S-400 vs F-35: ट्रंप ने एर्दोगन को दुविधा में डाला, जानिए अमेरिका-तुर्की विवाद की पूरी कहानी

अमेरिका और तुर्किये लंबे समय से नाटो (NATO) के तहत रणनीतिक साझेदार रहे हैं, जिससे दोनों देशों को आर्थिक, सैन्य और भू-राजनीतिक सहयोग का लाभ मिला है. लेकिन रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने और एफ-35 लड़ाकू विमान कार्यक्रम से तुर्किये को बाहर किए जाने के कारण उनके रिश्तों में तनाव बढ़ गया है.

S-400 vs F-35 Trump puts Erdogan in a dilemma know the full story of the US-Türkiye dispute
डोनाल्ड ट्रम्प और रजब तैयब एर्दोगन/Photo- ANI

अमेरिका और तुर्किये लंबे समय से नाटो (NATO) के तहत रणनीतिक साझेदार रहे हैं, जिससे दोनों देशों को आर्थिक, सैन्य और भू-राजनीतिक सहयोग का लाभ मिला है. लेकिन रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने और एफ-35 लड़ाकू विमान कार्यक्रम से तुर्किये को बाहर किए जाने के कारण उनके रिश्तों में तनाव बढ़ गया है. इस विवाद का भविष्य न केवल अमेरिका-तुर्किये संबंधों, बल्कि नाटो और वैश्विक सुरक्षा पर भी असर डाल सकता है.

एस-400 विवाद: रणनीतिक चुनौती

यह विवाद 2017 में शुरू हुआ, जब तुर्किये ने रूस से 2.5 अरब डॉलर में एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने का समझौता किया. एस-400 दुनिया की सबसे आधुनिक वायु रक्षा प्रणालियों में से एक है, जो स्टील्थ (गुप्त) विमानों को ट्रैक और निशाना बनाने में सक्षम है. तुर्किये ने यह फैसला कई कारणों से लिया, जिनमें अमेरिका से पेट्रियट (Patriot) मिसाइल प्रणाली की अनुकूल शर्तों पर उपलब्धता न होना भी शामिल था.

लेकिन अमेरिका और नाटो ने इस सौदे का कड़ा विरोध किया. उनका तर्क था कि एस-400 नाटो की रक्षा प्रणाली से मेल नहीं खाता और इससे एफ-35 विमान समेत नाटो के महत्वपूर्ण सैन्य उपकरणों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. खासतौर पर, अमेरिका को डर था कि एस-400 की रडार प्रणाली एफ-35 लड़ाकू विमान की स्टील्थ तकनीक को समझ सकती है, जिससे विमान की सुरक्षा कमजोर पड़ सकती है.

अमेरिका की चेतावनियों के बावजूद, तुर्किये ने जुलाई 2019 में एस-400 की पहली खेप प्राप्त की. इसके जवाब में अमेरिका ने तुर्किये को एफ-35 कार्यक्रम से बाहर कर दिया. तुर्किये 2002 से इस कार्यक्रम का हिस्सा था और उसने 100 एफ-35 विमान खरीदने की योजना बनाई थी. तुर्किये ने इस परियोजना में करीब 1.4 अरब डॉलर का निवेश किया था और उसकी कंपनियां एफ-35 के 900 से ज्यादा कलपुर्जे बना रही थीं.

एफ-35 कार्यक्रम से तुर्किये की बेदखली

तुर्किये को एफ-35 कार्यक्रम से हटाना अमेरिका-तुर्किये रक्षा संबंधों में एक बड़ा मोड़ था. पेंटागन का कहना था कि एस-400 की मौजूदगी एफ-35 के लिए खतरा बन सकती है. इसके अलावा, अमेरिका ने दिसंबर 2020 में "Countering America's Adversaries Through Sanctions Act (CAATSA)" के तहत तुर्किये की रक्षा खरीद एजेंसी और उसके अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिए.

इन प्रतिबंधों के चलते तुर्किये को एफ-35 विमान नहीं मिल पाए, और साथ ही वह इस परियोजना के लिए कलपुर्जे बनाने का अधिकार भी खो बैठा. तुर्किये की कंपनियों को एफ-35 कार्यक्रम से 12 अरब डॉलर की आमदनी होने की उम्मीद थी, लेकिन इस निष्कासन से देश के रक्षा उद्योग को बड़ा झटका लगा.

वर्तमान स्थिति और भविष्य के संभावित रास्ते

एस-400 और एफ-35 को लेकर अमेरिका-तुर्किये के बीच विवाद कैसे सुलझेगा, यह दोनों देशों की सुरक्षा जरूरतों और राजनयिक प्रयासों पर निर्भर करेगा. आगे कुछ संभावित रास्ते हो सकते हैं:

1. सीमित समझौता और नाटो में फिर से एकीकरण:

तुर्किये एस-400 का सीमित उपयोग करने या इसे सक्रिय रक्षा प्रणाली में शामिल न करने पर सहमत हो सकता है. बदले में अमेरिका तुर्किये को एफ-35 कार्यक्रम में वापस लाने या पेट्रियट मिसाइल प्रणाली को अनुकूल शर्तों पर देने पर विचार कर सकता है. हालांकि, तुर्किये पहले ही एस-400 को "निष्क्रिय" रखने की अमेरिकी शर्तों को खारिज कर चुका है.

2. तुर्किये की रक्षा आत्मनिर्भरता:

तुर्किये अपनी रक्षा प्रणाली को आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और "TF-X National Combat Aircraft" नामक पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान को विकसित करने की योजना बना रहा है. हालांकि, एक पूरी तरह सक्षम घरेलू वैकल्पिक लड़ाकू विमान विकसित करने में काफी समय, निवेश और तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होगी.

3. रूस और अन्य गैर-नाटो देशों के साथ सहयोग:

यदि अमेरिका और तुर्किये के बीच वार्ता विफल होती है, तो तुर्किये रूस के साथ अपने रक्षा संबंधों को और गहरा कर सकता है और अतिरिक्त एस-400 प्रणाली खरीद सकता है. इससे नाटो के भीतर तनाव बढ़ सकता है और तुर्किये की स्थिति कमजोर हो सकती है.

4. अमेरिकी लचीलापन और क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताएं:

तुर्किये की रणनीतिक स्थिति, जो यूरोप और एशिया को जोड़ती है, अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है. अमेरिका यह भी देख सकता है कि मध्य पूर्व, प्रवास संकट और काला सागर सुरक्षा जैसे मुद्दों को देखते हुए तुर्किये के साथ संबंधों को बनाए रखना क्यों जरूरी है. इसलिए, अमेरिका और नाटो तुर्किये को किसी तरह से रक्षा गठबंधन में शामिल करने के तरीके खोज सकते हैं.

एस-400 और एफ-35 विवाद अमेरिका-तुर्किये संबंधों के लिए एक बड़ी चुनौती है और यह नाटो की स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है. तुर्किये के लिए पश्चिम और पूर्व के बीच संतुलन बनाना, अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना और भू-राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सही फैसला लेना जरूरी होगा. इस विवाद का हल वैश्विक सुरक्षा और नाटो की एकजुटता के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा.

ये भी पढ़ें- F-35 मामले में डोनाल्ड ट्रंप को गहरी चोट देगा भारत का 'दोस्त'! राफेल फाइटर जेट का तेजी से प्रोडक्शन शुरू