अल्पाइन पर्वतों की गोद में बसे स्विट्जरलैंड के छोटे-से गांव ब्लाटेन की शांति एक भयावह आपदा में तब्दील हो गई. कभी सुरम्य घाटियों और बर्फीली वादियों के बीच खिलखिलाता यह गांव अब एक मलबे का मैदान बन चुका है. ग्लोबल वॉर्मिंग की बढ़ती रफ्तार और जलवायु परिवर्तन की भयावह हकीकत ने इस बार अपनी चपेट में ब्लाटेन को ले लिया. इस त्रासदी ने न केवल एक बस्ती को मिटा दिया, बल्कि यह सवाल भी खड़ा किया है कि हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की कितनी बड़ी कीमत चुका रहे हैं.
ग्लेशियर का टूटना और गांव पर मलबे की तबाही
28 मई को एक वीडियो सामने आया, जिसमें बर्च ग्लेशियर का एक विशाल हिस्सा टूटता दिखा. यह टूटन महज बर्फ का गिरना नहीं था, बल्कि यह था लाखों टन बर्फ, कीचड़ और चट्टानों का सैलाब, जिसने ब्लाटेन को निगल लिया. देखते ही देखते गांव की गलियां, घर और रास्ते एक भारी भूस्खलन में दफ्न हो गए. इस सैलाब ने गांव के करीब 90% हिस्से को तबाह कर दिया.
सावधानी से बची सैकड़ों जानें, लेकिन घर नहीं
गनीमत रही कि मई की शुरुआत में ही वैज्ञानिकों और स्थानीय प्रशासन ने खतरे को भांप लिया था. करीब 300 लोगों को पहले ही सुरक्षित निकाल लिया गया था, जिससे जानहानि को टाला जा सका. लेकिन, उनका सब कुछ—घर, यादें, पुश्तैनी ज़मीनें—सब मलबे में दब गए. 64 साल के एक व्यक्ति की तलाश खोजी कुत्तों और थर्मल ड्रोन्स से की जा रही थी, लेकिन लगातार गिरते मलबे के कारण बचाव अभियान रोकना पड़ा.
Breaking:
— The Curious Quill (@PleasingRj) May 29, 2025
A glacier collapse has buried the Swiss village of Blatten under mud. 💔
The Lonza River is dammed and large parts of the town have been evacuated.
Tragic — but thanks to early warnings from scientists, lives were likely saved.#Switzerland #Blatten #ClimateCrisis… pic.twitter.com/ryxn8NlALL
लोंजा नदी का बहाव थमा, नया संकट बना
भूस्खलन ने पास बहने वाली लोंजा नदी को भी रोक दिया. मलबे ने नदी के बहाव को जाम कर दिया, जिससे एक कृत्रिम झील बन गई. हर दिन इस झील में करीब 10 लाख क्यूबिक मीटर पानी जमा हो रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुकावट आने वाले दिनों में निचले इलाकों में बाढ़ का रूप ले सकती है. कुछ आसपास के गांवों को एहतियातन खाली कराया जा चुका है.
वैज्ञानिकों ने चेताया – यह केवल शुरुआत हो सकती है
जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, और पर्वतीय क्षेत्र पहले से कहीं ज्यादा अस्थिर हो गए हैं. GLAMOS के प्रमुख मैथियास हस बताते हैं कि पर्माफ्रॉस्ट, यानी हमेशा जमी रहने वाली ज़मीन और चट्टानें, अब पिघल रही हैं जिससे चट्टानें खिसकने लगी हैं. ब्लाटेन की त्रासदी में करीब 90 लाख मीट्रिक टन मलबा गिरा—यह एक ऐसा आंकड़ा है जो दोबारा बसने में सालों का वक्त ले सकता है.
प्रकृति की चेतावनी या भविष्य की एक झलक?
ब्लाटेन की आपदा सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है. यह एक संकेत है उस संकट का, जो पूरी दुनिया के पर्वतीय और तटीय क्षेत्रों पर मंडरा रहा है. ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिश्चियन ह्यूगल का कहना है कि यह हादसा उस अलार्म की तरह है जो बता रहा है कि अगर हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो ग्लेशियर, नदियां और पहाड़, जो कभी जीवनदायिनी थे, तबाही के प्रतीक बन जाएंगे.
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