50 सालों से रंग पर भेदभाव सुन रहीं शारदा मुरलीधरन, बोलीं 'शाम के कपड़ों की चमक, काजल का सार है काला रंग'

अपनी त्वचा के रंग को लेकर कई अपमानजनक बातें पिछले 50 सालों से वो सह रही हैं. उन्होंने कहा कि 'कल मुख्य सचिव के रूप में मेरे कार्यकाल के बारे में एक दिलचस्प टिप्पणी की गई. उन्होंने बताया कि इस टिप्पणी में कहा गया कि मैं उतनी ही काली हूं जितना कि मेरे पति का रंग गोरा था'. 

50 सालों से रंग पर भेदभाव सुन रहीं शारदा मुरलीधरन, बोलीं 'शाम के कपड़ों की चमक, काजल का सार है काला रंग'
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उसका रंग काला है... देख-देख वो कितना गोरा है यार... ये तो काला है... इस तरह की टिप्पणियां कहीं न कहीं किसी के जुबान से आपने जरूर सुनी होंगी. कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे भेदभाव सिर्फ आम इनसानों के साथ ही होते हैं. यानी जिनके पास कोई पावर है या पद है उनके साथ ऐसा कुछ नहीं होता. अगर आप भी  ऐसा ही सोचते हैं, तो इस अधिकारी की कहानी आपकी सोच बदल डालेगी. हम बात कर रहे हैं केरल की मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन की. उन्होंने ही रंग को लेकर होने वाले भेदभाव का मुद्दा एक बार फिर उठाया है. आइए जानते हैं ऐसा उन्होंने क्या कहा. 

50 सालों से सुन रही ये भेदभाव 

जिस तरह की टिप्पणियां आपने अभी पड़ी ठीक उसी तरह की टिप्पणियां मुख्य सचिव पहले भी सुन चुकी हैं. यह हम नहीं उन्होंने खुद इसका खुलासा किया है. सोशल मीडिया पर उन्होंने एक पोस्ट किया जिसपर उन्होंने कहा कि अपनी त्वचा के रंग को लेकर कई अपमानजनक बातें पिछले 50 सालों से वो सह रही हैं. उन्होंने कहा कि 'कल मुख्य सचिव के रूप में मेरे कार्यकाल के बारे में एक दिलचस्प टिप्पणी की गई. उन्होंने बताया कि इस टिप्पणी में कहा गया कि मैं उतनी ही काली हूं जितना कि मेरे पति का रंग गोरा था'. 

लोगों की इस टिप्पणी का उन्होंने खुलकर जवाब दिया और बताया कि मुझे अपने सांवलेपन को स्वीकार करना होगा. इसलिए यह एक पोस्ट है जो आज मैंने सुबह ही लिखा था. लेकिन इसे हटा दिया था. क्योंकि कई लोगों के रिएक्शन्स से मैं घबरा गई थी. उन्होंने कहा कि अब दोबारा इसे मैं पोस्ट कर रही हूं क्योंकि कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें मेरे इस रंग से परेशानी नहीं और वो ये चाहते हैं कि ऐसे मुद्दों पर बातचीत होती रहे. जिससे मैं भी सहमत हूं. इस कारण इसे एक बार फिर से पोस्ट कर रही हूं. 

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अब इसकी आदत हो गई है 

अपने पोस्ट में उन्होंने लिखा कि पिछले सात महीने से पूर्ववर्ती से लगातार उनकी तुलना की जा रही है. इसका उन्हें पहले तो बुरा लगा लेकिन अब इसकी आदत हो गई है. उन्होंने कहा कि भले ही आदत हुई हो लेकिन इस बार जब उन्हें सावला कहा गया तो उन्हें दुख हुआ. मुरलीधरण ने कहा कि इस बार मुझे ऐसा लगा कि काला होना कोई शर्मनाक बात है. सांवले शब्द का इस्तेमाल नकारात्मक अर्थों में किया गया है. जैसे कि सावंला यानी बुरा, निराशाजनक, या क्रूर.

क्यों बुरा माना जाता है ?

हालांकि इसी दौरान उन्होंने अपने पोस्ट में सवाल किया कि आखिर सांवले रंग को बुरा क्यों माना जाता है? काला रंग तो ब्रह्मांड की सच्चाई है. यह सब कुछ सोख सकता है. यह ऊर्जा का सबसे शक्तिशाली स्तोत्र है. उन्होंने कहा कि काला रंग ऐसा रंग है जो हर किसी पर अच्छा लगता है.  यह ऑफिस के कपड़ों का रंग है, शाम के कपड़ों की चमक है, काजल का सार है, और बारिश का वादा है.

इस पोस्ट में उन्होंने एक बचपन का किस्सा सुनाया और कहा कि जब वो चार साल की थीं. उस समय उन्होंने अपनी मां से पूछा था कि क्या वह उन्हें वापस अपने गर्भ में डालकर फिर से गोरा बना सकती हैं. उन्होंने कहा कि 50 सालों तक अपना जीवन उन्होंने ये सोच कर बिताया कि आखिर उनका रंग अच्छा नहीं है. क्योंकि उन्होंने सांवले रंग में सुंदरता और मूल्य नहीं देखा. मुरलीधरण ने बताया कि वो गोरी त्वचा की ओर आकर्षित थीं. क्योंकि उन्हें लगता था कि गोरा रंग के लोग बेहतर होते हैं. इसलिए उन्हें किसी तरह इसकी भरपाई करनी होगी.