पाकिस्तान के यार ने खरीदा 5वीं पीढ़ी फाइटर जेट 'KAAN', क्या है खासियत?

    सीमा पर बीते चार दिनों से जारी गोलीबारी और तनाव के बीच शनिवार की रात थाईलैंड और कंबोडिया ने अचानक युद्धविराम की घोषणा कर दी. यह कदम थाईलैंड ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्तक्षेप के बाद उठाया है.

    Turkey and indonesia buys kaan fighter deal  in 10 million dollar know its power
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    तुर्किए और इंडोनेशिया ने एक ऐतिहासिक समझौते पर दस्तखत करते हुए 48 KAAN फाइटर जेट्स की डील को अंतिम रूप दे दिया है. यह करार न सिर्फ तुर्किए का पहला अंतरराष्ट्रीय फाइटर जेट निर्यात सौदा है, बल्कि यह उसकी स्वदेशी रक्षा तकनीक की वैश्विक मान्यता का भी प्रतीक बन गया है. यह समझौता इस्तांबुल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनी IDEF के दौरान हुआ.

    तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने 11 जून को इस डील की घोषणा की थी. अब इसे औपचारिक मंजूरी मिल चुकी है. डील की कुल कीमत 10 अरब डॉलर है, जिससे तुर्किए की घरेलू एयरोस्पेस परियोजनाओं को जबरदस्त वैश्विक बढ़ावा मिलेगा. इस समझौते ने तुर्किए को एक विश्वसनीय रक्षा निर्यातक के रूप में स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ा दिया है.

    KAAN: तुर्किए की 5वीं पीढ़ी की ताकत

    KAAN फाइटर जेट को पहले TF-X नाम से जाना जाता था. यह एक 5वीं पीढ़ी का मल्टी-रोल स्टील्थ फाइटर है, जो रडार-इवेजन क्षमताओं, सुपरसोनिक गति, और एडवांस्ड डिजिटल एवियॉनिक्स से लैस है. इसमें एआई-आधारित नेविगेशन सिस्टम, लो ऑब्जर्वेबिलिटी डिज़ाइन और उच्च मारक क्षमता शामिल है. इसका पहला प्रोटोटाइप वर्ष 2023 में सामने आया था, और 2024 में इसकी पहली सफल परीक्षण उड़ान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया. 2028 से इसका सीरियल प्रोडक्शन शुरू होगा और 2030 से इंडोनेशिया को डिलीवरी दी जाएगी.

    इंडोनेशिया के लिए रणनीतिक बढ़त

    इंडोनेशिया के लिए यह डील सिर्फ एक तकनीकी निवेश नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक रक्षा साझेदारी की शुरुआत है. इससे इंडोनेशिया को भविष्य के हवाई युद्ध परिदृश्य में बेहतर तैयार रहने में मदद मिलेगी. इसके अलावा, यह सहयोग इंजीनियरिंग, उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे क्षेत्रों में भी दोनों देशों को करीब लाएगा. तुर्किए की रक्षा उद्योग एजेंसी के अनुसार, यह समझौता दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों की नई परिभाषा प्रस्तुत करता है, विशेषकर मुस्लिम-बहुल देशों के बीच बढ़ती रक्षा साझेदारियों की दिशा में. 

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