नई दिल्ली: 1 फरवरी 2003, एक तारीख जिसे इतिहास में एक दुखद घटना के रूप में याद किया जाता है. नासा का अंतरिक्ष यान कोलंबिया स्पेस शटल (STS-107) अपनी सफल मिशन यात्रा के बाद धरती की ओर लौट रहा था. इस शटल में भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला भी सवार थीं. उनकी यह दूसरी अंतरिक्ष यात्रा थी, जिसे पूरा करके वे वापस आ रही थीं. लेकिन दुर्भाग्यवश, धरती से केवल 16 मिनट की दूरी पर एक भयानक हादसा हुआ और यह शटल जलकर खाक हो गया.
मिशन की समाप्ति से कुछ पल पहले हुआ हादसा
अंतरिक्ष में 16 दिन बिताने के बाद, कल्पना चावला और उनके छह साथियों को सुरक्षित लौटना था. लेकिन जैसे ही कोलंबिया शटल धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर रहा था, उसका संपर्क नासा के मिशन कंट्रोल से कट गया. कुछ ही सेकंड बाद, यान एक भीषण विस्फोट में तब्दील हो गया और अंतरिक्ष यात्री आग की लपटों में समा गए.
एक छोटी सी गलती, बड़ा हादसा
इस मिशन की शुरुआत 16 जनवरी 2003 को हुई थी. टेक-ऑफ के दौरान, शटल के ईंधन टैंक से एक इंसुलेटिंग फोम का टुकड़ा टूटकर बाएं विंग से टकरा गया था. विशेषज्ञों के अनुसार, इस टक्कर से स्पेस शटल की सुरक्षा टाइल्स को नुकसान पहुंचा, जो वायुमंडल में प्रवेश के दौरान शटल को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए बनाई गई थीं. जैसे ही शटल पृथ्वी के वायुमंडल में पहुंचा, हवा के घर्षण से पैदा हुई गर्मी ने उस कमजोर हिस्से को और कमजोर कर दिया और पूरा यान जलकर बिखर गया.
एक साधारण लड़की से अंतरिक्ष यात्री तक का सफर
1 जुलाई 1962 को हरियाणा के करनाल में जन्मी कल्पना चावला बचपन से ही आसमान और अंतरिक्ष के रहस्यों की ओर आकर्षित थीं. करनाल में पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक (B.Tech) किया.
1982 में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चली गईं, जहां उन्होंने टेक्सास यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की. इसके बाद 1986 में उन्होंने दूसरी मास्टर डिग्री और PhD भी पूरी की.
अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला
1991 में अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने के बाद, कल्पना चावला नासा से जुड़ गईं. 1997 में, वे कोलंबिया स्पेस शटल (STS-87) के जरिए अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. इस मिशन में उन्होंने 376 घंटे (15 दिन और 16 घंटे) अंतरिक्ष में बिताए और 65 लाख मील की दूरी तय की.
कल्पना चावला का दूसरा और आखिरी मिशन
16 जनवरी 2003 को कल्पना चावला अपने दूसरे और अंतिम मिशन पर निकलीं. मिशन STS-107 में उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधानों पर काम किया. यह एक सफल अभियान था, लेकिन इसका अंत बेहद दुखद साबित हुआ. 1 फरवरी 2003 को, जब वे धरती पर लौट रही थीं, तो यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उनकी यात्रा हमेशा के लिए अधूरी रह गई.
कल्पना चावला: सादगी और समर्पण की मिसाल
कल्पना चावला को हमेशा सादगी पसंद थी. वे फैशन और मेकअप से दूर रहती थीं और खुद को सिर्फ अपने काम के प्रति समर्पित रखती थीं. उनके आत्मविश्वास और जुनून ने उन्हें अंतरिक्ष तक पहुंचाया, लेकिन दुर्भाग्य से उनका सफर अधूरा रह गया.
दुनिया भर के लिए प्रेरणा
कल्पना चावला का सपना था कि भारत और दुनिया के अन्य देशों के युवा अंतरिक्ष की दुनिया में कदम रखें. उनकी असामयिक मृत्यु के बाद भी, वे भारत और पूरी दुनिया के युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनी हुई हैं. आज भी नासा और भारत में उनके नाम पर कई शिक्षण संस्थान और अवार्ड दिए जाते हैं, जो उनके अमर योगदान को याद दिलाते हैं.
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