न्यूयॉर्क: संयुक्त राष्ट्र में उस समय माहौल भावुक हो गया, जब फिलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने गाजा में बच्चों की त्रासदी बयान करते हुए आंसुओं में खुद को रोक नहीं पाए. गुरुवार को सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे भूख और हिंसा के बीच फिलिस्तीनी परिवार रोज़ाना अपने प्रियजनों को खो रहे हैं.
"माएं अपने भूख से दम तोड़ चुके बच्चों के शवों से लिपटी बैठी हैं. वे बच्चों के बाल सहला रही हैं, उनसे माफी मांग रही हैं... उन्हें ज़िंदा न बचा पाने का अपराधबोध उन्हें खा रहा है," यह कहते हुए मंसूर भावुक होकर रो पड़े.
उन्होंने कहा कि गाजा के हालात किसी भी संवेदनशील इंसान को तोड़ने के लिए काफी हैं और दुनिया को अब मौन नहीं रहना चाहिए.
इज़राइल ने स्वीकार किया युद्धविराम प्रस्ताव
इसी बीच एक बड़ी कूटनीतिक पहल के तहत, इज़राइल ने अमेरिका के प्रस्तावित युद्धविराम योजना को स्वीकार कर लिया है. यह प्रस्ताव अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ के ज़रिए पेश किया गया था, जिसमें 70 दिनों के संघर्षविराम और 10 इज़राइली बंधकों की रिहाई की बात शामिल है.
हमास ने पहले ही 26 मई को इस प्रस्ताव पर सहमति जताई थी, जिससे इस पहल को महत्वपूर्ण समर्थन मिला. हालांकि, इस तरह की पहलें अतीत में भी विफल रही हैं, जैसे कि जनवरी 2025 का युद्धविराम, जिसे इज़राइल ने मार्च में एयरस्ट्राइक के ज़रिए तोड़ दिया था.
गाजा की भयावह तस्वीर: बढ़ता मौत का आंकड़ा
इज़राइली सेना के मुताबिक यह अभियान हमास के ठिकानों को निशाना बनाने के लिए चलाया जा रहा है, लेकिन मानवीय संगठनों का कहना है कि नागरिकों की मौतों की संख्या भयावह स्तर पर पहुंच चुकी है.
गाजा में तबाही: शहर खंडहर में तब्दील
गाजा के सरकारी मीडिया कार्यालय के अनुसार:
मीडिया दफ्तर ने यह भी आरोप लगाया कि इज़राइल गाजा को जानबूझकर निर्जन बनाने की नीति अपना रहा है, ताकि फिलिस्तीनी समुदाय को वहां से खदेड़ा जा सके. इज़राइल ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उसका अभियान पूरी तरह हमास को निशाना बनाने तक सीमित है.
हमास-इज़राइल संघर्ष: पूरी कहानी
क्या यह युद्धविराम निर्णायक मोड़ होगा?
अब जब दोनों पक्षों ने संघर्षविराम के प्रस्ताव को स्वीकार किया है, तो दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या यह सिर्फ एक अस्थायी ठहराव होगा या स्थायी समाधान की शुरुआत.
संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन मध्यस्थता की कोशिशें तेज़ कर चुके हैं. लेकिन इस बार फर्क केवल बातचीत से नहीं आएगा, फर्क तब आएगा जब ज़मीन पर बम नहीं, बल्कि राहत पहुंचेगी.
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