोर हो सकता है. इसीलिए, अमेरिकी कांग्रेस में इस मुद्दे को लेकर इज़राइल का दबाव भी महसूस किया जा रहा है.
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