यूक्रेन हर हाल में पाना चाहता है जर्मनी की टॉरस मिसाइल, क्या रूस की आएगी शामत? जानें इसकी ताकत

    यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध में अब एक नई रणनीतिक मांग ने सुर्खियां बटोरी है, जर्मनी की टॉरस क्रूज मिसाइल.

    Ukraine wants to get Germanys Taurus missile
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Social Media

    कीव: यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध में अब एक नई रणनीतिक मांग ने सुर्खियां बटोरी है, जर्मनी की टॉरस क्रूज मिसाइल. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने हाल ही में जर्मनी के नए चांसलर फ्रेडरिक मर्ज से मुलाकात के दौरान इस अत्याधुनिक हथियार को हासिल करने की अपील की.

    जेलेंस्की की यह मांग ऐसे समय पर आई है जब रूस ने यूक्रेन के विभिन्न क्षेत्रों में तीव्र हवाई हमले तेज़ किए हैं. वहीं, कीव पर भी ड्रोन हमलों को अंजाम देने के आरोप लगे हैं. अब सवाल यह है कि क्या जर्मनी टॉरस मिसाइल देने के लिए तैयार है, और अगर हां, तो इसका युद्ध के समीकरणों पर क्या असर पड़ेगा?

    टॉरस मिसाइल: जर्मनी की रणनीतिक संपत्ति

    टॉरस एक जर्मन-स्वीडिश साझेदारी में बनी लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल है, जो 500 किलोमीटर तक मार करने की क्षमता रखती है. इसे विशेष रूप से किलेबंद ठिकानों, भूमिगत बंकरों और सैन्य संचार केंद्रों को ध्वस्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है—GPS की अनुपस्थिति में भी लक्ष्य तक सटीक पहुंच.

    इसकी विनाशक क्षमता और गहराई में वार करने की तकनीक ने इसे यूक्रेन के लिए अत्यधिक आकर्षक बना दिया है. वर्तमान में यूक्रेन अमेरिका और ब्रिटेन से प्राप्त लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन टॉरस की पहुंच और ताकत उन्हें कहीं पीछे छोड़ देती है.

    क्या जर्मनी देगा टॉरस मिसाइल?

    चांसलर मर्ज़ ने स्पष्ट रूप से टॉरस भेजने की घोषणा तो नहीं की, लेकिन उन्होंने यूक्रेन को लंबी दूरी की मिसाइल तकनीक विकसित करने में मदद का भरोसा ज़रूर दिया. इसके बावजूद, जेलेंस्की की मांग ने उम्मीदें ज़रूर बढ़ा दी हैं.

    पूर्व चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ इस मांग को लेकर सावधानी भरी रणनीति अपनाते रहे थे. उन्होंने नाटो की सीधी संलिप्तता के जोखिम के कारण टॉरस के हस्तांतरण में हिचक दिखाई थी. हालांकि, वह 2023 में पश्चिमी दबाव के बाद लेपर्ड-2 टैंक भेजने के लिए सहमत हुए थे.

    यूक्रेन को मिल रही पश्चिमी मदद

    युद्ध के दो वर्षों के दौरान पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को वित्तीय और सैन्य सहायता दी है, लेकिन रूस के भीतर हमले की अनुमति देना एक संवेदनशील मुद्दा रहा है.

    हालांकि, अब इस नीति में परिवर्तन देखने को मिल रहा है. फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों ने अपने हथियारों पर सीमा प्रतिबंध हटाने शुरू कर दिए हैं. यह संकेत है कि पश्चिम अब पहले से कहीं ज़्यादा आक्रामक रणनीति अपनाने को तैयार है.

    इस बदली हुई रणनीति के पीछे एक कारण यह भी है कि रूसी सेना ने फिर से यूक्रेन पर बड़ी सैन्य कार्रवाई तेज कर दी है, खासकर कुर्स्क और बेलगॉरॉड क्षेत्रों में.

    जर्मनी की रणनीतिक उलझन: समर्थन या संकोच?

    हालांकि जर्मनी अमेरिका के बाद यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य सहायता प्रदाता रहा है, लेकिन टॉरस मिसाइल को लेकर अब भी राजनीतिक और कूटनीतिक असमंजस बना हुआ है.

    मार्च 2024 में रूस ने एक जर्मन सैन्य चर्चा को रिकॉर्ड कर लिया था, जिसमें अधिकारियों के बीच टॉरस की संभावित उपयोगिता और केर्च ब्रिज जैसे प्रमुख ठिकानों पर हमले की रणनीति पर विचार हो रहा था. इस खुलासे के बाद जर्मनी पर दबाव और बढ़ गया है कि वह स्पष्ट नीति अपनाए.

    अगर टॉरस मिला तो क्या बदलेगा युद्ध?

    अगर जर्मनी टॉरस मिसाइल यूक्रेन को सौंपता है, तो यह रूसी सेना के गहरे ठिकानों को निशाना बनाने की यूक्रेनी क्षमता को बढ़ा सकता है. इससे युद्ध का क्षेत्रीय दायरा भी विस्तृत होगा, जिसका रणनीतिक असर रूस की सैन्य गतिशीलता पर पड़ सकता है.

    वहीं, मास्को ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि रूसी क्षेत्र के भीतर पश्चिमी हथियारों का उपयोग नाटो को संघर्ष में घसीट सकता है. जर्मनी जैसी ताकतवर अर्थव्यवस्था और नाटो सदस्य के लिए यह जोखिम बेहद संवेदनशील है.

    ये भी पढे़ं- 'बच्चे भूख से मर रहे हैं, महिलाएं अपने...' UN में गाजा के हालात बताते हुए रोने लगे फिलिस्तीनी राजदूत