नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी शीर्ष नेतृत्व टीम में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है. सरकार ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की सदस्य डॉ. पूनम गुप्ता को RBI की नई डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया है. उनका कार्यकाल तीन वर्षों तक रहेगा. वे जनवरी में पद छोड़ चुके पूर्व डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा की जगह लेंगी. इस नियुक्ति को केबिनेट की अपॉइंटमेंट कमेटी ने मंजूरी दी है.
RBI की नीति निर्माण में अहम भूमिका
डॉ. पूनम गुप्ता का चयन ऐसे समय पर हुआ है जब केंद्रीय बैंक आगामी 5 अप्रैल को अपनी मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक आयोजित करने जा रहा है. उनकी गहरी आर्थिक समझ और नीतिगत अनुभव RBI की निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.
कौन हैं डॉ. पूनम गुप्ता?
डॉ. पूनम गुप्ता इस समय नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च (NCAER) की डायरेक्टर हैं और साथ ही 16वें वित्त आयोग की सदस्य भी हैं. इससे पहले, वे नीति आयोग की डेवलपमेंट एडवाइजरी कमेटी और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) की एक्जीक्यूटिव कमेटी की सदस्य रह चुकी हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था की जटिलताओं पर उनकी पकड़ और व्यापक शोध का अनुभव उन्हें इस भूमिका के लिए उपयुक्त बनाता है.
संजय मल्होत्रा बने RBI के नए गवर्नर
इससे पहले, सरकार ने 9 दिसंबर 2024 को राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा को RBI का 26वां गवर्नर नियुक्त किया था. उन्होंने 11 दिसंबर से पदभार संभाला और मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास की जगह ली, जिनका कार्यकाल 10 दिसंबर 2024 को समाप्त हो गया था.
संजय मल्होत्रा का अनुभव और विशेषज्ञता
राजस्थान कैडर के 1990 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी संजय मल्होत्रा के पास कंप्यूटर साइंस में IIT कानपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, यूएसए से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर डिग्री है. उन्होंने ऊर्जा, वित्त, कराधान, सूचना प्रौद्योगिकी और खनन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में 33 वर्षों से अधिक का अनुभव प्राप्त किया है.
RBI के गवर्नर बनने से पहले, वे वित्त मंत्रालय के तहत वित्तीय सेवा विभाग में सचिव के रूप में कार्यरत थे. केंद्र और राज्य सरकारों में वित्त और कराधान पर उनकी गहरी पकड़ रही है, जो उन्हें इस नई भूमिका के लिए उपयुक्त बनाती है.
RBI के लिए नए नेतृत्व की चुनौतियां
डॉ. पूनम गुप्ता और संजय मल्होत्रा दोनों ऐसे समय में RBI के शीर्ष नेतृत्व में शामिल हुए हैं जब भारत की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है. महंगाई पर नियंत्रण, ब्याज दरों का संतुलन, डिजिटल वित्तीय प्रणाली का विस्तार और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना करना उनकी प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल होगा.
इन नए नेतृत्वकर्ताओं से उम्मीद की जा रही है कि वे भारतीय वित्तीय प्रणाली को स्थिर और सुदृढ़ बनाए रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
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