उपराष्ट्रपति चुनाव से BRS-BJD ने किया किनारा, कोई भी सांसद नहीं करेगा वोट, जानिए किसे होगा फायदा?

    Vice Presidential Election 2025: उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 को लेकर देश की सियासत में हलचल मची हुई है. 9 सितंबर को होने वाली वोटिंग से ठीक पहले, ओडिशा की बीजू जनता दल (बीजेडी) और तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने मतदान से दूरी बनाने का ऐलान कर सबको चौंका दिया है.

    Vice Presidential Election 2025 BJD and brs MPs to abstain from voting
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    Vice Presidential Election 2025: उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 को लेकर देश की सियासत में हलचल मची हुई है. 9 सितंबर को होने वाली वोटिंग से ठीक पहले, ओडिशा की बीजू जनता दल (बीजेडी) और तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने मतदान से दूरी बनाने का ऐलान कर सबको चौंका दिया है. दोनों पार्टियों ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और इंडिया गठबंधन से समान दूरी की नीति अपनाते हुए अपने क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता दी है. इस बीच, एनडीए के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच मुकाबला रोमांचक होने की उम्मीद है. आइए, इस घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं.

    बीजेडी की तटस्थता: ओडिशा के विकास पर फोकस

    बीजू जनता दल (बीजेडी) ने उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा न लेने का फैसला करते हुए अपनी तटस्थ नीति को दोहराया है. पार्टी के सांसद सस्मित पात्रा ने बताया कि बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक ने वरिष्ठ नेताओं और सांसदों से विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया. बीजेडी के पास राज्यसभा में सात सांसद हैं, लेकिन लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. पात्रा ने कहा, “हमारा ध्यान ओडिशा के 4.5 करोड़ लोगों के विकास और कल्याण पर है. हम एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों से समान दूरी बनाए रखेंगे.” यह फैसला बीजेडी की उस पुरानी रणनीति को दर्शाता है, जिसमें वह राष्ट्रीय राजनीति में किसी भी गठबंधन से पूरी तरह जुड़ने से बचती है.

    बीआरएस का मतदान से दूरी का कारण

    तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी उपराष्ट्रपति चुनाव से अलग रहने का फैसला किया है. पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के. टी. रामाराव (केटीआर) ने कहा कि तेलंगाना में यूरिया की कमी के कारण किसानों को हो रही परेशानियों को देखते हुए पार्टी ने यह कदम उठाया है. बीआरएस के पास राज्यसभा में चार सांसद हैं, लेकिन लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. केटीआर ने कहा, “चूंकि इस चुनाव में नोटा का विकल्प नहीं है, हम मतदान से दूरी बनाएंगे.” यह फैसला बीआरएस की क्षेत्रीय प्राथमिकताओं और किसानों के मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर उठाने की रणनीति को दर्शाता है.

    एनडीए और इंडिया गठबंधन: कांटे की टक्कर

    उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि इंडिया गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा है. वोटिंग 9 सितंबर को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक संसद भवन में होगी, और उसी दिन शाम तक नतीजे घोषित हो जाएंगे. इंडिया गठबंधन ने जस्टिस रेड्डी के लिए सैयद नासिर हुसैन, माणिकम टैगोर और शताब्दी रॉय को पोलिंग एजेंट नियुक्त किया है. एनडीए के पास लोकसभा और राज्यसभा में कुल 422 सांसदों का समर्थन है, जो बहुमत के लिए जरूरी 394 वोटों से अधिक है. वहीं, इंडिया गठबंधन के पास 312 सांसद हैं, और आप के समर्थन से यह संख्या 325 तक पहुंच सकती है.

    बीजेडी और बीआरएस की तटस्थता का असर

    बीजेडी और बीआरएस के मतदान से दूरी बनाने के फैसले को राजनीतिक विश्लेषकों ने एनडीए के लिए फायदेमंद माना है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम ने कहा, “नवीन पटनायक ने बीजेडी सांसदों को वोटिंग से दूर रखकर परोक्ष रूप से एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया है.” वहीं, ओडिशा कांग्रेस के अध्यक्ष भक्त चरण दास ने बीजेडी के इस रुख को अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी का समर्थन बताया. उन्होंने कहा, “यह बीजेडी के लिए यह साबित करने का मौका था कि वह बीजेपी के खिलाफ है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.” बीजेडी ने 2012 में भी उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था, जो उनकी तटस्थ नीति का हिस्सा है.

    एनडीए को शिवसेना का खुला समर्थन 

    शिंदे गुट की शिवसेना ने एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को खुला समर्थन देने की घोषणा की है. शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे ने कहा, “हमारी पार्टी और बीजेपी की पुरानी साझेदारी है. कल की वोटिंग में एनडीए को हमारा पूरा समर्थन रहेगा.” उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की कि एनडीए को उम्मीद से ज्यादा वोट मिल सकते हैं. यह समर्थन एनडीए की स्थिति को और मजबूत करता है, खासकर तब जब क्षेत्रीय दलों का रुख अनिश्चित है.

    क्या होगा भविष्य में?

    उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेडी और बीआरएस की तटस्थता ने राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की स्वतंत्र भूमिका को फिर से रेखांकित किया है. बीजेडी का यह रुख उनकी पुरानी नीति की पुनरावृत्ति है, लेकिन ओडिशा में हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी से हार के बाद उनकी यह रणनीति और भी अहम हो गई है. दूसरी ओर, बीआरएस का फैसला तेलंगाना के स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देने का संकेत देता है. यह दोनों दलों का निर्णय न केवल उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजों को प्रभावित करेगा, बल्कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव सहित भविष्य के राजनीतिक समीकरणों पर भी असर डाल सकता है.

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