इस्लामाबाद/तेल अवीव/नई दिल्ली: 13 जून को ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर इज़रायल की सैन्य कार्रवाई ने वैश्विक सुरक्षा समुदाय का ध्यान एक बार फिर पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया के परमाणु संतुलन पर खींचा. ईरान को परमाणु शक्ति बनने से रोकने के प्रयासों के बरक्स यह सवाल बार-बार उठता रहा है कि इज़रायल क्यों पाकिस्तान को उसी राह पर बढ़ने से नहीं रोक सका — जबकि 1970 और 1980 के दशक में उसने कई प्रयास किए थे.
ए.क्यू. खान और इज़रायल की आशंकाएं
पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को गति देने वाले वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कदीर खान (ए.क्यू. खान) पर इज़रायली और पश्चिमी खुफिया एजेंसियों की नजर लंबे समय तक रही. रिपोर्ट्स के अनुसार, इज़रायल ने उन्हें निशाना बनाने की योजना बनाई थी, जिसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका.
इज़रायली खुफिया एजेंसी मोसाद के पूर्व प्रमुख शबताई शावित ने एक साक्षात्कार में खेद जताते हुए कहा था कि “खान को खत्म न कर पाना एक रणनीतिक चूक थी.” अमेरिका के पूर्व CIA निदेशक जॉर्ज टेनेट ने भी उन्हें अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए “बिन लादेन जितना ही गंभीर खतरा” बताया था.
भारत-इज़रायल साझा सैन्य योजना
मिडिल ईस्ट आई की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1980 के दशक की शुरुआत में इज़रायल ने भारत को पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर संयुक्त हवाई हमले का प्रस्ताव दिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आरंभिक सहमति जताई, लेकिन राजनीतिक और रणनीतिक कारणों से यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई.
1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान भी भारतीय सेना प्रमुख जनरल के. सुंदरजी ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई पर विचार किया था, जिसका एक उद्देश्य उसके परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाना था — लेकिन यह भी योजना स्तर से आगे नहीं बढ़ सकी.
खान का परमाणु नेटवर्क और पश्चिम की प्रतिक्रिया
डॉ. ए.क्यू. खान ने पश्चिमी तकनीक और नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान को 1998 में एक पूर्ण परमाणु शक्ति बना दिया. नीदरलैंड में URENCO में कार्य करते हुए उन्होंने सेंट्रीफ्यूज तकनीक की जानकारी प्राप्त की और पाकिस्तान लौटने के बाद रावलपिंडी में एक गुप्त प्रयोगशाला की स्थापना की.
माना जाता है कि खान ने न केवल पाकिस्तान को परमाणु हथियार दिलवाए, बल्कि ईरान, उत्तर कोरिया और लीबिया को भी संवेदनशील तकनीक मुहैया कराई. यही वजह थी कि वह अमेरिका और यूरोप के निशाने पर लंबे समय तक बने रहे.
पाकिस्तान को किससे मिली मदद?
विश्लेषकों के अनुसार, पाकिस्तान को परमाणु कार्यक्रम के विकास में चीन और अमेरिका दोनों की अप्रत्यक्ष मदद मिली. चीन ने यूरेनियम, ट्रिटियम और तकनीकी सहायता दी, जबकि अमेरिका ने अफगान जिहाद के दौरान पाकिस्तान की रणनीतिक उपयोगिता को देखते हुए इस कार्यक्रम पर वर्षों तक आंखें मूंदे रखीं.
1990 में अमेरिकी कानूनों के तहत पाकिस्तान की सैन्य सहायता रोकी गई, लेकिन तब तक वह परमाणु हथियार परीक्षण की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ा चुका था.
1998: खुले मंच पर परमाणु शक्ति का प्रदर्शन
भारत द्वारा 11 मई 1998 को पोखरण में परमाणु परीक्षण के तुरंत बाद, पाकिस्तान ने भी चगाई (बलूचिस्तान) में 28 मई को अपने परमाणु परीक्षण किए. इसके साथ ही वह दुनिया की सातवीं आधिकारिक परमाणु शक्ति बन गया और ए.क्यू. खान को पाकिस्तान में “राष्ट्रीय नायक” का दर्जा मिल गया.
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