पश्चिम एशिया में जब भी संघर्ष की आग भड़कती है, तो ईरान की 'शैडो आर्मी' यानी उसके मिलिशिया नेटवर्क की ओर सबकी निगाहें जाती हैं. इराक, यमन, सीरिया और लेबनान में फैले इन संगठनों को तेहरान ने वर्षों की मेहनत से तैयार किया है—सिर्फ इसलिए कि अगर कभी ईरान पर सीधा हमला हो, तो ये फोर्सेज उसकी ढाल बन सकें. लेकिन मौजूदा ईरान-इजरायल तनाव के बीच, हैरानी की बात ये है कि इस नेटवर्क की सबसे ताकतवर कड़ी हिज़्बुल्लाह लगभग गायब है.
सबसे बड़ी 'गैर-मौजूदगी'
हिज़्बुल्लाह—जो कभी दुनिया की सबसे प्रभावशाली गैर-राज्य सेनाओं में गिना जाता था—इस बार पूरी तरह चुप है. यह वही संगठन है जिसने ग़ाज़ा में हमास के हमले के बाद अक्टूबर 2023 में उत्तरी इज़रायल पर तुरंत मिसाइलें बरसाई थीं, जिससे हजारों लोगों को घर छोड़ने पड़े थे. लेकिन अब, जब इज़रायल और ईरान खुलकर आमने-सामने हैं, हिज़्बुल्लाह किनारे बैठा है.
यह मौन केवल हैरान करने वाला नहीं है, बल्कि रणनीतिक तौर पर भी असामान्य है. विशेष रूप से तब, जब इज़रायल ने पिछले साल इसके कई टॉप कमांडरों को निशाना बनाकर दक्षिणी लेबनान के बड़े हिस्से को तहस-नहस कर दिया था.
फिर क्यों शांत है हिज़्बुल्लाह?
लेबनान में काम कर रहे सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक, हिज़्बुल्लाह के नेताओं ने संकेत दिए हैं कि वे इस बार सीधे टकराव से बचना चाहते हैं. इसका एक बड़ा कारण संगठन की भीतरू हालत है—बीते सैन्य हमलों में उसका शस्त्रागार बुरी तरह तबाह हो चुका है और उसे दोबारा खड़ा करने में अनुमानित 11 अरब डॉलर लगेंगे.
उधर, ईरान भी अमेरिकी प्रतिबंधों और चल रहे युद्ध की आर्थिक मार से जूझ रहा है, जिससे वह हिज़्बुल्लाह को भरपूर संसाधन नहीं दे पा रहा. राजनीतिक रूप से हिज़्बुल्लाह अब भी लेबनान में एक अहम ताकत है, लेकिन सैन्य रूप से उसका प्रभाव कमजोर हुआ है.
हूती और अन्य मिलिशिया: ईरान के सीमित विकल्प
हिज़्बुल्लाह की अनुपस्थिति में ईरान के पास बचता है—यमन में स्थित हूती समूह. हूती गुट इज़रायल पर मिसाइलें दाग रहे हैं, लेकिन वे भूगोलिक रूप से काफी दूर हैं और उनका प्रभाव सीमित है. वे ज़्यादातर अपने संसाधन दक्षिणी लाल सागर में शिपिंग को बाधित करने में लगा रहे हैं.
इसके अलावा, इराक की कई ईरान समर्थित मिलिशिया इज़रायल की बजाय अमेरिकी ठिकानों पर ध्यान केंद्रित करती हैं. यानी, अगर ईरान को इज़रायल के खिलाफ किसी जवाबी हमले की जरूरत पड़ी, तो हिज़्बुल्लाह के बिना उसकी सैन्य छाया कमजोर पड़ सकती है.
क्या हिज़्बुल्लाह की चुप्पी अस्थायी है?
बेरूत स्थित विश्लेषकों का मानना है कि हिज़्बुल्लाह की यह निष्क्रियता स्थायी नहीं है. संगठन से जुड़े जानकार कासिम कासिर का कहना है, "अगर ईरान पर खतरा बढ़ता है, तो हिज़्बुल्लाह जल्द रुख बदल सकता है." लेकिन फिलहाल, वह खुद को बचा रहा है—अपनी ताकत को पुनर्गठित करने और राजनीति में अपने प्रभाव को सुरक्षित रखने के लिए.
लेबनान में बदलता संतुलन
लेबनान की राष्ट्रीय सेना अब दक्षिणी हिस्सों में सक्रिय है और हिज़्बुल्लाह द्वारा छोड़े गए हथियार जब्त किए जा रहे हैं. अमेरिका समर्थित सरकार ने देश में हथियारों पर नियंत्रण की बात कही है, जिससे हिज़्बुल्लाह की स्थिति और भी कमजोर हुई है.
थिंक-टैंक लेवेंट इंस्टीट्यूट के प्रमुख सामी नादर के अनुसार, हिज़्बुल्लाह अब अपनी पुरानी सौदेबाजी की ताकत खो चुका है. हर दिन इज़रायली ड्रोन बेरूत के ऊपर मंडरा रहे हैं और हवाई हमले उसके बचे हुए ठिकानों को खत्म कर रहे हैं.
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