भारतीय सेना द्वारा हाल ही में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पाकिस्तान को सैन्य और रणनीतिक मोर्चे पर गहरी चोट दी है. पराजय सिर्फ पाकिस्तान की नहीं रही, इस ऑपरेशन की आंच अब उसके सबसे करीबी सहयोगी चीन तक पहुंच गई है. जिस तकनीकी शक्ति के दम पर पाकिस्तान भारत को टक्कर देने की बात कर रहा था, वहीं, चीनी तकनीक इस ऑपरेशन के दौरान पूरी तरह फेल होती नजर आई.
पाकिस्तान का भरोसा टूटा
पाकिस्तान ने चीन से मिले अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम, लड़ाकू विमान और सैटेलाइट डाटा का इस्तेमाल कर भारतीय हमलों को रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन नतीजा यह निकला कि भारत के मिसाइल, ड्रोन और बमबारी ने आतंकियों के अड्डों और पाकिस्तानी सैन्य ढांचे को तबाह कर दिया. न तो चीनी रडार भारतीय विमानों को ट्रैक कर पाए, और न ही एयर डिफेंस मिसाइलें कोई ठोस जवाब दे सकीं. इस तकनीकी असफलता के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की सैन्य उत्पादों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं. यह वही तकनीक थी जिसे चीन अन्य देशों को बड़े-बड़े दावों के साथ बेच रहा था.
चीन का बचावात्मक रुख
बीजिंग में जब इस मसले पर पत्रकारों ने सवाल किए, तो चीन ने अपने परंपरागत ‘शांति और स्थिरता’ वाले बयान पर ही जोर दिया. चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग शियाओगांग ने कहा, "भारत और पाकिस्तान ऐसे पड़ोसी हैं जिन्हें हटाया नहीं जा सकता. हम उम्मीद करते हैं कि दोनों देश संयम बरतें और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखें."
यह बयान न तो पाकिस्तान को खुला समर्थन देता है और न ही भारत के सैन्य कार्रवाई की आलोचना करता है. विश्लेषकों के अनुसार, यह चीन की "लो प्रोफाइल डिप्लोमेसी" है, जिसके तहत वह किसी भी सैन्य विफलता की सार्वजनिक जवाबदेही से बचना चाहता है, ताकि उसके रक्षा बाजार पर असर न पड़े.
‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने खोले भारत के रक्षा निर्यात के द्वार
इस ऑपरेशन में भारत ने स्कैल्प क्रूज मिसाइल, ब्रह्मोस, हरोप ड्रोन और स्मार्ट बम जैसे स्टैंड-ऑफ हथियारों का सटीक इस्तेमाल कर आतंकियों के शिविरों और रणनीतिक ठिकानों को तबाह किया. इस सफलता के बाद दुनियाभर में भारत की सैन्य क्षमता को गंभीरता से लिया जाने लगा है. सूत्रों का कहना है कि दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों से भारत को हथियारों की आपूर्ति को लेकर पूछताछ और ऑर्डर में बढ़ोतरी देखी जा रही है.
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