मांस-मदिरा मांगने वाले भैरव के बिना क्यों अधूरा है कन्या पूजन? जानिए क्यों लगाया जाता है हलवा-पूड़ी का भोग

Maa Durga aur Bhairav ki Kahani : नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की भक्ति का प्रतीक है, और इसमें कन्या पूजन का खास महत्व है. अष्टमी और नवमी के दिन व्रत रखने वाले भक्त 9 कन्याओं को मां के नौ स्वरूपों के रूप में पूजते हैं.

Why is the Kanya Pooja incomplete without Bhairav ​​who demands meat and liquor
मां दुर्गा | Photo: X/Freepik

Maa Durga aur Bhairav ki Kahani : नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की भक्ति का प्रतीक है, और इसमें कन्या पूजन का खास महत्व है. अष्टमी और नवमी के दिन व्रत रखने वाले भक्त 9 कन्याओं को मां के नौ स्वरूपों के रूप में पूजते हैं. लेकिन इस पूजा में एक खास परंपरा और जुड़ी है—9 कन्याओं के साथ एक लड़के को भी बैठाया जाता है. इसे कहीं लंगूरा, कहीं लांगुरिया तो कहीं बटुक कहते हैं. अलग-अलग जगहों पर इसकी मान्यताएं अलग हैं. कुछ क्षेत्रों में इसे हनुमानजी का रूप मानकर पूजा जाता है, तो कहीं भैरव बाबा के तौर पर सम्मान दिया जाता है. आइए जानते हैं कि कन्या पूजन में लड़के को शामिल करने के पीछे की वजह क्या है.

भैरोनाथ और मां दुर्गा का अटूट रिश्ता

ज्यादातर जगहों पर कन्याओं के साथ बैठने वाले लड़के को भैरोनाथ का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि मां वैष्णो देवी के दर्शन के बाद भैरोनाथ के दर्शन जरूरी हैं, वरना मां की पूजा अधूरी रहती है. ठीक उसी तरह कन्या पूजन में लड़के को भैरव के रूप में शामिल किया जाता है. ऐसा करने से ही यह पूजा पूर्ण मानी जाती है. भैरव बाबा को मां दुर्गा का रक्षक और सेनापति कहा जाता है. शक्ति की आराधना में उनकी मौजूदगी को अनिवार्य माना गया है. शास्त्रों में भी कहा गया है, "शक्ति की पूजा बिना भैरव पूजन के फलदायी नहीं होती." यानी भैरव के बिना मां की पूजा का पूरा फल नहीं मिलता.

तंत्र शास्त्र में भी देवी पूजन के दौरान भैरव का आह्वान जरूरी बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि इससे पूजा में कोई विघ्न नहीं आता और यह सफल होती है. भैरोनाथ को हलवा-पूड़ी का भोग लगाया जाता है, जो इस परंपरा का अहम हिस्सा है.

भैरोनाथ के बिना अधूरी पूजा: एक पौराणिक कथा

इस परंपरा के पीछे एक रोचक कथा है. कटरा के पास एक गांव में श्रीधर नाम का मां का भक्त रहता था. उसकी कोई संतान नहीं थी. एक बार नवरात्रि में वह कन्या पूजन कर रहा था. मां वैष्णो कन्या के रूप में वहां आईं और पूजन में शामिल हुईं. पूजा के बाद मां ने श्रीधर से पूरे गांव के लिए भंडारे का आयोजन करने को कहा. भंडारे में गांववाले और बाबा भैरोनाथ भी पहुंचे. जब भोजन परोसा गया, तो भैरोनाथ ने कन्या से मांस और मदिरा मांगी. मां ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन भैरोनाथ नहीं माने. उन्हें पता था कि कन्या मां वैष्णो हैं और वह उनके हाथों मोक्ष चाहते थे.

मां उनकी चाल समझ गईं और त्रिकुटा पर्वत की ओर चल पड़ीं. भैरोनाथ पीछे-पीछे गए. मां ने एक गुफा में 9 महीने तक तप किया. भैरोनाथ वहां पहुंचे, तो मां ने गुफा के दूसरी ओर से रास्ता बनाया, जिसे अर्धकुमारी या गर्भजून कहते हैं. गुफा से बाहर निकलने पर भी भैरोनाथ नहीं रुके. मां की चेतावनी के बावजूद वह अड़े रहे. फिर गुफा के बाहर हनुमानजी और भैरोनाथ के बीच युद्ध हुआ. जब बात नहीं बनी, तो मां ने महाकाली का रूप लिया और भैरोनाथ का सिर काट दिया. उनका सिर 8 किलोमीटर दूर भैरो घाटी में जा गिरा. मरते वक्त भैरोनाथ ने माफी मांगी. मां ने उनकी मंशा को समझते हुए माफ किया और वरदान दिया कि उनके दर्शन के बाद भैरोनाथ के दर्शन जरूरी होंगे. तब से मां वैष्णो के दर्शन के बाद भैरोनाथ के दर्शन की परंपरा चली आ रही है. कन्या पूजन में भी यही भावना है कि भैरव के बिना मां की पूजा अधूरी है. यह परंपरा न सिर्फ आस्था को मजबूत करती है, बल्कि मां और भैरोनाथ के इस अनोखे रिश्ते को भी दर्शाती है.

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