नई दिल्ली/इस्लामाबाद: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा लिए गए कुछ रणनीतिक फैसलों ने भारत-पाक संबंधों में एक बार फिर असहजता बढ़ा दी है. इन कदमों में सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार और संभावित वाणिज्यिक प्रतिबंधों की चर्चा प्रमुख है. जवाब में पाकिस्तान ने भी कड़े रुख अपनाते हुए जल प्रवाह और व्यापार से जुड़े मुद्दों को ‘रेड लाइन’ करार दिया है.
भारत के फैसले और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
भारत ने संकेत दिए हैं कि वह सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन पर पुनः मूल्यांकन कर सकता है. यदि यह निर्णय लागू होता है और भारत सिंधु नदी प्रणाली का जल प्रवाह नियंत्रित करता है, तो पाकिस्तान के लिए यह जल संकट की स्थिति पैदा कर सकता है, खासकर उसकी कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था के लिए.
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक नजम सेठी ने दावा किया है कि भारत यदि दो प्रमुख कदम उठाता है- कराची पोर्ट की नाकेबंदी और पानी की आपूर्ति रोकना- तो इसे "युद्ध की शुरुआत" माना जाएगा. सेठी के अनुसार, पाकिस्तान इन दोनों स्थितियों में जवाबी कार्रवाई के अधिकार को सुरक्षित रखता है, जिसमें रणनीतिक हथियारों के इस्तेमाल की संभावना भी शामिल है.
परमाणु नीति पर बयानबाज़ी और चिंता
भारत की पारंपरिक 'No First Use' नीति को लेकर भी हाल के वर्षों में कुछ असमंजस की स्थिति बनी है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2019 में कहा था कि भविष्य की परिस्थितियाँ इस नीति को प्रभावित कर सकती हैं. वहीं पाकिस्तान का रुख हमेशा से लचीलापन दिखाता रहा है, जो क्षेत्रीय अस्थिरता की आशंका को और बढ़ाता है.
संधियों की भूमिका और मौजूदा संदर्भ
सिंधु जल संधि और शिमला समझौता दशकों से भारत-पाक के बीच तनाव के समय एक प्रकार का सेफ्टी वाल्व रहे हैं. लेकिन मौजूदा हालात में इन संधियों की वैधता और प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न खड़े हो रहे हैं. पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी कमिटी ने स्पष्ट कहा है कि यदि सिंधु जल संधि का उल्लंघन हुआ, तो इसे “एक्ट ऑफ वॉर” माना जाएगा.
इसी क्रम में पाकिस्तान ने भारत के विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र पर अस्थायी प्रतिबंध लगाए हैं और भारत के साथ अप्रत्यक्ष व्यापार, जो दुबई के रास्ते हो रहा था, उसे भी सीमित करने की घोषणा की है.
भविष्य की दिशा: टकराव या कूटनीति?
दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन ने इस स्थिति को बेहद गंभीर मानते हुए कहा है कि सिंधु जल संधि और शिमला समझौते दोनों देशों के बीच संपर्क बनाए रखने वाले मुख्य सेतु रहे हैं. यदि इन संधियों को स्थगित या निलंबित किया जाता है, तो न केवल क्षेत्रीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिंता बढ़ सकती है.
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