क्या IMF का विकल्प बन पाएगा SCO डेवलपमेंट बैंक? जानें चीन की प्लानिंग, भारत के लिए क्या है चुनौती?

    हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तियानजिन में हुई SCO बैठक में एक ऐसी घोषणा की जिसने वैश्विक वित्तीय ढांचे को लेकर चर्चाओं को हवा दे दी है.

    Will SCO Development Bank be able to become an alternative to IMF
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    जब दुनिया बदल रही होती है, तब बड़ी ताकतें चुपचाप नई इमारतें खड़ी कर रही होती हैं, न केवल कंक्रीट की, बल्कि रणनीति की, शक्ति की और आर्थिक संतुलन की. कुछ ऐसा ही हो रहा है शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के भीतर. हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तियानजिन में हुई SCO बैठक में एक ऐसी घोषणा की जिसने वैश्विक वित्तीय ढांचे को लेकर चर्चाओं को हवा दे दी है. उन्होंने SCO डेवलपमेंट बैंक के गठन का प्रस्ताव रखा और तीन वर्षों में 1.4 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता देने की भी बात कही.

    ये सिर्फ एक और बैंक नहीं है, यह IMF और वर्ल्ड बैंक के पश्चिमी मॉडल को चुनौती देने की एक रणनीतिक शुरुआत है. क्या चीन दुनिया के आर्थिक संतुलन को फिर से लिखने जा रहा है? और भारत के लिए इसका मतलब क्या है?

    अब विकास की राह पर बढ़ा SCO

    SCO की शुरुआत एक सुरक्षा मंच के रूप में हुई थी- आतंकवाद, चरमपंथ और सीमा पार अपराधों से निपटने के लिए. लेकिन वक्त के साथ, इसका आकार, मकसद और महत्व बदलता चला गया. आज यह दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रीय समूहों में शामिल है, जिसमें 10 सदस्य देश और 26 साझेदार देश शामिल हैं. इन देशों की कुल अर्थव्यवस्था लगभग 30 ट्रिलियन डॉलर के आसपास है.

    अब SCO केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहता. उसकी नजर ग्रीन एनर्जी, डिजिटल इकोनॉमी और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स पर है. यही वो क्षेत्र हैं जहां भविष्य की आर्थिक शक्ति तय होगी और चीन इन सभी क्षेत्रों में अपने वर्चस्व को मजबूत करना चाहता है.

    डेवलपमेंट बैंक के ज़रिए युआन का वर्चस्व

    शी जिनपिंग के प्रस्तावित SCO डेवलपमेंट बैंक को सिर्फ एक आर्थिक संस्थान मानना भूल होगी. यह बैंक BRICS न्यू डेवलपमेंट बैंक और AIIB (एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक) की तर्ज पर तैयार किया जाएगा, लेकिन इसका मकसद कहीं अधिक बड़ा है.

    चीन की योजना है कि इस बैंक को एक ऐसा केंद्र बनाया जाए जहां युआन आधारित लेनदेन को प्राथमिकता दी जाए. खासतौर पर मध्य एशिया, जहां अभी तक डॉलर का बोलबाला रहा है, वहां इलेक्ट्रॉनिक युआन को इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्रीन प्रोजेक्ट्स के लिए इस्तेमाल करने का चीन का सपना अब धीरे-धीरे साकार होने लगा है.

    इसका सीधा मतलब है कि चीन एक ऐसा वैश्विक आर्थिक ढांचा खड़ा करना चाहता है, जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के नियंत्रण से पूरी तरह बाहर हो.

    रूस का साथ, अमेरिका की टेंशन?

    रूस, जो खुद पश्चिमी प्रतिबंधों का शिकार है, इस चीनी पहल में पूरे जोश से साथ खड़ा है. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने SCO देशों से कहा है कि वे मिलकर संयुक्त बॉन्ड जारी करें और ऐसा भुगतान तंत्र विकसित करें जो अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभाव से बाहर हो.

    रूस की यह सोच स्वाभाविक है क्योंकि डॉलर आधारित वैश्विक व्यवस्था ने उसे वैश्विक आर्थिक प्रणाली से लगभग अलग-थलग कर दिया है. ऐसे में SCO डेवलपमेंट बैंक एक वैकल्पिक राह बन सकता है, जहां रूस और चीन जैसे देश अपनी शर्तों पर व्यापार और विकास कर सकें.

    यह अमेरिका और IMF जैसे संस्थानों के लिए सीधा संकेत है कि अब दुनिया एक मल्टी-पोलर इकोनॉमिक ऑर्डर की ओर बढ़ रही है, जिसमें पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती मिल रही है.

    भारत के लिए अवसर भी और चेतावनी भी

    भारत इस समय एक दिलचस्प स्थिति में है. एक ओर SCO का यह बैंक भारत को कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स, ग्रीन एनर्जी और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में फाइनेंसिंग का बड़ा मौका दे सकता है. ये वो क्षेत्र हैं जहां भारत की जरूरतें और प्राथमिकताएं भी तेजी से बढ़ रही हैं.

    लेकिन दूसरी ओर, राजनीतिक और रणनीतिक सतर्कता भी जरूरी है. भारत ने अब तक चीन की बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का समर्थन नहीं किया है. SCO के भीतर किसी भी वित्तीय ढांचे में अगर BRI जैसी सोच हावी रही, तो भारत के लिए उसमें शामिल होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

    भारत के विदेश मंत्रालय ने भी साफ कहा है कि SCO डेवलपमेंट बैंक पर अभी विचार किया जा रहा है. यानी भारत अपनी रणनीति तय करने से पहले इसके ढांचे, नियंत्रण और वित्तीय नियमों को बारीकी से देखना चाहता है.

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