Waqf Bill: इस्लाम धर्म के दूसरे खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब पहले इस्लाम के विरोधी थे और मक्का में मुस्लिम समुदाय के सबसे कट्टर दुश्मनों में से एक थे. वह अपनी ताकत, साहस और उग्र स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन बाद में उनका जीवन बदल गया और वे इस्लाम के अनुयायी बने. गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान उमर का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि "वक्फ" एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है अल्लाह के नाम पर संपत्ति का दान करना. यह प्रथा इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर के समय में अस्तित्व में आई थी. शाह ने यह भी कहा कि वक्फ का मतलब एक तरह का चैरिटेबल दान है, जिसे केवल अपनी संपत्ति से किया जा सकता है, न कि सरकारी संपत्ति या किसी और की संपत्ति से.
कौन थे खलीफा उमर?
उमर इब्न अल-खत्ताब, जिन्हें उमर महान के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम के दूसरे खलीफा थे और इस्लामी इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में से एक माने जाते हैं. उन्होंने इस्लाम के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और न्याय, धर्म और विनम्रता के लिए प्रसिद्ध थे. 584 ईसवी में मक्का में जन्मे उमर ने शुरू में इस्लाम का विरोध किया था और मुसलमानों पर अत्याचार भी किए थे. वह मक्का की एक शक्तिशाली और धनी कबायली जनजाति से थे और एक कुशल व्यापारी थे. उनका शारीरिक बल और कुश्ती व तीरंदाजी में माहिर होने के कारण वे बहुत प्रसिद्ध थे.
616 ईसवी में, उमर ने अपनी बहन से इस्लाम के बारे में सुना और एक ऐसे व्यक्ति से मिले जिन्होंने हाल ही में इस्लाम अपनाया था. उसने उन्हें कुरान की आयतें सुनाईं, जिससे उमर का दिल नरम हो गया और उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया. इसके बाद वे पैगंबर मुहम्मद के करीबी सहयोगी बन गए और इस्लाम के शुरुआती प्रसार में अहम भूमिका निभाई.
नमाज पढ़ते वक्त की गई थी हत्या
जब अबू बकर के बाद उमर दूसरे खलीफा बने, तो उन्होंने कई सुधार किए और संस्थाएं स्थापित कीं, जो आज भी इस्लामी समाज का आधार हैं. उन्होंने कुरान को एक किताब में संकलित करने का आदेश दिया और पैगंबर मुहम्मद की हदीसों को संरक्षित करने के लिए नियम बनाए. उनके नेतृत्व में इस्लामी साम्राज्य का विस्तार हुआ और वह उस समय दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक बन गया.
उमर की हत्या 644 ईसवी में मदीना में की गई थी, जब वह सुबह की नमाज़ पढ़ रहे थे. एक ईरानी गुलाम, अबू लुलुआ फिरोज ने उन्हें छुरा घोंपकर मार डाला. उनकी हत्या के कारण पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन कुछ स्रोतों के मुताबिक, यह विवाद उनके अरब गुरु अल मुगीरा इब्न शुबा से था, जिसके कारण अबू लुलुआ ने गुस्से में आकर यह कदम उठाया. उमर की हत्या इस्लाम के लिए एक बड़ा धक्का था, लेकिन उनके न्यायपूर्ण शासन और इस्लाम के प्रति उनकी निष्ठा के कारण वह आज भी याद किए जाते हैं.
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