इजरायल की एयरस्ट्राइक, ईरान की मिसाइलें या अमेरिका की बमबारी... 12 दिन की जंग में किसकी हुई जीत?

    इज़राइल और ईरान दोनों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता में युद्धविराम को स्वीकार कर लिया है. यह समझौता ऐसे समय हुआ है जब कतर सहित कई क्षेत्रीय देशों ने अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए थे और पूरे क्षेत्र में युद्ध फैलने की आशंका गहरा गई थी.

    Who won and who showed strength in the 12-day Israel-Iran war
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- ANI

    नई दिल्ली: पश्चिम एशिया में बीते 12 दिनों से जारी तनाव आखिरकार एक संघर्षविराम के साथ थमता नज़र आ रहा है. इज़राइल और ईरान दोनों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता में युद्धविराम को स्वीकार कर लिया है. यह समझौता ऐसे समय हुआ है जब कतर सहित कई क्षेत्रीय देशों ने अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए थे और पूरे क्षेत्र में युद्ध फैलने की आशंका गहरा गई थी.

    इस सीमित अवधि के संघर्ष में मिसाइल हमले, हवाई बमबारी और राजनयिक बयानबाज़ी के ज़रिये तीनों प्रमुख पक्ष- ईरान, इज़राइल और अमेरिका ने अलग-अलग तरीके से अपनी "विजय" का दावा किया है. लेकिन जमीनी हकीकत कहीं अधिक जटिल है.

    राजनयिक सफलता या सैन्य दबदबा?

    इज़राइल: प्रधानमंत्री नेतन्याहू के लिए इस संघर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि अमेरिका ने अंततः खुलकर उसकी सैन्य कार्रवाई का समर्थन किया. दशकों से जो रणनीतिक लक्ष्य वह साधने की कोशिश कर रहे थे, यानी अमेरिका को ईरान के खिलाफ सैन्य रूप से सक्रिय करना वह आंशिक रूप से पूरा हुआ. साथ ही, गाजा पट्टी में चल रही आलोचनाओं से भी कुछ समय के लिए ध्यान हट गया.

    ईरान: तेहरान ने दावा किया कि उसने न सिर्फ इज़राइल बल्कि कतर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर भी हमला कर अपनी प्रतिरोधक क्षमता का प्रदर्शन किया. अमेरिकी सैन्य परिसरों को बिना किसी ठोस नुकसान पहुंचाए निशाना बना कर ईरान ने ‘प्रतिक्रियात्मक हमला’ कर अपनी स्थिति को मजबूत किया. हालांकि, उसे कई नुकसानों का भी सामना करना पड़ा, जिनमें कुछ परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले और वैज्ञानिकों की मौतें शामिल हैं.

    अमेरिका: राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद को ‘शांति निर्माता’ के रूप में प्रस्तुत किया. उन्होंने युद्धविराम का श्रेय लेते हुए कहा कि अमेरिका ने स्थिति को नियंत्रण में लाया. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की प्रतिक्रिया पहले ही काफी देर से और दबाव में आई, जिससे उसकी वैश्विक भूमिका पर सवाल भी उठे.

    क्या 'जीत' किसी एक की हुई?

    प्रत्येक पक्ष ने जीत का दावा तो किया, लेकिन यह संघर्ष पारंपरिक युद्ध से ज़्यादा संदेश की लड़ाई थी:

    • इज़राइल ने अमेरिका का समर्थन सुनिश्चित किया.
    • ईरान ने अपनी सैन्य स्वायत्तता और प्रतिशोध की क्षमता का प्रदर्शन किया.
    • अमेरिका ने एक संतुलनकारी भूमिका निभाते हुए क्षेत्रीय युद्ध को और गहरा होने से रोका.

    यह कहना कठिन है कि किसी एक देश की निर्णायक जीत हुई है. हां, सभी पक्षों ने अपनी-अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाया जरूर है.

    परमाणु प्रतिष्ठानों और बंकरों पर वार

    ट्रंप प्रशासन ने दावा किया कि ईरान के फोर्डो जैसे परमाणु प्रतिष्ठानों को 'गंभीर क्षति' पहुंची है, जबकि ईरान ने इसके सबूतों को लेकर चुप्पी साधी है. कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि ईरान ने अपने संवेदनशील यूरेनियम भंडार को सुरक्षित स्थानों पर पहले ही स्थानांतरित कर लिया था.

    ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने भी एक सुरक्षित स्थान- संभावित रूप से एक बंकर से सैन्य संचालन की निगरानी की और जवाबी हमलों को मंजूरी दी.

    शांति की संभावनाएं और खतरे

    अब जब संघर्षविराम लागू हो चुका है, मध्य पूर्व में तनाव कम होने की उम्मीद की जा सकती है. लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है. यदि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शक्तियाँ आगे कूटनीतिक विकल्पों को प्राथमिकता नहीं देतीं, तो यह संघर्ष किसी भी क्षण फिर से भड़क सकता है.

    ये भी पढ़ें- '6 तेजस Mk-1A बनकर खड़े हैं, लेकिन...' लड़ाकू विमानों की डिलिवरी पर बोला HAL, बताई देरी की वजह