नई दिल्ली: पांच साल के लंबे इंतजार के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा का रास्ता फिर से खुल गया है. विदेश मंत्रालय ने यात्रा के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी है. इच्छुक श्रद्धालु अब http://kmy.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं. यात्रा का आयोजन इस साल जून से अगस्त के बीच किया जाएगा और करीब 750 भारतीय श्रद्धालु इस बार पवित्र स्थल की यात्रा कर सकेंगे.
यात्रा के लिए जेंडर बैलेंस पर रहेगा खास ध्यान
इस बार यात्रियों के चयन में खासतौर पर जेंडर बैलेंस का ध्यान रखा जाएगा ताकि सभी वर्गों को बराबरी का अवसर मिले. उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे और सिक्किम के नाथूला दर्रे के जरिए कुल 15 जत्थे कैलाश मानसरोवर की ओर रवाना होंगे. इनमें से 5 जत्थे लिपुलेख के रास्ते और 10 जत्थे नाथूला दर्रे के जरिये यात्रा करेंगे. हर जत्थे में 50 यात्री शामिल होंगे.
चीन से रिश्तों में सुधार के संकेत
गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा विवाद और कोविड-19 महामारी के चलते 2020 से कैलाश मानसरोवर यात्रा पूरी तरह ठप थी. इसके अलावा दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान सेवाएं भी बंद हो गई थीं. हाल ही में बीजिंग में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच फ्लाइट सेवाएं फिर से शुरू करने का फैसला लिया गया है.
कैलाश मानसरोवर: आस्था का केंद्र
तिब्बत के क्षेत्र में स्थित कैलाश पर्वत हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों में गहरी आस्था का प्रतीक है. हिंदू मान्यता के अनुसार, यही भगवान शिव और माता पार्वती का निवास स्थान है. जैन धर्म में इसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ की मोक्षभूमि माना जाता है. यात्रा धार्मिक आस्था से जुड़ी है, और हर साल हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुँचते रहे हैं.
दो ऐतिहासिक समझौते जो रास्ता बनाते हैं
भारत और चीन के बीच 2013 और 2014 में दो महत्वपूर्ण समझौते हुए थे.
दोनों समझौते अपने-आप हर 5 साल में नवीनीकृत होते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में चीन ने यात्रियों को अनुमति नहीं दी थी, जिससे समझौतों पर सवाल उठने लगे थे.
क्यों आज भी कैलाश पर्वत बना हुआ है रहस्य?
कैलाश पर्वत की ऊंचाई भले ही माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर) से करीब 2000 मीटर कम है, लेकिन अब तक कोई भी इस पवित्र चोटी पर चढ़ाई नहीं कर सका है. इसकी सीधी और खतरनाक ढलान (65 डिग्री से भी ज्यादा) चढ़ाई को लगभग असंभव बना देती है. चढ़ाई की कुछ कोशिशें हुईं जरूर, लेकिन 2001 के बाद से इस पर्वत पर चढ़ाई पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी गई है. श्रद्धालु अब सिर्फ इसकी 52 किलोमीटर की परिक्रमा कर सकते हैं, जिसे भी एक अत्यंत पुण्यकारी कार्य माना जाता है.
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