अब तेरा क्या होगा तुर्की! सारे सेब सड़ जाएंगे.. करोड़ों का होगा घाटा, भारत के इस झटके से बुरी तरह फड़फड़ाएगा

    भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और तुर्की द्वारा पाकिस्तान का खुला समर्थन सामने आने के बाद, भारतीय बाजारों में 'बॉयकॉट तुर्की' की लहर तेज़ी से दौड़ पड़ी है. इस बहिष्कार की सबसे ज्यादा मार तुर्की के सेबों पर पड़ी है, जिनकी मांग में भारी गिरावट देखी जा रही है.

    Turkey apple face boycott in india amid india pakistan tensions
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    जब बात देश के स्वाभिमान और सुरक्षा की हो, तो हर भारतीय खड़ा हो जाता है – फिर चाहे वो युद्धभूमि हो या बाजार. भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और तुर्की द्वारा पाकिस्तान का खुला समर्थन सामने आने के बाद, भारतीय बाजारों में 'बॉयकॉट तुर्की' की लहर तेज़ी से दौड़ पड़ी है. इस बहिष्कार की सबसे ज्यादा मार तुर्की के सेबों पर पड़ी है, जिनकी मांग में भारी गिरावट देखी जा रही है.

    तुर्की की भूमिका सवालों के घेरे में

    मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जब भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू किया, तब पाकिस्तान ने जवाबी हमला किया. इसी दौरान तुर्की ने कथित रूप से पाकिस्तान को ड्रोन और अन्य सैन्य सहायता दी. इस खुलासे के बाद से भारतीय नागरिकों ने तुर्की को आर्थिक मोर्चे पर सबक सिखाने की ठान ली.

    निशाने पर तुर्की के सेब

    2021-22 में भारत ने तुर्की से लगभग 563 करोड़ रुपए के सेब मंगवाए थे, जो 2023-24 में बढ़कर 821 करोड़ रुपए तक पहुंच गए. तुर्की से आने वाले ये सब्सिडी वाले सेब, भारतीय किसानों के लिए एक चुनौती बन गए थे. सस्ते दामों पर बिकने वाले इन आयातित सेबों ने देश के बागवानों की कमर तोड़ दी थी. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. तुर्की के सेबों की मांग में 50% तक की गिरावट दर्ज की गई है. व्यापारी अब कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड के साथ-साथ ईरान, वाशिंगटन और न्यूजीलैंड की ओर रुख कर चुके हैं.

    स्वदेशी किसानों को मिल रहा नया मौका

    यह बहिष्कार सिर्फ एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि एक भावनात्मक संदेश है. देश के सेब उत्पादकों को इससे नया जीवन मिला है. खासकर कश्मीरी और हिमाचली बागवानों को उम्मीद है कि अब उनका माल बिना विदेशी दबाव के ज्यादा बिकेगा.

    ऑफ सीजन में भी होता था तुर्की सेबों का जलवा

    तुर्की के सेब स्वाद, रंग और रस के लिए जाने जाते हैं, और यही कारण था कि ऑफ सीजन में भी भारतीय बाजारों में उनकी मांग बनी रहती थी. लेकिन अब, जब भावनाएं और देशभक्ति जुड़ गई है, तब स्वाद से ज्यादा महत्वपूर्ण 'सिद्धांत' बन गया है.

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