तेहरान: जैसे-जैसे ईरान और इज़राइल के बीच तनाव और गहराता जा रहा है, एक और बड़ा सवाल वैश्विक मंच पर चर्चा में है, अगर अयातुल्ला अली खामेनेई का युग समाप्त होता है, तो ईरान का अगला सुप्रीम लीडर कौन होगा? यह सवाल केवल ईरान की आंतरिक राजनीति नहीं, बल्कि पश्चिम एशिया की रणनीतिक स्थिरता से भी जुड़ा है.
लड़ाई सिर्फ उत्तराधिकार की नहीं, विचारधारा की भी होगी
1989 से सत्ता में मौजूद 85 वर्षीय खामेनेई की सेहत और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों ने ईरानी शासन की सबसे शक्तिशाली कुर्सी के उत्तराधिकारी को लेकर बहस को तेज़ कर दिया है. देश की सर्वोच्च सत्ता धार्मिक, सैन्य और वैचारिक नियंत्रण का संगम है, इसलिए अगला लीडर कौन होगा, यह सिर्फ एक चेहरा नहीं, बल्कि एक दिशा तय करेगा.
मोजतबा खामेनेई:
खुद खामेनेई के बेटे मोजतबा खामेनेई का नाम उत्तराधिकारी के रूप में लंबे समय से सामने आता रहा है. IRGC (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) और सत्ता के रूढ़िवादी गुटों के साथ उनके संबंध मज़बूत हैं. लेकिन दो बड़ी बाधाएँ हैं:
इसलिए, मोजतबा को सत्ता दिलाने की कोशिश की गई, तो यह कदम उलट भी पड़ सकता है.
अलीरेज़ा अराफी:
मदरसों और गार्जियन काउंसिल में गहरी जड़ें रखने वाले अराफी कट्टरपंथी सोच के प्रतिनिधि हैं. वे सुप्रीम लीडर बनने के धार्मिक मानकों पर खरे उतरते हैं, और उन्हें विशेषज्ञों की सभा में भी समर्थन मिल सकता है. अगर शासन और धार्मिक प्रतिष्ठान की प्राथमिकता "निरंतरता" और "स्थायित्व" है, तो अराफी एक मजबूत विकल्प हो सकते हैं.
अली असगर हेजाजी:
हेजाजी खुद मौलवी नहीं हैं, लेकिन वे लंबे समय से खामेनेई के सुरक्षा और खुफिया सलाहकार हैं. उनका वास्तविक खेल 'किंगमेकर' की भूमिका में हो सकता है. वे इस बात में निर्णायक होंगे कि अगला लीडर कौन बने, भले ही वे खुद उस कुर्सी पर न बैठें.
अयातुल्ला हशम बुशहरी:
बुशहरी जैसे परंपरागत, शिक्षित और सम्मानित मौलवियों की भूमिका कम दिखती रही है, लेकिन अगर देश में धर्मगुरुओं का पुराना दबदबा लौटता है, तो उनका नाम गंभीरता से लिया जा सकता है. वे सत्ताधारी ताकतों के बजाय विद्वानों की दुनिया से आते हैं.
रेज़ा पहलवी:
पूर्व शाह के बेटे रेज़ा पहलवी का नाम कई प्रवासी ईरानियों और पश्चिमी विश्लेषकों द्वारा लिया जाता है. वे मौजूदा शासन के लिए खतरे के रूप में देखे जाते हैं, लेकिन उनकी भूमिका केवल शासन परिवर्तन की कल्पना में सीमित है, व्यावहारिक रूप से नहीं.
अली अकबर वेलायती:
एक लंबे समय तक विदेश मंत्री रह चुके वेलायती को खामेनेई का वफादार और रणनीतिक सलाहकार माना जाता है. वे धार्मिक नेता नहीं हैं, लेकिन अगर भविष्य में कोई संरचनात्मक बदलाव होता है, तो वे राजनीतिक नेतृत्व के किसी नए प्रारूप में भूमिका निभा सकते हैं.
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