अमेरिकी टैरिफ से निपटने के लिए क्या है भारत सरकार का प्लान? वित्त मंत्री सीतारमण ने सबकुछ बताया

    अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50% तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने के फैसले ने भारत के व्यापारिक समुदाय को एक नई आर्थिक चुनौती के सामने ला खड़ा किया है.

    What is the Indian government plan to deal with American tariffs
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50% तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने के फैसले ने भारत के व्यापारिक समुदाय को एक नई आर्थिक चुनौती के सामने ला खड़ा किया है. खासतौर से निर्यातक, जो पहले से ही वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और मांग में गिरावट का सामना कर रहे थे, अब उन्हें बढ़े हुए शुल्कों के कारण अमेरिकी बाज़ार में अपनी प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में दिक्कत हो सकती है. इस स्थिति को लेकर केंद्र सरकार पूरी तरह सतर्क है और तत्काल कदम उठाने की तैयारी कर रही है.

    केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में भारत के प्रमुख निर्यातकों से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि सरकार इस कठिन समय में उनके साथ खड़ी है. उन्होंने स्पष्ट किया कि निर्यात क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है, और हर आवश्यक सहायता दी जाएगी ताकि भारतीय उद्योग इस वैश्विक दबाव से उबर सके.

    टैरिफ की गंभीरता पर रणनीतिक प्रतिक्रिया

    वित्त मंत्री से मिलने आए भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (FIEO) के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अध्यक्ष एस.सी. रल्हन ने किया. उन्होंने मंत्री को बताया कि टैरिफ में अचानक की गई इस बड़ी वृद्धि ने भारतीय उत्पादों की लागत को अप्रतिस्पर्धी बना दिया है, जिससे बाज़ार में पहुंच घट सकती है, ऑर्डर कम हो सकते हैं और लाखों नौकरियों पर खतरा मंडरा सकता है.

    इस बातचीत के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने सुझाव दिया कि भारत को तत्काल कदम उठाते हुए:

    • घरेलू लागत घटाने,
    • निर्यात को प्रोत्साहन देने,
    • वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों की पहचान करने, और
    • फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स को तेजी से अंतिम रूप देने
    • जैसी रणनीतियों पर अमल करना चाहिए.

    सरकार ने दिए स्पष्ट संकेत- हर संभव समर्थन मिलेगा

    इस मुलाकात के बाद FIEO की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि वित्त मंत्री ने निर्यातकों को पूरी तरह आश्वस्त किया है. सीतारमण ने कहा, "भारत सरकार अपने उद्योग जगत के साथ पूरी मजबूती से खड़ी है. यह संकट अस्थायी है, लेकिन हमारी प्रतिक्रिया ठोस और दीर्घकालिक होगी."

    उन्होंने निर्यातकों से अपील की कि वे कर्मचारियों की नौकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें, क्योंकि देश की आर्थिक स्थिरता के लिए रोजगार बहुत अहम है. साथ ही उन्होंने यह भी दोहराया कि सरकार निर्यात के लिए पूंजी की उपलब्धता बढ़ाने, कागजी कार्यवाही को सरल करने और लॉजिस्टिक्स लागत कम करने पर काम कर रही है.

    टैरिफ का सबसे बड़ा असर किन सेक्टर्स पर?

    विशेषज्ञों और उद्योग निकायों के अनुसार, अमेरिकी आयात शुल्क में बढ़ोतरी का सबसे अधिक प्रभाव श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर पड़ सकता है. इनमें शामिल हैं:

    1. समुद्री उत्पाद (विशेषकर झींगे)

    भारत अमेरिका को बड़ी मात्रा में झींगे और अन्य सीफूड एक्सपोर्ट करता है. लेकिन 50% टैरिफ लगने से अमेरिकी बाज़ार में इनकी मांग कम हो सकती है, जिससे मछलीपालकों, निर्यातकों और प्रोसेसिंग यूनिट्स को नुकसान हो सकता है.

    2. परिधान और वस्त्र (Textiles and Garments)

    तमिलनाडु के तिरुपुर और लुधियाना जैसे शहरों से अमेरिका को बड़ी मात्रा में गारमेंट्स भेजे जाते हैं. उच्च टैरिफ से इन उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे अमेरिकी कंपनियां वियतनाम, बांग्लादेश जैसे देशों की ओर रुख कर सकती हैं.

    3. हीरे और रत्न-आभूषण

    सूरत और मुंबई जैसे शहरों में बड़ी संख्या में कारीगर रत्न और आभूषण तैयार करते हैं, जिनमें से 40% तक अमेरिका को एक्सपोर्ट होता है. टैरिफ का असर इन कारीगरों की नौकरियों और आमदनी पर पड़ सकता है.

    4. चमड़ा और फुटवियर

    चमड़े के सामान और जूते-चप्पल जैसे उत्पाद पहले ही प्रतिस्पर्धी देशों के मुकाबले महंगे पड़ते हैं. अब अतिरिक्त शुल्क से इनकी बिक्री और भी प्रभावित होगी.

    सरकार की संभावित रणनीति क्या होगी?

    वैकल्पिक बाज़ारों की खोज और समझौते

    सरकार तेजी से यूरोप, यूके, लैटिन अमेरिका, रूस, ओमान जैसे देशों से व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements) पर बातचीत कर रही है ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम हो सके.

    निर्यात प्रोत्साहन योजनाएं

    एक नई 25,000 करोड़ रुपये की निर्यात प्रोत्साहन योजना पर काम चल रहा है. इसमें एक्सपोर्टर्स को सस्ती फाइनेंसिंग, सब्सिडी और मार्केटिंग सपोर्ट मिलेगा.

    जीएसटी स्लैब में सुधार

    सरकार दो टैक्स स्लैब (5% और 18%) की ओर बढ़ रही है, जिससे घरेलू खपत को बढ़ावा मिलेगा. अगर भारत का घरेलू बाज़ार मजबूत होता है, तो निर्यात में आने वाली गिरावट की भरपाई की जा सकती है.

    लॉजिस्टिक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाना

    सरकार इस बात पर ध्यान दे रही है कि माल को बंदरगाहों और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक जल्दी और सस्ते में पहुंचाया जा सके. इससे निर्यात की लागत घटेगी और भारतीय उत्पाद फिर से प्रतिस्पर्धी बनेंगे.

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