हवाई युद्ध की दुनिया में AWACS (Airborne Early Warning and Control System) विमानों को दशकों से गेमचेंजर माना गया है. चाहे वह दुश्मन की लोकेशन की सटीक जानकारी देना हो या अपने लड़ाकू विमानों को रियल-टाइम गाइड करना—AWACS हमेशा बैकबोन की तरह काम करते आए हैं. लेकिन अब, जैसे-जैसे तकनीक बदल रही है और युद्धक्षेत्र ड्रोन और सैटेलाइट तक पहुंच गया है, AWACS प्लेटफॉर्म की दीर्घकालिक उपयोगिता पर सवाल उठने लगे हैं.
महंगे, असुरक्षित और अब शायद अप्रासंगिक?
इन विमानों की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि ये खुद से अपना बचाव नहीं कर सकते. ये फ्रंटलाइन से दूर उड़ते हैं, लेकिन फिर भी जब कोई दुश्मन मिसाइल या ड्रोन इनकी ओर बढ़ता है, तो उनके पास कोई ठोस बचाव प्रणाली नहीं होती. यही कारण है कि हाल ही में हुए कई संघर्षों में AWACS को दुश्मन ने “सॉफ्ट टारगेट” की तरह गिराया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया टकराव में, भारतीय वायुसेना की S-400 मिसाइल प्रणाली ने पाकिस्तान का Saab Erieye-2000 फ्लाइंग रडार गिराया. यही नहीं, भोलारी एयरबेस पर एक और एयरबोर्न रडार सिस्टम भारतीय हमले में नष्ट हुआ. इससे यह स्पष्ट हो गया कि इन विमानों की सुरक्षा अब एक चुनौती बन चुकी है.
भारत के पास कम, पाकिस्तान के पास ज्यादा
भारत जहां सिर्फ तीन ऑपरेशनल AEW&CS विमानों की फ्लीट को बनाए रखने में संघर्ष कर रहा है, वहीं पाकिस्तान के पास 9 से अधिक ऐसे प्लेटफॉर्म हैं. यह स्थिति भारतीय वायु सुरक्षा में एक खतरनाक खाली स्थान की ओर इशारा करती है.
अमेरिका और रूस भी पीछे हट रहे हैं
अमेरिका, जिसने कभी दुनिया की सबसे शक्तिशाली AWACS फोर्स बनाई थी, अब E-3 Sentry को रिटायर करने और E-7 Wedgetail को अपनाने की योजना बना रहा है. लेकिन ताजा रिपोर्ट्स बताती हैं कि वित्तीय कटौतियों के कारण इस योजना पर ब्रेक लग सकता है. दूसरी ओर, रूस ने अपने A-100 AEW&CS प्रोग्राम को चुपचाप रद्द कर दिया है, जो A-50 की जगह लेने वाला था. इसका कारण – पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते ज़रूरी टेक्नोलॉजी और कंपोनेंट्स की कमी.
विशेषज्ञों का कहना है कि रूस को हाल ही में यूक्रेन के ड्रोन हमलों में तीन A-50 विमान गंवाने पड़े हैं. यानी चाहे तकनीक कितनी भी एडवांस हो, ये सिस्टम अब हवाई युद्ध के नए स्वरूप में असुरक्षित साबित हो रहे हैं.
सैटेलाइट बनेंगे नए ‘आंख और कान’?
अब तर्क ये भी सामने आ रहे हैं कि स्पेस-बेस्ड सर्विलांस टेक्नोलॉजी यानी सैटेलाइट्स, कम खर्च में, ज़्यादा कवरेज और बेहतर सुरक्षा दे सकते हैं. यही कारण है कि ब्रिटेन ने भी अपने E-7 विमानों की संख्या घटाकर 3 कर दी है, और लंबे समय तक अपनी वायुसेना को बिना किसी फिक्स्ड विंग AEW प्लेटफॉर्म के ही चलाना पड़ा.
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