नई दिल्ली: जब 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तब अमेरिका और यूरोप ने एक बड़ा अनुमान लगाया था कि रूस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ जाएगा. उनका मानना था कि उसके पुराने सहयोगी उससे किनारा कर लेंगे. परंतु यह अनुमान गलत साबित हुआ, खासकर भारत के संदर्भ में. बीते तीन वर्षों में भारत-रूस के संबंधों ने न केवल मजबूती दिखाई, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि यह रिश्ता सिर्फ राजनीतिक या आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है यह एक गहरे रणनीतिक और ऐतिहासिक विश्वास पर आधारित है.
पश्चिमी देशों की लाख कोशिशों के बावजूद, भारत-रूस के रिश्ते में न कोई दरार आई, न ही कोई दूरी. तो आखिर क्यों इस ‘दोस्ती’ की नींव इतनी मजबूत है कि अमेरिका और यूरोप की तमाम कोशिशें नाकाम हो जाती हैं? आइए विस्तार से समझते हैं.
1. ऐतिहासिक साझेदारी: 1971 की यादें
2. राजनीतिक समझ और आपसी सम्मान
भारत और रूस के राष्ट्राध्यक्ष चाहे वो पुतिन हों या मोदी एक-दूसरे के लिए सार्वजनिक मंचों पर गर्मजोशी और सम्मान दिखाते रहे हैं.
भारत कभी भी रूस के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता, न ही रूस भारत की विदेश नीति पर सवाल उठाता है. यह ‘गैर-हस्तक्षेप’ की नीति इस रिश्ते की बुनियाद है.
दोनों देश बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था के समर्थक हैं, जो अमेरिका की एकध्रुवीयता के विरुद्ध खड़ा होता है.
भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि वह ‘सभी के साथ, किसी के खिलाफ नहीं’ की नीति पर चलता है और रूस उसके लिए कभी “अगर-मगर” वाला साझेदार नहीं रहा, बल्कि एक भरोसेमंद साथी रहा है.
3. यूक्रेन युद्ध: भारत का रणनीतिक संतुलन
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के शब्दों में, "अगर आपको पसंद नहीं, तो मत खरीदिए. लेकिन भारत अपने लोगों के हित में ही निर्णय लेगा." यह स्पष्ट संकेत था कि भारत की रूस नीति किसी दबाव में नहीं, बल्कि स्वतंत्र विदेश नीति पर आधारित है.
4. रक्षा क्षेत्र में गहराई से जुड़ा रिश्ता
हालांकि भारत ने हाल के वर्षों में रक्षा आपूर्ति के मामले में अपनी निर्भरता को विविधता देने की कोशिश की है, अमेरिका, फ्रांस, इजरायल जैसे देशों से भी सौदे किए हैं फिर भी:
भारत ने इन प्रोजेक्ट्स को "मेक इन इंडिया" मॉडल में ढालकर साझा उत्पादन की दिशा में बढ़ाया है. इससे न केवल रूस से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर हुआ, बल्कि भारत की सैन्य आत्मनिर्भरता भी बढ़ी.
5. ऊर्जा, व्यापार और आर्थिक हितों की मजबूती
इस आर्थिक सहयोग का महत्व सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है यह रणनीतिक आर्थिक सुरक्षा का एक अहम हिस्सा बन चुका है.
6. भविष्य की सोच: ब्रिक्स, एससीओ और न्यू डेवलपमेंट बैंक
भारत और रूस BRICS, SCO जैसे मंचों के संस्थापक सदस्य हैं. इन मंचों का उद्देश्य है अमेरिका और यूरोप की संस्थाओं के विकल्प खड़ा करना.
न्यू डेवलपमेंट बैंक जैसी संस्थाएं दोनों देशों को विकासशील देशों में निवेश का मौका देती हैं जिसमें वे विकास की वैकल्पिक दृष्टि को बढ़ावा देते हैं.
7. कूटनीति से परे एक 'मानव संबंध'
भारतीय जनमानस में रूस के लिए एक विशेष स्थान है:
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