नई दिल्ली: जब पूरा मध्य पूर्व उथल-पुथल में डूबा हुआ है और ईरान-इज़राइल टकराव वैश्विक चिंता का विषय बना हुआ है, भारत ने अब तक किसी भी पक्ष के समर्थन या विरोध में सार्वजनिक रूप से बयान नहीं दिया है. लेकिन क्या यह चुप्पी कमजोरी की निशानी है? शायद नहीं. भारत की खामोशी उसकी संतुलित और सतर्क कूटनीति का हिस्सा है, जो न सिर्फ आर्थिक और रणनीतिक हितों को साधने की कोशिश है, बल्कि एक वैश्विक संतुलनकारी शक्ति के रूप में उसकी भूमिका को भी दर्शाती है.
भारत का दोनों पक्षों से संतुलन
भारत की स्थिति ईरान और इज़राइल के बीच फंसी एक जटिल रस्साकशी जैसी है. एक ओर ईरान के साथ भारत का 1.68 अरब डॉलर का व्यापार और चाबहार बंदरगाह जैसे दीर्घकालिक रणनीतिक प्रोजेक्ट हैं, तो दूसरी ओर इज़रायल के साथ लगभग 5 अरब डॉलर का व्यापार और रक्षा तकनीक में गहरा सहयोग है.
ऐसे में भारत की रणनीतिक ‘मौन’ नीति स्पष्ट संकेत देती है: 'बोलने से ज़्यादा ज़रूरी है संतुलन बनाए रखना'.
भारत की चुप्पी के पीछे कारण क्या हैं?
ऊर्जा सुरक्षा सबसे ऊपर
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आयात करता है. होर्मुज़ जलडमरूमध्य में किसी भी तरह की सैन्य हलचल भारत के तेल आयात पर सीधा असर डाल सकती है, जिससे न केवल महंगाई बढ़ेगी, बल्कि आर्थिक स्थिरता भी डगमगा सकती है.
चाबहार पोर्ट में निवेश
ईरान में स्थित चाबहार बंदरगाह भारत के लिए न सिर्फ आर्थिक, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अहम है. यह पाकिस्तान को बायपास कर मध्य एशिया तक भारत की पहुंच बनाता है. इस बंदरगाह पर संघर्ष का असर पड़ना भारत की पश्चिम एशिया नीति के लिए झटका होगा.
इज़रायल के साथ रक्षा सहयोग
इज़रायल भारत को ड्रोन, रडार सिस्टम, मिसाइल डिफेंस तकनीक और निगरानी उपकरणों की आपूर्ति करता है. यह सहयोग भारत की रक्षा क्षमताओं को सशक्त करता है. इज़रायल के खिलाफ सार्वजनिक रुख अपनाना इन संबंधों को खतरे में डाल सकता है.
खाद्य और कृषि उत्पादों का व्यापार
ईरान भारतीय बासमती चावल और चाय जैसे उत्पादों का प्रमुख बाजार है. वहीं, इज़रायल के साथ कृषि प्रौद्योगिकी में सहयोग भारत के लिए खाद्य सुरक्षा और उत्पादन के लिहाज से अहम है. युद्ध या प्रतिबंधों का असर सीधे भारत के किसानों और निर्यातकों पर पड़ेगा.
क्या भारत की 'रणनीतिक अस्पष्टता' सही नीति है?
भारत की यह नीति नई नहीं है. अतीत में भी भारत ने यथासंभव मध्यस्थता की भूमिका निभाई है और पक्षकार बनने से परहेज़ किया है. मौजूदा स्थिति में भी भारत यही नीति अपना रहा है, "ना तो समर्थन, ना विरोध... केवल अपने हितों की सुरक्षा और क्षेत्र में स्थिरता की वकालत."
यह नीति भारत को क्या देती है?
राजनयिक लचीलापन: भारत भविष्य में किसी भी पक्ष के साथ बातचीत के लिए द्वार खुले रखता है.
आर्थिक सुरक्षा: दोनों देशों के साथ व्यापार बनाए रखने की गुंजाइश रहती है.
वैश्विक छवि: भारत एक ज़िम्मेदार और संतुलित वैश्विक शक्ति के रूप में उभरता है, जो संघर्ष नहीं, समाधान की बात करता है.
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