भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष में जिस तरह तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया, उसने वैश्विक कूटनीतिक समीकरणों को नया रूप दे दिया है. अब तुर्की केवल राजनीतिक या रक्षा साझेदार के तौर पर नहीं, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में एक नई सामरिक शक्ति बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है. ताजा रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ है कि तुर्की, सोमालिया में एक स्पेसपोर्ट यानी अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र स्थापित करने की योजना पर गंभीरता से काम कर रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत तुर्की न केवल अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को गति देना चाहता है, बल्कि इस कदम के ज़रिए अफ्रीका के ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ क्षेत्र में अपनी स्थायी मौजूदगी दर्ज कराने का प्रयास कर रहा है.
तुर्की और सोमालिया के बीच बातचीत जारी
रिपोर्ट के अनुसार तुर्की और सोमालिया के बीच बातचीत जारी है और प्रस्तावित स्पेसपोर्ट के लिए सोमालिया के जमामे ड्यून क्षेत्र को उपयुक्त माना जा रहा है. यह इलाका भौगोलिक दृष्टि से रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. भूमध्य रेखा के नजदीक स्थित यह क्षेत्र रॉकेट प्रक्षेपण के लिए आदर्श माना जाता है, क्योंकि यहां से लॉन्चिंग करने पर पृथ्वी की घूर्णन गति का लाभ मिलता है, जिससे कम ईंधन में ज्यादा दूरी तक मिसाइल या सैटेलाइट भेजी जा सकती है. साथ ही यह इलाका हिंद महासागर से सीधी पहुंच प्रदान करता है, जो तुर्की को समुद्री शक्ति विस्तार के लिए नया मंच प्रदान करेगा.
हालांकि, तुर्की का यह अंतरिक्ष मिशन प्रत्यक्ष रूप से भारत के खिलाफ नहीं है, लेकिन जिस तरह से तुर्की और पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग मजबूत हुआ है, उससे यह आशंका जताई जा रही है कि यह प्रोजेक्ट अप्रत्यक्ष रूप से भारत की सुरक्षा और सामरिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है. विश्लेषकों का मानना है कि यदि भविष्य में पाकिस्तान, तुर्की के इस स्पेसपोर्ट प्रोजेक्ट में शामिल होता है या उसका लाभ उठाता है, तो यह भारत के लिए एक नई तरह की रणनीतिक चुनौती बन सकती है.
गौरतलब है कि तुर्की पहले ही अफ्रीकी देशों में अपने ड्रोन और अन्य रक्षा उपकरणों की आपूर्ति कर चुका है. सोमालिया में स्थायी स्पेसपोर्ट की स्थापना उसे अफ्रीकी धरातल पर अपनी सैन्य-तकनीकी क्षमता बढ़ाने का अवसर देगी. रिपोर्ट्स के अनुसार तुर्की इस प्रोजेक्ट के तहत करीब एक अरब डॉलर खर्च करने की योजना पर काम कर रहा है, जिसमें से लगभग 350 मिलियन डॉलर केवल इस आधारभूत ढांचे के निर्माण और संचालन पर खर्च होंगे. राष्ट्रपति एर्दोगन पहले ही 2021 में अपने स्पेस विज़न का ऐलान कर चुके हैं और अब इसे मूर्त रूप देने की तैयारी जोरों पर है.
भारत के चिंता का विषय क्यों?
तुर्की के लिए यह कदम इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि वह अपने भूभाग से बैलिस्टिक मिसाइल या स्पेस लॉन्च का परीक्षण नहीं कर सकता — भूमध्य सागर और काला सागर से घिरे होने के कारण ऐसे परीक्षण वहां जोखिम भरे और राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकते हैं. वहीं सोमालिया एक ऐसा विकल्प बनकर उभरा है, जहां से न केवल गुप्त और निर्बाध परीक्षण किए जा सकते हैं, बल्कि हिंद महासागर में सैन्य पहुंच भी स्थापित की जा सकती है.
भारत के लिए यह घटनाक्रम इसलिए चिंता का विषय बनता है क्योंकि सोमालिया की भौगोलिक स्थिति सीधे भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, मालदीव और दक्षिण-पश्चिम समुद्री रणनीति को प्रभावित कर सकती है. चीन पहले ही जिबूती में सैन्य अड्डा स्थापित कर चुका है और अगर तुर्की भी सोमालिया में अपनी सैन्य या अर्ध-सैन्य उपस्थिति बढ़ाता है, तो हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को 'थ्री-फ्रंट' सामरिक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है — पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में चीन और दक्षिण-पश्चिम में सोमालिया से तुर्की.
इस गठजोड़ को 'चीन-पाक-तुर्क त्रिकोण' कहा जा सकता है, जो भारत की समुद्री सुरक्षा नीति और रणनीतिक प्रभुत्व के लिए दीर्घकालिक खतरा बन सकता है. आने वाले वर्षों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि तुर्की का स्पेसपोर्ट प्रोजेक्ट केवल वैज्ञानिक आकांक्षा है या उसके पीछे छिपी है एक गहरी सामरिक महत्वाकांक्षा.
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