Mahashivratri 2025: हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में खास माना जाता है. इस अवसर पर शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और चारों ओर भक्ति की अनूठी रौनक देखने को मिलती है. मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महादेव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, जिसके कारण यह पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. हालांकि, यह भी कहा जाता है कि व्रत के नियमों का पालन न करने से शिव जी नाराज हो सकते हैं और व्रत का फल प्राप्त नहीं होता. इसलिए व्रत के दौरान नियमों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है. आइए जानते हैं कि महाशिवरात्रि के व्रत में क्या खाना चाहिए और किन चीजों से परहेज करना चाहिए.
महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाएं?
महाशिवरात्रि के व्रत में हल्का और सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. आप फल, दूध, दही, मिठाई, सिंघाड़े का हलवा, साबूदाना की खिचड़ी, और कुट्टू के आटे की पूरी खा सकते हैं. इसके साथ ही नारियल पानी और समा चावल की खीर भी व्रत के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं. ये सभी चीजें न केवल नियमों के अनुरूप होती हैं, बल्कि दिनभर ऊर्जा बनाए रखने में भी मदद करती हैं.
महाशिवरात्रि व्रत में क्या न खाएं?
व्रत के दौरान कुछ चीजों से पूरी तरह परहेज करना चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लहसुन, प्याज, मांस, और मदिरा का सेवन वर्जित है. साथ ही अन्न (चावल, गेहूं आदि) और नमक से भी दूरी बनाए रखनी चाहिए. इन नियमों का उल्लंघन करने से व्रत टूट सकता है और जीवन में परेशानियां आ सकती हैं. एक खास बात का ध्यान रखें कि भोजन करने से पहले उसे भगवान शिव को भोग जरूर लगाएं, इससे व्रत का पुण्य और बढ़ जाता है.
महाशिवरात्रि का यह पर्व न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि आत्मसंयम और नियमों के पालन का भी संदेश देता है. इसलिए इस दिन को पूरी श्रद्धा और सावधानी के साथ मनाएं ताकि महादेव का आशीर्वाद सदा बना रहे.
महाशिवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और इसे भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है. हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाला यह त्योहार न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी खास है. इस दिन शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लग जाता है और रातभर जागरण, भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना का दौर चलता है. मान्यता है कि इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और धतूरा चढ़ाने से महादेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर पुकार सुनते हैं.
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा
महाशिवरात्रि से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था, जिसे उनके मिलन के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. वहीं, एक अन्य कथा में कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था, जिसके कारण उनका गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए. इन कथाओं के कारण यह पर्व और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.
व्रत के नियम और महत्व
महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले भक्तों के लिए नियमों का पालन करना अनिवार्य माना जाता है. ऐसा विश्वास है कि नियमों की अवहेलना करने से न केवल व्रत का फल नष्ट हो जाता है, बल्कि भगवान शिव का कोप भी सहना पड़ सकता है. इस दिन भक्त प्रात:काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और शिवलिंग की पूजा करते हैं. रात में जागरण और शिव मंत्रों का जाप करना भी इस व्रत का अभिन्न हिस्सा है. यह व्रत आत्मशुद्धि, संयम और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है.
पूजा का विशेष विधान
महाशिवरात्रि के दिन पूजा का विशेष तरीका होता है. भक्त सुबह से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं. शिवलिंग पर दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. इसके बाद बेलपत्र, धतूरा, और फूल अर्पित किए जाते हैं. "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप और रुद्राभिषेक करना भी इस दिन बेहद फलदायी माना जाता है. रात में चार प्रहर की पूजा का विधान है, जिसमें हर प्रहर में अलग-अलग सामग्री से शिव जी की अराधना की जाती है.
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